उत्तराखंड में ओल्ड लिपुलेख के पास से कैलाश दर्शन शुरू! भारतीय सेना द्वारा की जा रही है यात्रियों की सुरक्षा

कैलाश मानसरोवर यात्रा न केवल हिंदुओं, बल्कि जैन, बौद्ध और बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का दिव्य निवास माना जाता है। कैलाश मानसरोवर अपनी भव्यता और भव्यता के कारण हर साल दुनिया भर से लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। कैलाश मानसरोवर जाने के कई रास्ते हैं। उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे से होकर कैलाश यात्रा और सिक्किम में नाथुला दर्रे से होकर कैलाश यात्रा, भारत सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले दो लोकप्रिय मार्ग हैं।
18 हजार 300 फुट की ऊंचाई पर स्थित ओल्ड लिपुपास पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थित है। इसके खुलने के बाद श्रद्धालु लिपुलेख तक पहुंच रहे हैं। जहां से भक्तों को सामने ही साक्षात कैलाश पर्वत के दर्शन हो रहे हैं। यहां पहुंचे आदित्य तिवारी ने बताया कि लिपुलेख से कैलाश दर्शन से उत्तराखंड टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा,तीन चार दिन पहले ही ये यात्रा शुरू की गई है और प्रतिदिन यहां 60/70 लोग भेजे जा रहे हैं। आदित्य ने ये भी बताया कि यहां पहुंचने के लिए यात्रियों को पिथौरागढ़ होते हुए धारचूला, गूंजी, नाबी, जैसे स्थानों से होकर लिपुलेख दर्रे तक पहुंचना होता है, इस दौरान यात्रियों के सुरक्षा के मद्देनजर साथ भारतीय सेना का जवान भी साथ चलते हैं जहां से कैलाश पर्वत का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
कैलाश पर्वत के साथ ही श्रद्धालुओं को ओम पर्वत के दर्शन भी होंगे। ओम पर्वत तक पहुंचने के लिए इनर लाइन परमिट वैलिड है लेकिन इसके आगे जाने के लिए ये परमिट वैलिड नहीं होगा,इसके आगे भारतीय सेना द्वारा ही यात्रियों की सारी डिटेल्स नोट करके आगे ले जाया जा रहा है। यहां पहुंचने के लिए भारतीय सेना द्वारा किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया जा रहा है ये पूरी तरह निशुल्क है, केवल लोकल टैक्सी संचालक ही किराया लेते है। दर्शन के बाद भारतीय सेना द्वारा यात्रियों को वापस ओम पर्वत सकुशल पहुंचाया जाता है।
आदित्य ने बताया कि ओम पर्वत में पहले की अपेक्षा बर्फ कम है,बर्फ कम होने और कुछ हिस्सों से गायब होने की मुख्य वजहें हिमालयी क्षेत्र में बढ़ता तापमान, कम वर्षा और छिटपुट बर्फबारी हैं। बढ़ते तापमान के कारण हिमरेखा पीछे हट रही है और ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, जबकि कम बर्फबारी से बर्फ का जमाव कम हो रहा है। इस घटना से क्षेत्र के जल संसाधनों, पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।