उत्तराखंड:दरकते घर,उजड़ते गांव!अवैध खनन पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी!खनन कंपनियों से भरपाई के दिए संकेत,सरकार और खनन कंपनियों से मांगा जवाब

Crumbling homes, devastated villages! The High Court issues a stern remark on illegal mining! Mining companies hint at compensation, and the government and mining companies are asked to respond.

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बागेश्वर जिले की कांडा तहसील सहित अन्य गांवों में अवैध खड़िया खनन के कारण घरों में आई दरारों और संरचनात्मक क्षति के गंभीर मामलों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दायर जनहित याचिका तथा 165 खनन इकाइयों से संबंधित अन्य याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र एवं न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ के समक्ष हुई, जिसे न्यायालय ने बुधवार को भी जारी रखने का निर्णय लिया है।

सुनवाई के दौरान सामने आया कि कई गांवों में खनन गतिविधियों के कारण घरों में गहरी दरारें पड़ गई हैं और कई मकान रहने योग्य नहीं बचे हैं। प्रभावित ग्रामीणों को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़े हैं। शिकायत के बाद सरकार की ओर से कुछ प्रभावितों की अस्थायी पुनर्व्यवस्था तो की गई, लेकिन स्थायी समाधान अभी तक नहीं निकल पाया है।

कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार को सुझाव दिया है कि जिन खनन इकाइयों की गतिविधियों के कारण मकानों को नुकसान पहुंचा है, उनसे ही इसकी भरपाई क्यों न कराई जाए? इस संबंध में राज्य सरकार और संबंधित खनन इकाइयों से विस्तृत जवाब मांगा गया है।

गौरतलब है कि इससे पहले कांडा तहसील के ग्रामीणों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर अवैध खड़िया खनन से हो रहे नुकसान की ओर ध्यान आकर्षित कराया था। पत्र में कहा गया था कि खनन के कारण गांवों की खेती, मकान, जलापूर्ति लाइनें और अन्य बुनियादी सुविधाएं बुरी तरह प्रभावित हो चुकी हैं। जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम थे, वे हल्द्वानी और अन्य शहरों में जाकर बस गए हैं, जबकि गांवों में अब मुख्य रूप से गरीब और असहाय लोग ही बचे हैं।

ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि उनके बचे-खुचे आजीविका के साधनों पर भी खनन माफिया की नजर बनी हुई है। कई बार संबंधित अधिकारियों को इस संबंध में ज्ञापन सौंपे गए, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अंततः मजबूर होकर उन्हें न्यायालय की शरण लेनी पड़ी, ताकि उनकी समस्याओं का स्थायी और न्यायसंगत समाधान हो सके।

अब इस मामले की अगली सुनवाई में राज्य सरकार और खनन इकाइयों की ओर से जवाब दाखिल किया जाएगा, जिसके बाद न्यायालय आगे की कार्यवाही तय करेगा। यह मामला न केवल पर्यावरणीय नुकसान से जुड़ा है, बल्कि सैकड़ों ग्रामीण परिवारों के जीवन और सुरक्षा से भी सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है।