कृषि की भूमि पर बड़े पैमाने पर हो रहा काला धंधा! प्रॉपर्टी डीलरों ने अवैध कॉलोनियां बना कर मचाया आतंक

Large scale black business is being done on agricultural land! Property dealers created terror by building illegal colonies

जनपद उधम सिंह नगर के मुख्यालय रुद्रपुर में अवैध कॉलोनियों के निर्माण पर रोक लगाने में जिला विकास प्राधिकरण और उत्तराखंड सरकार पूरी तरह विफल नजर आ रही है। इसका ताजा उदाहरण कालीनगर के उदय नगर (झील पार) पर देखने को मिल रहा है, जहां जिला प्रशासन और प्राधिकरण की नाक के नीचे लगभग 2 एकड़ भूमि पर खुलेआम अवैध कॉलोनी का निर्माण युद्ध स्तर पर जारी है।

इस अवैध कॉलोनी का न तो जिला विकास प्राधिकरण से नक्शा पास कराया गया है और न ही रेरा के तहत पंजीकरण किया गया है। कृषि भूमि को जेसीबी मशीनों से समतल कर सड़कों का निर्माण किया जा रहा है। इसके बाद इस भूमि पर अवैध प्लॉटिंग की जाएगी और कौड़ियों के भाव खरीदी गई जमीन को ऊंचे दामों पर बेचकर कॉलोनाइजर भारी मुनाफा कमाएंगे। इस तरह की अवैध कॉलोनियों में प्लॉट खरीदने वाले ग्राहकों को भविष्य में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। न तो उन्हें बिजली, पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलती हैं और न ही कानूनी सुरक्षा। जब ग्राहक मकान बनाने का प्रयास करते हैं, तो प्राधिकरण उन पर भारी जुर्माना लगाता है, जिससे उनकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। ऐसे निर्माण कार्यों के कारण सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान होता है। वहीं, कृषि भूमि के अवैध उपयोग से पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब इतना बड़ा अवैध निर्माण हो रहा है, तो जिला विकास प्राधिकरण और प्रशासन इसे रोकने में क्यों विफल है? क्यों संबंधित अधिकारी सिर्फ कागजों में कार्रवाई दिखाकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं? क्यों अवैध कॉलोनियों पर नियमित निरीक्षण और कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती? जबकि जिला विकास प्राधिकरण को अवैध निर्माणों पर त्वरित रोक लगानी चाहिए और ऐसे कॉलोनाइजर पर सख्त कानूनी कार्रवाई और भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए। नागरिकों को प्लॉट खरीदने से पहले उनकी वैधता की जांच करने के लिए जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में उन्हें कानूनी और वित्तीय समस्याओं का सामना न करना पड़े। साथ ही, कृषि भूमि के दुरुपयोग को रोकने के लिए ठोस नीतियां बनाई जानी चाहिए, ताकि कृषि संसाधनों का संरक्षण हो सके और शहरीकरण का नियोजित विकास संभव हो सके।