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नैनीताल:उत्तराखंड की पारंपरिक कला 'रंगवाली पिछोड़ा' के संरक्षण के लिए कार्यशाला का आयोजन कर हैप्पीनेस वुमेन्स कलेक्टिव और आर्ट ऑफ लिविंग ने शुरू की महत्वपूर्ण पहल!

Nainital: Important initiative of Happiness Women's Collective and Art of Living for the preservation of Uttarakhand's traditional art 'Rangwali Pichhoda'!

 

उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, हैप्पीनेस वुमेन्स कलेक्टिव और आर्ट ऑफ लिविंग ने 4 अक्टूबर को नैना मंदिर के समीप गोवर्धन हॉल में कुमाऊँ की पारंपरिक कला ‘रंगवाली पिछोड़ा’ को संरक्षित करने और नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया।

रंगवाली पिछोड़ा, कुमाऊँ क्षेत्र की महिलाओं द्वारा विवाह जैसे शुभ अवसरों पर पहनी जाने वाली एक खास ओढ़नी है, जो अपने लाल-पीले रंगों, विशिष्ट डिज़ाइनों और धार्मिक प्रतीकों के लिए जानी जाती है। पिछौड़े के मध्य में स्वस्तिक, सूर्य और शंख जैसे पारंपरिक प्रतीकों का महत्व है। इन प्रतीकों को बनाए रखना और उन्हें बनाए रखने की प्रक्रिया का ज्ञान अगली पीढ़ी को देना ज़रूरी है। 

 

इस कार्यशाला का उद्देश्य इस लुप्तप्राय कला को पुनर्जनन देना और युवाओं को इसके सांस्कृतिक महत्व से जोड़ना था।साथ इस बात पर भी जोर दिया गया कि सोशल मीडिया, विज्ञापन और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से रंगवाली पिछौड़ा का प्रचार किया जाना आवश्यक है ताकि यह न केवल कुमाऊं बल्कि देश-विदेश में भी लोकप्रिय हो सके।


 प्रशिक्षक ज्योति साह और उनकी सहायिका भगवती सुयाल ने प्रतिभागियों को पिछोड़ा निर्माण की पारंपरिक तकनीकों, जैसे हस्तनिर्मित छपाई, प्राकृतिक रंगों का उपयोग और प्रतीकों के महत्व के बारे में विस्तार से बताया।

इसके अलावा, सात सरकारी स्कूलों के 110 बच्चों को इस कला को आधुनिक संदर्भ में उपयोग करने और पिछोड़ा के सही इस्तेमाल के बारे में भी मार्गदर्शन दिया गया।

 

कार्यक्रम में विशेष अतिथि  ईशा साह और अंजू जगाती ने रंगवाली पिछोड़ा के इतिहास और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करते हुए इसके दुरुपयोग से बचने की सलाह दी। कार्यशाला के अंत में प्रतिभागी स्कूलों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। 

 

इस आयोजन को सफल बनाने में संस्था की रेशमा टंडन, कविता गंगोला, सुनीता वर्मा, प्रेमलता गोसाईं, संगीता शाह, सिम्मी अरोरा, सोनी अरोरा, मंजू नेगी, मंजू बिष्ट, किरण टंडन, बीना शर्मा, कविता जोशी, कविता सनवाल, शिखा साह, वैशाली बिष्ट, संध्या तिवारी, मधु बिष्ट, ममता गंगोला, पूजा शाही, ज्योति मेहरा, पूजा मल्होत्रा, श्वेता अरोरा, वंदना मेहरा, कामना कंबोज, उमा कांडपाल, रीना सामंत, रमा तिवारी, निम्मी कीर, विमला कफ़लटीया, नेहा डालाकोटी और सोमा शाह ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह पहल न केवल रंगवाली पिछोड़ा की कला को जीवित रखने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने का एक प्रेरणादायी कदम भी है।