नैनीताल:धूमधाम से मनाया गया सरोवर नगरी नैनीताल का बर्थडे!क्या है नैनीताल का असली इतिहास?क्या वाकई नैनीताल की खोज पीटर बैरन ने की थी?लिंक में पढ़िए दिलचस्प जानकारी

Nainital: The lake city of Nainital's birthday was celebrated with great pomp! What is Nainital's true history? Was it really discovered by Peter Barron? Read this interesting information in the link

हर वर्ष की तरह इस बार भी 18 नवंबर को सरोवर नगरी नैनीताल का जन्मदिवस पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया।  डीएसए मैदान के बास्केटबॉल कोर्ट में आयोजित नैनीताल के 184वें बर्थडे सेलिब्रेशन में स्थानीय निवासियों से लेकर पर्यटकों तक ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिससे पूरे कार्यक्रम में खुशियों का माहौल रहा।

 

इस विशेष मौके पर विभिन्न संस्थाओं से जुड़े समाजसेवियों ने 29 केक काटकर नैनीताल का जन्मदिन मनाया। साथ ही मानव सेवा की मिसाल पेश करते हुए स्कूल के बच्चों को 200 से अधिक कम्बल वितरित किए। कार्यक्रम के दौरान नैनीताल की समृद्धि और शांति के लिए सर्वधर्म प्रार्थना सभा भी आयोजित हुई, जिसमें सभी धर्मों के लोगों ने एक साथ अपने शहर की खुशहाली की कामना की।

बात करें नैनीताल के इतिहास की तो यहां नैनी झील के किनारे बसते सपनों की कहानी आज भी यहां के लोगों के लिए एक अचंभा है।

डीएसबी कॉलेज के पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो गिरीश रंजन तिवारी बताते है कि जैसा कि तमाम पुस्तकों और समाचार पत्रों में बताया गया है कि नैनीताल की खोज पीटर बैरन ने की थी ये बात असल में सच नहीं है,पीटर बैरन ने नैनीताल को खोजा नहीं था बल्कि नैनीताल का परिचय दुनिया से जरूर कराया था,नैनीताल तो पीटर बैरन के आने से पहले भी था,और इसका विस्तृत विवरण सैकड़ों साल पहले लिखित रूप में उपलब्ध था, जिससे ये पता चलता है कि उस विवरण को लिखने वाले ने नैनीताल का न सिर्फ भ्रमण किया था बल्कि अध्ययन भी किया था।

उन्होंने ये भी बताया कि 18 नवंबर 1841 को पहली बार पीटर बैरन, जो एक अंग्रेज़ चीनी व्यापारी और प्रकृति प्रेमी थे,जिसे कोई और नहीं बल्कि यहां का स्थानीय निवासी ही लेकर नैनीताल पहुंचा था। झील, पहाड़ों और प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहां बसने का विचार किया। यहां बैरन ने देखा कि स्थानीय लोगों ने यहां की पहाड़ियों के नाम भी पहले से ही रखे हुए थे। बैरन ने तो खुद को यहां पहुंचने वाला पहला व्यक्ति कभी नहीं कहा। बैरन को आधुनिक काल में नैनीताल को विश्व की नजरों में लाने का श्रेय जरूर दिया जा सकता है।जिसके बाद धीरे-धीरे यह स्थान एक सुंदर हिल स्टेशन के रूप में बसाया गया और ब्रिटिश काल में यह उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर-पश्चिम प्रांत) की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी बना। इसके बाद नैनीताल पर्यटन, शिक्षा और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा। चूंकि 18 नवंबर को नैनीताल की पहचान वैश्विक स्तर पर बनी इसीलिए 18 नवंबर को नैनीताल का स्थापना दिवस मनाया जाने लगा। 18 नवंबर को यहां के युवा और स्थानीय लोग इस दिन को शहर के ‘जन्मदिवस’ के रूप में धूमधाम से मनाते आ रहे हैं। इस मौके पर आयोजक मारुति नंदन साह,ईशा साह, गज़ाला खान,मनोज साह जगाती सहित नगर पालिका के सभासद,तमाम स्कूलों के प्रिंसिपल,टीचर्स,बच्चे, अभिभावक,स्थानीय निवासी मौजूद रहे।