सेलिब्रेशनः गूगल का खास डूडल! 19वीं सदी के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट की वर्षगांठ का जश्न, जानें दुनियाभर में मशहूर होने की रोचक कहानी
नई दिल्ली। गूगल ने आज गुरुवार 23 मई को अपने होमपेज पर एक खास म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट का डूडल बनाया है। इसी के साथ आज गूगल डूडल अकॉर्डियन की सालगिरह को सेलिब्रेट कर रहा है। साल 1829 में आज ही के दिन यानी कि 23 मई को इसका पेटेंट किया गया था। इस इंस्ट्रूमेंट का नाम जर्मन शब्द अकोर्ड से लिया गया है, जिसका अर्थ कॉर्ड है। बहुमुखी प्रतिभा के साथ म्यूजिक की दुनिया पर एक गहरा प्रभाव डालने वाले अकॉर्डियन को एनिमेटेड डूडल में सम्मानित किया गया है। धौंकनी वाले इस फ्री-रीड इंस्ट्रूमेंट ने पॉप, जैज, लोक और शास्त्रीय जैसी कई संगीत शैलियों को प्रभावित किया। धौंकनी के फैलने और सिकुड़ने पर यह इंस्ट्रूमेंट साउंड पैदा करता है। यह एक फ्री-रीड इंस्ट्रूमेंट है, जिसका मतलब है कि वायु प्रवाह साउंड पैदा करने के लिए अकॉर्डियन के अंदर रीड को वाइब्रेट करता है।
1800 के दशक की शुरुआत में धौंकनी के साथ कई प्रकार के फ्री-रीड इंस्ट्रूमेंट तैयार किए गए, जैसे कॉन्सर्टिना, बैंडोनियन और हारमोनियम आदि। 1800 के दशक के आखिर में पूरे यूरोप में लोक संगीतकारों के बीच इसकी बढ़ती लोकप्रियता के चलते जर्मनी में निर्माताओं ने अकॉर्डियन का प्रोडक्शन बढ़ा दिया था। शुरुआती दौर में अकॉर्डियन में सिर्फ एक तरफ बटन होते थे, प्रत्येक बटन पूरे कॉर्ड का साउंड पैदा करता था। खास बात यह है कि एक ही बटन दो अलग-अलग कॉर्ड पैदा कर सकता है, जिसमें एक बार जब धौंकनी (बेलोव्ज) फैल रही हो और दूसरी जब धौंकनी सिकुड़ रही हो। यूरोपीय लोगों द्वारा दुनिया भर में प्रवास करने के साथ-साथ संगीत में अकॉर्डियन का इस्तेमाल बढ़ता गया।
मॉड्रन वर्जन को बटन या पियानो-स्टाइल कीबोर्ड के साथ बजाया जा सकता है और कुछ में दोनों ऑप्शन भी होते हैं। कभी-कभी इनमें इलेक्ट्रॉनिक एलिमेंट भी शामिल होते हैं जिससे उन्हें एम्पलीफायर में प्लग किया जा सकता है या अलग साउंड बनाया जा सकता है। आज इस इंस्ट्रूमेंट को लोक संगीत, लेटीनो पोल्का, टैंगो, काजुन म्यूजिक समेत काफी कुछ में सुना जा सकता है। ऑक्टोबरफेस्ट में अकॉर्डियन हमेशा मौजूद रहता है। हाथ में इस मेलोडी मेकर के साथ काफी कुछ किया जा सकता है। पारंपरिक साउंड 200 साल बाद भी दुनिया भर में जर्मन समारोहों और म्यूजिक को प्रभावित कर रहा है।
कैसे दुनियाभर में लोकप्रिय हुआ अकॉर्डियन
19वीं सदी के अंत में जर्मनी में अकॉर्डियन का उत्पादन बढ़ गया और इसकी वजह थी, लोक संगीतकारों द्वारा इस वाद्ययंत्र की बढ़ती मांग। बाद में जब यूरोपीय संगीतकारों ने दुनिया भर में यात्राएं की तो इस वाद्ययंत्र की लोकप्रियता दुनिया भर में फैल गई।