पुण्यतिथि:आज ही के दिन भारत के प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू का हुआ था निधन!निधन से 4 दिन पहले पहुंचे थे उत्तराखंड के देहरादून में

हर तारीख अपने अंदर एक महत्वपूर्ण इतिहास संजोए होती है। आज की तारीख 27 मई भी न जाने कितनी ही घटनाओं की गवाह रही है। भारत देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन आज ही के दिन हुआ था। जवाहर लाल नेहरू का निधन 27 मई 1964 को हुआ और इस वर्ष उनकी 61वीं पुण्यतिथि मंगलवार, 27 मई 2025 को पड़ रही है। देश के लिए उनकी चिरस्थायी विरासत और अमूल्य योगदान को याद करने के लिए हर साल पूरे भारत में उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है।
निधन से 4 दिन पहले जवाहर लाल नेहरू देहरादून गए थे जहां वो घंटों कपूर के पेड़ के नीचे गुमसुम बैठे रहते थे। 23 मई 1964 को नेहरू देहरादून पहुंचे थे। वे घंटों गेस्ट हाउस में लगे कपूर के पेड़ के नीचे चुपचाप बैठे रहते। कभी सर्किट हाउस में घूमते या फिर घंटों सिर्फ उड़ते पक्षियों को देखते और उनकी आवाज सुनते बैठे रहते। वे कभी-कभी अपनी डायरी में कुछ लिख भी लिया करते। देहरादून में नेहरू सरकार में कैबिनेट मंत्री और आजादी के दौर से उनके साथी रहे, श्री प्रकाश भी रहते थे। 25 मई को नेहरू और इंदिरा उनके घर गए। तीनों ने साथ में दोपहर का खाना खाया, जिसके बाद इंदिरा और नेहरू सर्किट हाउस वापस लौट आए। थोड़ी देर बाद दोनों सहस्त्रधारा भी गए।
उस बार नेहरू का मन देहरादून में इस कदर रम गया था, कि वे वापस दिल्ली आना ही नहीं चाहते थे। नेहरू की देहरादून में ठहरने की इच्छा देखकर, वहां के DM ए.पी. दीक्षित ने जून तक देहरादून रुकने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, 'जरूरी फाइलें देहरादून ही मंगा लेंगे और काम यहीं से हो जाएगा।' जवाब में नेहरू ने कहा, 'हां काम तो सब हो जाएगा।'अगले दिन 27 मई को नेहरू की दिल्ली में मीटिंग थी, जिससे पहले उन्हें कुछ फाइलों पर भी काम करना था। ऐसे में चाहते हुए भी नेहरू देहरादून नहीं रुक सकते थे। 26 मई की दोपहर को ही वे और इंदिरा, दिल्ली के लिए निकल गए।
अधिकारियों, राजनेताओं और पत्रकारों के दल ने उन्हें विदाई दी। शाम तक दोनों अपने घर तीन मूर्ति भवन पहुंच गए।नेहरू ने अपना बायां हाथ उठाकर हमें अलविदा कहा, लेकिन ऐसा लग रहा था कि उन्हें हाथ उठाने में उन्हें काफी मेहनत लग रही है। उनका दायां हाथ ज्यादा सक्रिय नहीं था। वहीं उनका दायां पैर भी ठीक से उठ नहीं पा रहा था। शायद भुवनेश्वर में आए स्ट्रोक के चलते ऐसा हो रहा था।'
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी वसीयत और अंतिम इच्छा अपनी मृत्यु से 10 साल पहले ही लिख दी थी. नेहरू ने अपनी आखिरी इच्छा में लिखा था कि मेरी अस्थियों का बड़ा हिस्सा खेतों में बिखेर देना और बचा हिस्सा इलाहाबाद में गंगा में प्रवाहित कर देना. उन्होंने लिखा था कि मेरी अस्थियों को हवाई जहाज से ऊपर ले जाया जाए और ऊंचाई से उन खेतों में बिखेरा जाए जहां भारत के किसान मेहनत करते हैं ताकि वह (नेहरू) भारत की धूल और मिट्टी में मिल जाएं और भारत का अभिन्न अंग बन जाएं।
आज उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उनको याद कर रहा है। देश के तमाम नेता और मंत्रियों ने भी नेहरू जी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और देश के लिए उनके बलिदानों को याद किया।