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उत्तराखण्ड क्रिकेट एसो. में हुए कथित घोटाले व अनियमितताओं के मामले में हुई सुनवाई! हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका, जानें क्या है मामला?

The Uttarakhand Cricket Association (UKCA) has heard the case of alleged irregularities and scams. The High Court dismissed the petition. What is the matter?

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट में आज उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन (UCA) में कथित तौर पर हुए करोड़ों रुपये के घोटाले और अन्य अनियमितताओं से संबंधित एक याचिका पर लंबी सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों को विस्तार से सुना, लेकिन अंततः याचिका को खारिज कर दिया। इस मामले ने उत्तराखंड क्रिकेट जगत में हड़कंप मचा दिया है, क्योंकि याचिका में क्रिकेट बोर्ड के कामकाज और फंड के दुरुपयोग को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए थे।

याचिका उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व उपाध्यक्ष सुरेंद्र भंडारी ने दायर की थी। उन्होंने कोर्ट के समक्ष दावा किया कि उत्तराखंड क्रिकेट बोर्ड का गठन वर्ष 2006 में हुआ था, और इसे 2019 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) से मान्यता प्राप्त हुई। इसके बाद से BCCI ने बोर्ड को संचालन के लिए फंड उपलब्ध करवाया, जो 2019 से अब तक 22 करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है। भंडारी ने आरोप लगाया कि इस फंड का उपयोग न तो खिलाड़ियों की सुविधाओं के लिए किया गया और न ही खेल के विकास में। इसके बजाय, बोर्ड के सदस्यों ने इस धन का दुरुपयोग अपने निजी हितों के लिए किया।

याचिका में यह भी कहा गया कि खिलाड़ियों की सुविधाओं के नाम पर केवल दिखावा किया गया। भंडारी ने दावा किया कि बोर्ड ने खिलाड़ियों को बुनियादी सुविधाएं तक मुहैया नहीं कराईं और उनके खानपान की व्यवस्था के नाम पर केवल केले और पानी दिए गए। यह आरोप क्रिकेट के प्रति बोर्ड की लापरवाही और खिलाड़ियों के प्रति असंवेदनशील रवैये को उजागर करता है।

याचिका में उत्तराखंड क्रिकेट प्रीमियर लीग (UCPL) के आयोजन में भी अनियमितताओं का जिक्र किया गया। भंडारी ने आरोप लगाया कि इस लीग का ठेका एक ही कंपनी के मालिक को दे दिया गया, जो नियमों का उल्लंघन है। नियमों के अनुसार, एक व्यक्ति या कंपनी केवल एक टेंडर के लिए आवेदन कर सकती है, लेकिन इस मामले में नियमों की अनदेखी की गई। इतना ही नहीं, इस टेंडर से बोर्ड को मिलने वाली लगभग दो करोड़ रुपये की राशि को भी बोर्ड के सदस्यों ने माफ कर दिया। इसके अलावा, फ्रेंचाइजी कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों के विज्ञापन के लिए दी जाने वाली राशि को भी माफ करने का आरोप लगाया गया है।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की थी कि इस पूरे मामले की गहन जांच कराई जाए। साथ ही, उत्तराखंड प्रीमियर लीग के टेंडर को सार्वजनिक किया जाए, क्योंकि अभी तक इसकी प्रक्रिया को गोपनीय रखा गया है। भंडारी ने कोर्ट से यह भी प्रार्थना की थी कि फंड के दुरुपयोग और बोर्ड के कुप्रबंधन की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित की जाए।

लंबी सुनवाई के बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद याचिका को खारिज कर दिया।  इस फैसले ने क्रिकेट प्रेमियों और याचिकाकर्ता के समर्थकों में निराशा पैदा की है, क्योंकि वे इस मामले में पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद कर रहे थे।

यह मामला उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाता है। भले ही कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी हो, लेकिन इन आरोपों ने क्रिकेट प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत को एक बार फिर रेखांकित किया है। क्रिकेट प्रेमी और खिलाड़ी अब इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि क्या भविष्य में इस मामले की कोई उच्च स्तरीय जांच होगी या यह मुद्दा यहीं दबकर रह जाएगा।

इस पूरे प्रकरण ने उत्तराखंड में क्रिकेट के भविष्य और खिलाड़ियों के हितों को लेकर बहस छेड़ दी है। क्या बोर्ड इन आरोपों का जवाब देगा, या यह मामला केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित रह जाएगा, यह देखना बाकी है।