धामी की धाकड़ पुलिसः 90 दिन में नही दे पाए चार्जशीट! समय बढ़ाने के लिए लगा दिया UAPA? हाईकोर्ट ने दी ज़मानत, सवाल उठे तो एसएसपी ने मीडिया पर फोड़ा ठीकरा

Dhami's strong police: Could not give chargesheet in 90 days! UAPA imposed to extend time? High Court granted bail, when questions were raised, SSP blamed the media

नैनीताल। 8 फरवरी 2024, उत्तराखण्ड के इतिहास का वो काला दिन, जो शायद कोई भूल पाया हो। विगत 8 फरवरी को हल्द्वानी के बनभूलपुरा में हुई हिंसा जिसने शांत प्रदेशों में गिने जाने वाले उत्तराखण्ड की फिजा को अशांत करने का काम किया था। भले ही वक्त के साथ आज सबकुछ सामान्य हो गया हो, लेकिन इस बीच पुलिस की कार्यप्रणाली ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल बनभूलपुरा हिंसा के आरोपियों के खिलाफ तय समय पर चार्जशाीट दाखिल करने के मामले में नैनीताल पुलिस ने जो रवैय्या अपनाया है उससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लाजिमी है। इसे नैनीताल पुलिस का आलस कहें या फिर लापरवाही जो भी हो चार्जशीट दाखिल करने के मामले में पुलिस 90 और 180 दिनों के नियमों के फेर में उलझी दिखी है। हैरानी की बात ये कि जबतक पुलिस समझ पाती तबतक आरोपियों को डिफाल्ट जमानत मिल गई। मामला उठा तो नैनीताल के एसएसपी ने मीडिया पर ठीकरा फोड़ते हुए नियमों का पाठ पढ़ाया। लेकिन जब बात उच्चाधिकारियों तक पहुंची तो पुलिस मुख्यालय ने जांच के आदेश दे दिए। अब यहां सवाल उठता है कि ये हुआ क्यों और कैसे?

बता दें कि सीआरपीसी की धारा 167(2)(ए) (आई) के तहत विचाराधीन कैदियों की हिरासत की अधिकतम अवधि 90 दिन है। सीआरपीसी की धारा 167 के प्रावधानों के अनुसार यदि धारा 167(2)(ए) (आई) के प्रावधान के अनुसार किसी मामले की जाचं 90 दिनों के भीतर पूरी नहीं होती है तो आरोपी व्यक्ति सीआरपीसी के उक्त प्रावधानों के तहत डिफॉल्ट जमानत पाने का हकदार होेगा। बनभूलपुरा मामले में 90 दिनों की अवधि क्रमशः 12 और 13 मई 2024 को समाप्त होने वाली थी। लेकिन हैरान करने वाली बात ये कि इस बीच पुलिस की जांच ही पूरी नहीं हो पाई और पुलिस द्वारा अवधि समाप्त होने से ठीक पांच दिन पहले यानि 9 मई 2024 को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (इसके बाद ‘यूएपीए अधिनियम, 1967’ के रूप में संदर्भित) की धारा 15/16 के तहत अपराध जोड़ दिया गया। इसके बाद हुआ ये कि यूएपीए के प्रावधानों को जोड़ने के कारण अधिनियम, 1967 की धारा 43डी के प्रावधानों को लागू किया गया, जो अभियोजन पक्ष को धारा 43डी (2)(बी) के प्रावधान के तहत हिरासत की अवधि को अधिकतम 180 दिनों की अवधि तक बढ़ाने का अधिकार देता है। ये प्रावधान लागू करने के बाद अभियोजन पक्ष निचली अदालत में पहुंचा। यहां 10 मई 2024 की एफआईआर संख्या 22/2024 में अबतक की जांच की प्रगति को स्पष्ट किया गया। जिसमें तर्क दिया गया कि अभी जांच बाकी है। देखा जाए तो जो तर्क दिया गया उसमें कई हैरान करने वाली बातें सामने आई हैं। देखें प्रगति रिपोर्ट...

कोर्ट के आदेश का हिन्दी रूपांतरण...

अब इस संबंध में एडीजी कानून व्यवस्था ने डीआईजी कुमाऊं और एसएसपी नैनीताल को जांच कराकर जल्द से जल्द रिपोर्ट भेजने को कहा है। इसके बाद लापरवाही या गलती सामने आने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है। 

बता दें कि हिंसा के आरोपियों पर पुलिस ने आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज किए थे। इसके साथ ही गैर कानूनी गतिविधि अधिनियम (यूएपीए) भी लगाया गया था। अब वहीं से दो नियम लागू हो जाते हैं। आईपीसी के तहत आरोपी जब जेल में बंद होता है तो उसके खिलाफ 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होती है, जबकि यूएपीए में यह नियम 180 दिन का है। 

अब इसे पुलिस की लापरवाही कहें या फिर कुछ और। जो भी हो 90 दिन के अंतराल में पुलिस जांच पूरी नहीं कर पाई, जिसके बाद निचली अदालत ने यूएपीए अधिनियम की धारा 43डी(2)(बी) के प्रावधानों को लागू करते हुए 11 मई 2024 के आदेश के तहत एफआईआर संख्या 22/2024 पुलिस स्टेशन बनभूलपुरा में जांच की अवधि और हिरासत की अवधि को 28 दिनों की अतिरिक्त अवधि के लिए बढ़ाने के आवेदन को स्वीकार कर लिया। इसके बाद आरोपी पक्ष ने हाईकोर्ट का रूख किया। जिसके बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को निरस्त कर दिया। अब सवाल ये उठता है कि पुलिस इतने दिनों तक क्या कर रही थी। फिलहाल मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि जांच में क्या निकलता है और इस प्रकरण में आगे क्या कार्यवाही होती है। फिलहाल इस मामले को लेकर नैनीताल पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में दिखती नजर आ रही है।