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सुभाष चंद्र बोस क्या वाकई बने थे भारत के प्रधानमंत्री? कंगना रनौत के बयान के बाद ये मुद्दा आज भी छाया है सोशल मीडिया में, लिंक में पढ़े सुभाष चंद्र बोस के प्रधानमंत्री बनने की रोचक जानकारी

Did Subhash Chandra Bose really become the Prime Minister of India? After Kangana Ranaut's statement, this issue is still prevalent in social media, read interesting information about Subhash Chandra

मंडी लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी की उम्मीदवार बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत ने कुछ दिन पहले एक निजी TV चैनल पर जैसे ही सुभाष चंद्र बोस को भारत का पहला प्रधानमंत्री बताया वैसे ही सोशल मीडिया में कंगना को ट्रोल करने वालो की बाढ़ आ गई और हर कोई कंगना को ज्ञान बांटने में लग गया साथ ही बीजेपी को भी कंगना के ज्ञान पर आड़े हाथों लेने लगे। लेकिन क्या आपको पता है कि कंगना ने जो कहा था वो वाकई सच था? हैरान मत होइए और इतना सुनते ही बौखलाइएगा भी मत,क्योंकि इतिहास के पन्नो में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जवाहर लाल नेहरू से बहुत पहले ही प्रधानमंत्री बन चुके थे। ये रोचक जानकारी जाने बिना ही कुछ भी बोलना या लिखना ठीक नही है,इसोलिए अंत तक जरूर पढ़िएगा, ताकि आपको भी भारत का इतिहास पता चल सके।

दरअसल देश को आजादी दिलाने के लिए किये जा रहे संघर्ष में नेताजी पहले तो महात्मा गाँधी के साथ थे लेकिन बाद में वह उनकी सुस्त और अहिंसावादी विचारधारा के कारण उनसे अलग हो गए और अंग्रेजों से देश को स्वतंत्र कराने की योजना बनाई। अपनी बनाई योजना अनुसार नेताजी ने साल 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक को फाउंड किया जिसके बाद उन्होंने साल 1943 में 21 अक्टूबर को आजाद हिंद फौज खड़ी की। और तब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 21 अक्तूबर 1943 में प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी और ये शपथ उन्होंने भारत में नही बल्कि सिंगापुर में ली थी,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 21 अक्तूबर 1943 को सिंगापुर में आज़ाद हिन्द सरकार के नाम से निर्वाचित सरकार बनाई थी। सिंगापुर में इसीलिए क्योंकि सुभाष चंद्र बोस की देश को आजाद करवाने की रणनीतियों से अंग्रेजी हुकूमत परेशान होने लगी थी और अंग्रेजो ने नेताजी को 1940 में उनके घर पर ही नजरबंद कर दिया था,नेता जी अपने कमरे में ही रहते और ब्रिटिश सरकार का एक दरबारी 24 घंटे उनकी चौकरी करता। लेकिन नेता जी तो नेताजी थे उनके सिर पर देश को आजाद करवाने का जुनून सवार था,इसीलिए अंग्रेज उन्हे ज्यादा दिन नजरबंद नही कर सके और वो सबकी आंखों में धूल झोंककर भाग गए। इसके बाद उन्होंने आजादी की लड़ाई देश के बाहर रहते हुए लड़ी। 

उन्होंने सिंगापुर में अपनी सरकार बनाई क्योंकि नेताजी का कहना था कि भारतीय इस बात का इंतजार क्यों करें कि जब अंग्रेज भारत को आजादी देंगे तब ही हमारी सरकार बनाई जाएगी,इस तर्क के साथ उन्होंने अपनी खुद की सरकार बनाई जिसमे उनके हजारों समर्थक थे। नेताजी का मानना था जब तक राज्य सत्ता की ताकत हासिल नहीं की जाएगी तब तक भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्र करवा पाना आसान नहीं होगा। नेताजी की सरकार में मंत्री मंडल में 18 मंत्री थे,और सभी को अलग अलग जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसमें नेताजी हैड of the state यानी प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री बने थे। इस सरकार की अपनी फौज, करेंसी, कोर्ट, सिविल कोड और राष्ट्रगान था। सुभाष चंद्र बोस की इस सरकार को जापान, जर्मनी, इटली और रिपब्लिक ऑफ चाइना सहित 9 देशों की मान्यता भी मिली थी। इस तरह की सरकार को गवर्नमेंट इन एक्साइल कहा जाता है। 

प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण समारोह सिंगापुर में हुआ जिसमे उन्होंने कहा था कि ये शपथ उन शहीदों के नाम पर है जिन्होने हमे वीरता और बलिदान की अमर धरोहर दी, ईश्वर को साक्षी मानकर मैं सुभाष चंद्र बोस पवित्र शपथ लेता हूं कि अपने भारत और मेरे देशवासियों की स्वाधीनता के लिए अपनी अंतिम सांस तक स्वतंत्रता का पावन युद्ध लड़ता रहूंगा। करीब 300 सालो तक अंग्रेजो की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी का दिन नसीब हुआ लेकिन तब तक सुभाष चंद्र बोस की मौत की खबरें आ चुकी थी, हालांकि उनकी मौत भी एक रहस्य थी,इसके बारे में डिटेल में आपको फिर बताएंगे। ऐसा कहा जाता है कि अगर सुभाष चंद्र बोस आजादी के दौरान भारत में मौजूद होते तो भारत कभी अपना एक बड़ा हिस्सा न गवांता। भारत के बटवारे की घटना तीन जून योजना या माउंटबेटन योजना के नाम से जानी जाती है। ये भारत की आजादी की एक शर्त थी जो 3 जून 1947 को भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड लुई माउंटबेटन ने बटवारे का फॉर्मूला पेश करते समय दिया था। 

हमारे इस देश में नेता तो कई हुए लेकिन नेताजी सिर्फ एक ही थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिन्हे देश से दीवानों की तरह प्यार था,और अपनी मातृभूमि भारत को आजाद कराने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार थे।