उत्तरकाशी धराली आपदा!खीरगंगा का रौद्र रूप लाया था तबाही!क्या वाकई बादल फटा या ग्लेशियर टूटा? आखिर क्या है आपदा की वजह?

साल 2013 में केदारनाथ में आई आपदा के बाद उत्तराखंड संभलकर उठकर प्रगति के पथ पर दौड़ लगा ही रहा था कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में मंगलवार को आई आपदा से हाहाकार मच गया। 5 अगस्त 2025 को दोपहर करीब 1:30 बजे खीरगंगा रौद्र रूप से आई और धराली में भयावह तबाही मचा गई। महज 30 से 40 सेकेंड में खीर गंगा नाले में आई विनाशकारी बाढ़ ने उत्तरकाशी के धराली गांव की हर्षिल घाटी को मलबे के ढेर में बदल दिया । इस आपदा में अभी तक पांच लोगों के मरने की पुष्टि 11 सेना के जवान सहित गांव के कई लोग लापता है। करीब 30 होटल ,दुकानें ,और घर इस सैलाब में बह गए।
इस घटना के पीछे बादल फटना बड़ी वजह बताई गई थी । लेकिन बादल फटने से पहले बारिश की स्पीड एक घंटे में सौ मिमी से ऊपर होती है जबकि मौसम विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर वहां इतनी बारिश नहीं दिखाई गई थी,जिससे बादल फटने के आसार नजर आएं। मौसम विभाग के मुताबिक 4 अगस्त की रात और 5 अगस्त की सुबह 8.30 बजे तक वहां 8/10 मिमी बारिश ही दर्ज की गई थी और खीरगंगा का सैलाब दोपहर में आया जब बारिश भी थम चुकी थी। अब सवाल है कि ऐसे में आखिर बादल फटने से तबाही आई या फिर ग्लेशियर टूटा या पिर कोई और वजह है?
शोधकर्ताओं के मुताबिक घटना के समय धराली क्षेत्र में बहुत कम वर्षा पाई गई, जिससे बादल फटने की बात पर निश्चित तौर पर संदेह पैदा होता है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने 24 घंटों में हर्षिल में केवल 6.5/7 मिमी और भटवारी में 10/11 मिमी बारिश दर्ज की, जो बादल फटने से उत्पन्न बाढ़ के सामान्य स्तर से भी काफी कम है। आईएमडी के क्षेत्रीय केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक रोहित थपलियाल के मुताबिक प्रभावित क्षेत्र में 24 घंटों में केवल बहुत हल्की से लेकर बहुत हल्की बारिश ही देखी गई। उत्तरकाशी में सबसे अधिक वर्षा मात्र 27 मिमी हुई।
एक और वरिष्ठ वैज्ञानिक कि माने तो इतनी कम वर्षा इस पैमाने की बाढ़ लाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। विशेषज्ञ के मुताबिक यह हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) या ग्लेशियर फटने जैसी अधिक शक्तिशाली घटना का संकेत है। हालांकि उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी शार्दूल गुसांई ने कहा कि बादल फटने की तीन घटनाएं रिकॉर्ड हुई है, धराली, हर्षिल और सुखी टॉप के सामने। उन्होंने ये भी कहा कि शुरूआती वजह बादल फटना ही है,जब नए डेटा आएंगे तब स्थिति और साफ हो पाएगी। अभी किसी भी कारण से इनकार नहीं कर सकते क्योंकि एक दिन पहले मौसम ठीक था कम बारिश हो रही थी, लेकिन पहाड़ों पर मौसम बदलने में अब समय कहां लगता है।
दूसरा पहलू ये है कि उत्तरकाशी दो बड़ी नदियों गंगा और यमुना का उद्गम स्थल है और गंगा की सहायक नदियों में अस्सी गंगा,गंगनानी,खीरगंगा और राणो की गाड शामिल हैं। धराली के पीछे डेढ़-दो किलोमीटर लंबा और बेहद घना जंगल है, जिस खीरगंगा से फ्लैश फ्लड आया वो उन्हीं जंगलों से होकर गुजरता है। उसके ऊपर स्नो से भरा माउंट श्रीकंठ है,लेकिन जिस गति से फ्लैश फ्लड आया है वो बादल फटने वाली स्थिति नहीं है बादल फटने पर आने वाली फ्लैश फ्लड पहले धीमी होती है,फिर तेज और बाद में फिर धीमी हो जाती है।
खीरगंगा की गति धराली के ऊपर जंगल किसी अस्थाई लेक, पानी जमाव या प्राकृतिक डैम जैसी स्थिति को दर्शाता है। पानी करीब 43 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आया। यही गति 2013 में केदारनाथ आपदा के समय चोराबारी लेक के टूटने से आए सैलाब की थी। दूसरा ये कि धराली और उसके अगल-बगल बेहद नैरो वैली है, ऊंचे पहाड़ है। अगर ऐसे में किसी ग्लेशियर के टूटकर अस्थाई लेक, पानी जमाव या प्राकृतिक डैम पर गिरता है तो वह उसे तोड़ देता है। धराली के जो वीडियो सामने आए हैं, उसमें ऊपर से आता हुआ पानी काले रंग का है, मलबा भी स्लेटी रंग का है। ऐसा पानी और मलबा जमे हुए स्थान के टूटने से आता है।
गूगल अर्थ से इलाके को समझने की कोशिश करें तो दिखता है कि धराली के पीछे जो पहाड़ है, उसके टॉप कैचमेंट एरिया में दो ग्लेशियर हैं, जिसमें बड़े-बड़े दरारे दिखाई देती हैं। संभव है कि यहां से आइस एवलांच आया होगा, जिससे ग्लेशियर में जमा मलबा तेजी से नीचे की ओर आया.,धराली में मची तबाही के वीडियो को देखें तो उसमें सैलाब बहुत तेजी से नीचे की ओर आता दिख रहा है। सैलाब की स्पीड की वजह स्टीप स्लोप भी है।
नाम उजागर न करने की शर्त पर उत्तरकाशी के बड़े बुजुर्गों ने बताया कि 1978 में खीरगंगा का पुराना रास्ता यही धराली हर्षिल गांव ही था,जहां ये सहायक नदी भागीरथी से जा मिलती थी। लेकिन यहां मानकों के विपरीत अतिक्रमण किया गया इमारतें खड़ी कर दी गई है और इस जगह की अनदेखी होती रही। नदी के तटों पर अतिक्रमण कर बसे गांवों का एक दिन ऐसा ही हाल होता है। इन बुजुर्गों ने ये भी कहा कि अब तो हाइकोर्ट का आदेश सख्ती से मनवा लिया जाए कि नदियों के किनारे दो सौ मीटर के दायरे में किसी भी तरह का निर्माण न हो।