उत्तराखण्डः शिक्षा विभाग में अपात्र विकलांगता प्रमाण पत्रों के जरिए आरक्षण का लाभ लेने का मामला! हाईकोर्ट ने राज्य मेडिकल बोर्ड के महानिदेशक को भेजा नोटिस, राज्य आयुक्त दिव्यांग जन को वर्चुअली पेश होने के आदेश

 Uttarakhand: A case has been filed in the Education Department alleging that ineligible disability certificates were used to obtain reservation benefits. The High Court has issued a notice to the Di

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपात्र विकलांगता प्रमाण पत्रों के ज़रिए शिक्षा विभाग में आरक्षण का लाभ ले रहे दर्जनों कार्मिकों के प्रमाण पत्रों की जांच की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य आयुक्त दिव्यांग जन को 19 नवम्बर को वर्चुअली कोर्ट पेश होने के निर्देश दिए हैं। साथ ही राज्य मेडिकल बोर्ड के महानिदेशक को नोटिस जारी कर फ़र्ज़ी प्रमाण पत्रों की सत्यता जांच कर जवाब दाखिल करने को कहा है। बता दें कि नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड उत्तराखंड शाखा द्वारा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि अपात्र लोग धोखाधड़ी से ‘दृष्टिबाधित’ श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं, जिससे वास्तविक दिव्यांग उम्मीदवार अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं। मामले में प्रशासनिक स्तर पर शिकायतें करने के बावजूद कोई ठोस और पारदर्शी कार्रवाई नहीं हो सकी। याचिका में कहा है कि राज्य मेडिकल बोर्ड में 2022 में हुए मूल्यांकन में शिक्षा विभाग दिव्यांग श्रेणी के कई कर्मचारी मेडिकल जांच के लिए जानबूझकर उपस्थित नहीं हुए, जिससे उनके प्रमाण पत्रों के जाली होने का गहरा संदेह पैदा होता है। शिक्षा विभाग में अध्यापकों व लिपिक वर्गीय श्रेणी में दिव्यांग आरक्षण के तहत राज्य बनने के बाद 52 पदों में हुई नियुक्तियों में से 13 नियुक्तियां मेडिकल बोर्ड ने सही पाई हैं, जबकि शेष कार्मिक वर्ष 2022 में मेडिकल बोर्ड द्वारा पुनः कराए गए मूल्यांकन में या तो अनुपस्थित रहे या फिर उनके प्रमाण पत्रों में भिन्नता थी और कुछ को दिव्यांग श्रेणी में नहीं माना गया।