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आरटीआई एक्ट का उत्तराखंड के अधिकारी बना रहे हैं मज़ाक! लगातार सामने आ रहे सूचना न देने और सूचना के नाम पर गुमराह करने के मामले

Uttarakhand officials are making a mockery of the RTI Act! Cases of withholding information and misleading information in the name of information are constantly emerging.

उत्तराखंड में सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी प्राप्त करना मज़ाक बन गया है लगातार कई जिलों से सूचना न देने और सूचना के नाम पर गुमराह करने के मामले सामने आते जा रहे हैं। सूचना अधिकार अधिनियम के तहत 30 दिनों के भीतर लोक सूचना अधिकारी को सूचना देना अनिवार्य होता है और अगर 30 दिनों के भीतर सूचना न दी जाए तो आवेदक उसकी अपील कर सकता है, जिस पर प्रथम अपीलीय अधिकारी सुनवाई करता है और सूचना देने के लिए संबन्धित विभाग के लोक सूचना अधिकारी को निर्देशित करता है, लेकिन आम तौर पर देखने में आ रहा है कि अगर कोई आरटीआई कार्यकर्ता सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी मांगता है तो लोक सूचना अधिकारी पहले 30 दिनों तक इंतजार करता है और फिर उसका जवाब समय-सीमा से एक या दो दिन पहले की तारीख डालकर आरटीआई कार्यकर्ता को आधी-अधूरी सूचना दे देता है और सूचना न देने के लिए कभी प्रारूप तो कभी रूप का हवाला देता है, जबकि सूचना मांगने वाला केवल जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आवेदन करता है। जानकारी प्राप्त न होने पर फिर आवेदक अपील करता है, जिसके बाद अपीलीय अधिकारी लगभग 30 दिनों के अंतराल बाद कार्य दिवस का समय देकर सुनवाई के लिए आवेदक को बुलाता है और जब तय समय पर आवेदक अपील की सुनवाई के लिए कार्यालय पहुंचता है तो पाता है कि अपीलीय अधिकारी ही कार्यालय से गायब हैं और उनकी अनुपस्थिति में किसी अन्य को भी कोई चार्ज नहीं दिया गया है और न ही कोई अग्रिम आदेश होता है। कार्यालय की यह स्थित देखकर आरटीआई कार्यकर्ता बैरंग वापस लौट जाता है। अब जब अपीलीय अधिकारी का मन होगा, तो वो कार्यालय पहुंचेंगे और फिर अपील के लिए अगली तिथि तय करेंगे। 

ऐसा ही कुछ किच्छा तहसील में हुआ, जहां एक आरटीआई कार्यकर्ता ने 04 अगस्त 2025 को सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6(3) के तहत जिलाधिकारी कार्यालय में आरटीआई लगाई थी, जिसे किच्छा तहसील हस्तांतरित कर दिया गया और एक महीने बाद किच्छा तहसील के लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी देने के बजाय कहा कि जिस रूप में जानकारी मांगी गयी है उस रूप में उपलब्ध नहीं है, जबकि जानकारी में किच्छा तहसील के अंतर्गत आने वाले राजस्व गांव जवाहर नगर के क्षेत्रफल से संबन्धित थी जो कि तहसील कार्यालय में उपलब्ध होती है। सूचना न मिलने पर आरटीआई कार्यकर्ता ने अपीलीय अधिकारी एसडीएम किच्छा को अपील की, जिस पर एसडीएम किच्छा ने आरटीआई कार्यकर्ता को 6 अक्तूबर 2025 की सुबह 11 बजे का अपील सुनने को समय दिया। 

आरटीआई कार्यकर्ता तय समय पर एसडीएम कार्यालय पहुंच गया, लेकिन एसडीएम गौरव पांडे कार्यालय से नदारद थे और कार्यालय में अन्य आरटीआई कार्यकर्ता भी अपील के लिए इंतजार कर रहे थे। एसडीएम गौरव पांडे जो अपीलीय अधिकारी भी हैं उनके द्वारा अपील को गंभीरता से न लेना और बिना चार्ज दिये कार्यालय से नदारद होना, अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है। 

ऐसे ही दूसरे मामले में नैनीताल एसएसपी कार्यालय में आरटीआई लगाई गयी थी, जिस पर एसएसपी कार्यालय ने कुछ बिन्दुओं की जानकारी जो कि तल्लीताल और मल्लीताल थाने में उपलब्ध थी को स्थानांतरित कर दी। जिस पर तल्लीताल के थानाध्यक्ष रमेश सिंह बोरा ने तय समय-सीमा पर जानकारी मुहैया करवा दी, लेकिन मल्लीताल कोतवाली के एसएचओ हेम चन्द्र पंत ने जानकारी मुहैया करवाने के बजाय तय समय-सीमा बीत जाने के बाद एक पत्र आरटीआई कार्यकर्ता को भेजा, जिसमें न तो दिनांक अंकित थी और न ही पत्रांक संख्या और तो और अपीलीय अधिकारी का नाम तक नहीं डाला गया था। पत्र में सूचना देने के नाम पर कहा गया कि संबन्धित सूचना थाने में है आप किसी भी कार्य दिवस के दौरान थाने में आकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जबकि आरटीआई कार्यकर्ता ने स्पष्ट लिखा था कि सूचना हेतु जो भी व्यय होगा वो आरटीआई कार्यकर्ता के द्वारा वहन किया जाएगा, लेकिन एसएचओ हेम चन्द्र पंत ने तय समय-सीमा बीतने के बाद भी जानकारी उपलब्ध कराने के बजाय थाने आकर जानकारी प्राप्त करने का पत्र जारी कर दिया। 

सूचना अधिकार अधिनियम से जुड़े मामले लगातार सामने आ रहे हैं, जहां लोक सूचना अधिकारी और अपीलीय अधिकारी बेवजह आरटीआई कार्यकर्ता को परेशान करते हैं और राज्य सूचना आयोग तक जाने को विवश करते हैं, जबकि सूचना पहले ही दी जा सकती है और आरटीआई कार्यकर्ता का समय बचाया जा सकता है। सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी 30 दिनों के भीतर प्राप्त हो जानी चाहिए, लेकिन अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही के चलते तय समय पर जानकारी नहीं मिल पाती है जो कि एक तरह से सूचना अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है। सूचना अधिकार अधिनियम 2005 जो कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लागू किया था, आज भाजपा के शासनकाल में मज़ाक बनकर रह गया है। चाहे प्रधानमंत्री मोदी डिग्री विवाद हो या अन्य कोई मामला, सरकार से जानकारी लेना मतलब लोहे के चने चबाने से कम नहीं है।