हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी! पत्रकारों को निजी डेटा रिलीज करने के लिए नहीं किया जा सकता मजबूर, बताया- फ्रीडम ऑफ स्पीच के खिलाफ

नई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान पत्रकारों के हित में एक बड़ा फैसला सुनाया है। इस दौरान कोर्ट ने दो टूक कह दिया है कि पत्रकारों को निजी डेटा रिलीज करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। यह पूरी तरह फ्रीडम ऑफ स्पीच के खिलाफ है। जस्टिस G K Ilanthiraiyan ने एक मामले में सुनवाई के दौरान यह सख्त टिप्पणी की है। उनका मानना है कि अगर कोई इस तरह से पत्रकारों पर दबाव बना रहा है तो यह उत्पीड़न है। जानकारी के लिए बता दें कि SIT एक यौन उत्पीड़न केस में जांच कर रही थी, मामला अन्ना यूनिवर्सिटी से जुड़ा हुआ था। उस जांच के दौरान ही एजेंसी ने कई पत्रकारों को समन भेजा था, उनसे 50 से भी ज्यादा सवाल पूछे थे। उनसे सवाल किया गया था कि वे विदेश में कहां-कहां गए थे, उनके पास कितना पैसा है। इसके अलावा भी कई निजी सवाल उनसे पूछे गए थे। अब जब कोर्ट को इस बात की जानकारी मिली, उनकी तरफ से पत्रकारों के पक्ष में दलील दी गई।
जस्टिस G K Ilanthiraiyan ने कहा कि अगर पत्रकारों से निजी डेटा मांगा जा रहा है, उनसे निजी जानकारी हासिल करने की कोशिश हो रही है, ये बस प्रेस को उत्पीड़न करने का एक तरीका है। प्रेस फ्रीडम और निजता दोनों ही एक साथ जुड़े हुए हैं। जस्टिस G K Ilanthiraiyan ने इस बात पर भी जोर दिया कि जो सवाल पूछे गए, उन्हें देख कर लगता है कि वो प्राइवेट ज्यादा थे और यह सीधे-सीधे निजता के अधिकार का हनन दिखाई पड़ता है।
कोर्ट ने इस बात को भी माना है कि SIT ने पत्रकारों से निजी सवाल कर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने का काम किया है। अब समझने वाली बात यह है कि एक FIR लीक हुई थी, उसके बाद ही पत्रकारों से सवाल-जवाब शुरू हुए। लेकिन यहां भी कोर्ट ने जांच एजेंसी को ही फटकार लगाने का काम किया है। उनकी तरफ से कहा गया है कि अभी तक यह जानने की कोशिश तक नहीं हुई कि FIR अपलोड किसने की थी। सीधे-सीधे पत्रकारों से सवाल-जवाब किए गए, उन्हें कोई समन भी नहीं भेजा गया।