उत्तराखंड:ग्रामीणों की दरारों भरी पुकार पहुँची हाईकोर्ट! खनन से उजड़े घर- आँगन, हाईकोर्ट ने मांगा पूरा रिकॉर्ड, लगातार जारी सुनवाई

Uttarakhand: Villagers' cries of grief have reached the High Court! Mining has destroyed homes and courtyards; the High Court has requested complete records and the hearing continues.

बागेश्वर जिले के कांडा तहसील सहित कई गांवों में अवैध खड़िया खनन से घरों, भूमि और पेयजल लाइनों में आई दरारों के गंभीर मामले पर उत्तराखंड हाईकोर्ट सख़्त रुख अपनाए हुए है। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर पंजीकृत जनहित याचिकाओं और खनन इकाइयों द्वारा दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आज से नियमित सुनवाई शुरू कर दी है। इस मामले की सुनवाई कल भी जारी रहेगी।

मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र जी और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने बुधवार को मामले की विस्तृत सुनवाई की। कोर्ट ने स्टोन प्रेशर परीक्षणों में सामने आई अनियमितताओं पर गंभीर सवाल उठाते हुए जिला खनन अधिकारी को संबंधित रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दिए। साथ ही इष्ट देव स्टोन क्रशर से संबंधित आयकर विभाग की जांच रिपोर्ट भी अगली सुनवाई में कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा गया है।

अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने अदालत को अवगत कराया कि अवैध खनन मानकों के विपरीत ढंग से संचालित होने के कारण कांडा और आसपास के कई ग्रामीण इलाकों में इमारतों और खेतों में ज़बरदस्त दरारें उत्पन्न हुईं, जिसका संज्ञान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और तत्पश्चात हाईकोर्ट ने लिया। खनन गतिविधियों पर रोक लगाए जाने के बाद खनन कारोबारियों ने राहत प्राप्त करने के लिए हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कीं, और वहां से राहत न मिलने पर वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित करने के निर्देश उच्च न्यायालय को दिए, जिसके बाद अब प्रतिदिन सुनवाई चल रही है।

इससे पहले कांडा तहसील के ग्रामीणों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजकर बताया था कि अवैध खड़िया खनन के कारण उनकी कृषि भूमि, घरों और पानी की लाइनों को भारी नुकसान पहुंचा है। कई संपन्न परिवार मजबूरी में अपने घर छोड़कर हल्द्वानी सहित अन्य स्थानों पर बस गए, जबकि गांव में अब केवल आर्थिक रूप से कमजोर परिवार ही बचे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि अनेक बार उच्च अधिकारियों को शिकायतें देने के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला, जिससे  निराश होकर अब वे न्यायालय की शरण में आए हैं।