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हल्द्वानी रेलवे भूमि अतिक्रमण मामला: 19 साल से जारी कानूनी लड़ाई का आज अहम मोड़! सुप्रीम फैसले पर टिकी सबकी निगाहें

Haldwani Railway Land Encroachment Case: Today marks a turning point in the 19-year-long legal battle! All eyes are on the Supreme Court's decision.

हल्द्वानी। बनभूलपुरा और आसपास की रेलवे भूमि पर हुए अतिक्रमण को लेकर विवाद पिछले करीब दो दशकों से चला आ रहा है। लगभग 19 वर्ष पूर्व स्टेशन क्षेत्र के आसपास प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई थी, लेकिन भूमि की स्पष्ट हदबंदी (सीमांकन) न होने के कारण आने वाले वर्षों में उसी जमीन पर दोबारा कब्जे हो गए। रेलवे विभाग का दावा है कि हल्द्वानी में उसकी करीब 29 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा किया गया है, जहां लगभग 4,365 लोग अतिक्रमण कर बसे हुए हैं।

इस मामले को लेकर याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी ने बताया कि बनभूलपुरा और गफूरबस्ती क्षेत्र में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए वर्ष 2007 में ही हाईकोर्ट ने आदेश जारी किए थे। उस समय प्रशासन ने लगभग 2400 वर्ग मीटर भूमि को अतिक्रमण मुक्त भी कराया था। बाद में वर्ष 2013 में गौला नदी में हो रहे अवैध खनन और गौला पुल की क्षति को लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान फिर से रेलवे भूमि पर अवैध कब्जे का मुद्दा सामने आया।

9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते हुए रेलवे को 10 सप्ताह के भीतर सभी अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद कुछ अतिक्रमणकारियों और राज्य सरकार की ओर से अदालत में शपथपत्र दाखिल कर संबंधित भूमि को नजूल भूमि बताया गया, लेकिन 10 जनवरी 2017 को हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।

इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई विशेष याचिकाएं दायर की गईं, जिस पर शीर्ष अदालत ने अतिक्रमणकारियों और राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वे 13 फरवरी 2017 तक हाईकोर्ट में व्यक्तिगत प्रार्थना पत्र दाखिल करें, जिनकी जांच हाईकोर्ट द्वारा की जाएगी। कोर्ट ने इस प्रक्रिया के लिए तीन माह का समय भी तय किया।

इसके बाद 6 मार्च 2017 को हाईकोर्ट ने रेलवे को ‘अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम, 1971’ के तहत कार्रवाई करने के निर्देश दिए, लेकिन इसके बावजूद भी जमीन को अतिक्रमण मुक्त नहीं कराया जा सका। इससे नाराज होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका भी दायर की, हालांकि तब भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।

लंबे अंतराल के बाद 21 मार्च 2022 को एक बार फिर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें रेलवे की विफलता का उल्लेख किया गया। इसके बाद 18 मई 2022 को अदालत ने सभी प्रभावित पक्षों को अपना पक्ष न्यायालय के समक्ष रखने का मौका दिया, लेकिन अतिक्रमणकारी उक्त भूमि पर अपना वैध अधिकार साबित नहीं कर सके।

20 दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट ने एक बार फिर रेलवे को निर्देश दिए कि वह अतिक्रमणकारियों को एक सप्ताह का नोटिस जारी कर जमीन खाली कराने की कार्रवाई करे। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां आज इस पर महत्वपूर्ण सुनवाई होनी है।


अब सभी की निगाहें शीर्ष अदालत के फैसले पर टिकी हैं, जो इस लंबे समय से चल रहे विवाद को किसी निष्कर्ष तक पहुंचा सकता है। इधर सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई को लेकर पुलिस प्रशासन पूरी तरह अलर्ट मोड पर नजर आ रहा है।