नैनीताल:नैनीताल पुलिस की झूठी कहानी! उत्तराखंड हाइकोर्ट ने एफआईआर की रद्द! लिंक में पढ़ें पूरा माजरा

नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने भवाली थाने में दर्ज एक मामले में पुलिस की कहानी को झूठा करार देते हुए एफआईआर और संबंधित कानूनी कार्रवाई को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा लगाए गए मारपीट और तोड़फोड़ के आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं मिले। न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए देवेंद्र मेहरा और उनके साथी पारस के खिलाफ दर्ज मुकदमे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने टिप्पणी की, कि गंभीर रूप से घायल व्यक्ति का अस्पताल में इलाज के दौरान थाने जाकर हंगामा करना तर्कसंगत नहीं लगता।
मामले के मुताबिक 27 जून 2023 की रात भवाली थाने में कांस्टेबल हयात चंद ने देवेंद्र और पारस के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप था कि दोनों शराब के नशे में थाने पहुंचे, मारपीट की और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। इस आधार पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323 (मारपीट), 353 (सार्वजनिक कार्य में बाधा), 504 (अपमान), 506 (धमकी), और सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। दूसरी ओर, उसी रात देवेंद्र के भाई ने भी एक एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें दावा किया गया कि देवेंद्र को उसी शाम एक बार में झगड़े के दौरान चोटें आई थीं, और उसे सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मेडिकल रिकॉर्ड्स ने इस बात की पुष्टि की, कि देवेंद्र गंभीर रूप से घायल था।
उच्च न्यायालय ने पुलिस की कहानी को अविश्वसनीय पाते हुए न केवल एफआईआर, बल्कि नैनीताल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) द्वारा जारी सम्मन आदेश को भी निरस्त कर दिया। कोर्ट ने मामले से जुड़ी सभी कानूनी कार्रवाइयों को समाप्त करने का आदेश दिया। जाहिर है कि उत्तराखंड हाइकोर्ट का यह फैसला पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है और यह दर्शाता है कि बिना ठोस सबूतों के किसी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग हो सकता है।