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नैनीताल की रामलीलाः शास्त्रीय संगीत और संस्कृति का अनूठा संगम

Nainital's Ramlila: A unique confluence of classical music and culture

नैनीताल। यूं तो इन दिनों हर जगह रामलीलाओं का मंचन चल रहा है। मगर कुमाऊं में होने वाली रामलीलाओं की बात ही कुछ और है, जिसमें शास्त्रीय संगीत पर आधारित रागों और धुनों पर संवाद अदायगी की जाती है। वक्त के मुताबिक इन में कई बदलाव आए, फिर भी लोगों के बीच रामलीलाओं की लोकप्रियता में कोई कमी नही आई है। वैसे तो दशहरे में हर जगह रामलीला का मंचन होता है। मगर नैनीताल की रामलीला को लेकर लोगों में गजब का उत्साह देखने को मिलता है। यही उत्साह कुमाऊं क्षेत्र में हर जगह देखने को मिलता है। और हो भी क्यों ना। क्योंकि यहां की रामलीला सहित्य कला और संगीत के संगम की तरह है। अवधी भाषा में लिखे छन्द राग रागिनियों पर आधारित संगीत की बानगी पेश करती है। इन रामलीलाओं में राग विहाग जै-जै वन्ती राधेश्याम के अलावा कई रागों में गाई जाती है। जो मैदानी इलाकों की रामलीला से कई अलग है। रामलीला के कलाकार भी इसमें कई बदलाव कर दर्शकों को जोडने का प्रयास कर रहे हैं। जिसमें कलाकारों का अभिनय बदलते दौर में भी कुमांउनी रामलीलाओं को जीवंत बनाये हुए हैं। इस रामलीला के मंचन से दो महीने पहले कलाकारों को पूरी तालीम दी जाती है। जिसके बाद रामलीलाओं में मंच पर अभिनय करना होता है, लेकिन आज इन्टरनेट टीवी के नाटकों सीरीयलों के दौर में भी रामलीलाओं की अहमियत में कमी नही आई है। जिसका इंतजार कुमाऊं के हर व्यक्ति को रहता है। आुधनिक दौर में जहां स्थानीय सभ्यता और संस्कृति अपने वजूद की लडाई लड़ रही है। वहीं रामलीलाओं की बढ़ती लोकप्रियता भारतीय समाज की मूल प्रतीकों और स्थानीय संस्कृति के संरक्षण का जीता-जागता उदाहरण है।