चम्पावत रामलीलाः ‘विश्वयुद्ध’ में रही दीप्तिमान! आज के ‘विकास युग’ में लगा विराम, जानें कुमाऊं में रामलीला मंचन का इतिहास

चम्पावत। चंदवंश की गौरवशाली राजधानी रही चम्पावत में विश्वयुद्ध के दौरान भी दीप्तिमान रही रामलीला मंचन पर विकास युग में विराम लग गया। वर्ष 1889 में तल्लीहाट के स्व. प्रेम लाल वर्मा के प्रयासों से शुरू हुई रामलीला एक दौर में नगर के दो स्थानों पर होती थी। वैसे कुमाऊं में रामलीला का सफर 165 सालों का है। अल्मोड़ा के बद्रेश्वर मंदिर में 1860 में स्व. देवी दत्त जोशी ने श्रीगणेश करवाया था। चम्पावत में 136 साल पहले साधारण अंगवस्त्रों से तल्लीहाट और मल्लीहाट से मंचित होने वाली रामलीला के इतिहास को लेकर वरिष्ठ पत्रकार दिनेश पांडेय ने कई लोगों से बातचीत करते हुए उकेरा है। 1889-90 में रामलीला का शुभारंभ होने के बाद जब 1891 में भीमताल से रामलीला नाटक की किताब आई, तो फिर चीड़ के छिलकों के उजाले में तहसील क्वाटर के पास रामलीला स्टेज बनाकर इसका मंचन होने लगा। कालांतर में पैट्रोमैक्स की रोशनी बिखरी। सन 1939 और 40 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब मिट्टीतेल नहीं मिला तो दोपहर बाद से अंधेरा होने तक रामलीला होती। वर्ष 1941 में तत्कालीन तहसीलदार द्वारा मिट्टीतेल की व्यवस्था करने के बाद फिर रामलीला रात में सुचारु हुई। गौडी पावर हाउस बनने के बाद बिजली की जगमग रोशनी में रामलीला में और चमक आई। सन 1985 से लेकर 2005 तक तो नगर के दो स्थानों पर रामलीला का आयोजन हुआ। बता दें कि कुमाऊं में 1860 में अल्मोड़ा, 1880 में नैनीताल, 1889 में चम्पावत, 1890 में बागेश्वर, 1900 में लोहाघाट और 1902 में पिथौरागढ़ में रामलीला मंचन का इतिहास रहा है।
अहम रहा है पारिवारिक योगदान
चम्पावत की रामलीला में पचौली, वर्मा, साह, राय, प्रहरी, तड़ागी, पटवा आदि परिवारों का रामलीला में अहम योगदान रहा और इस दौर में भी इन परिवारों के कई लोग रामकाज से जुड़े हैं।
उत्कृष्ट निर्देशक, व्यवस्थापक और किरदार
नारायण लाल साह, देव सिंह तड़ागी, बसंत सिंह तड़ागी, गोपाल लाल पटवा, महेंद्र तड़ागी, सुरेंद्र तड़ागी, जगदीश वर्मा, सुरेन्द्र प्रहरी, गिरीश पटवा, निर्देशक, व्यवस्थापक, स्टेज सज्जा, रुप सज्जा, एनाउंसर के तौर पर। नारायण दत्त पचौली, चुम्मन लाल पटवा और भूवन पचौली प्रोमटर के रुप में। मथुरा दत्त तिवारी, महेश तड़ागी, जगदीश अमखोलिया, अशोक वर्मा, दिनेश तिवारी, बबलू पांडेय रावण के रोल में। मथुरा दत्त पचौली दशरथ व सुलोचना। मोती राम राय, सुरेश साह बंदीजन। भूवन तड़ागी, भूवन पांडेय, सूर्पनखा। देव सिंह, रामलाल, पुष्कर चौधरी, हनुमान के अलावा अमर सिंह तड़ागी, प्रहलाद प्रहरी (पहलू), दुर्गालाल पटवा, शिवराज सिह खाती, राम लाल आदि की अदाकारी का हर कोई प्रशंसक है।
तीन पीढियों ने निभाया खरदूषण का किरदार
पूर्व व्यापार संघ अध्यक्ष अमरनाथ सक्टा जहां खरदूषण का किरदार निभाते है। वहीं इनके पिताजी खीमानंद सक्टा और दादाजी इंद्र देव सक्टा का खरदूषण का किरदार आज भी लोग याद करते हैं।
खाती जी की आवाज ‘ऐ...लौंढो’
उस दौर में रामलीला में शांति व्यवस्था का दायित्व राजस्व कर्मी कर्म सिंह खाती अकेले निभाते थे। उनकी एक आवाज... ऐ...लौंढो’ से सन्नाटा छा जाता था।
उदास है जगदीश पचौली
चम्पावत की रामलीला में 43 सालों से विभिन्न किरदार निभाने वाले जगदीश पचौली इस बार लीला न होने से उदास हैं। 1976 से 1986 तक इन्होंने जहां राम का किरदार निभाया, वहीं यहां जब दो रामलीला होती थी दोनों जगह पाठ खेलते।
दर्शकों की कमी है विश्राम का कारण
रामलीला कमेटी के अध्यक्ष भगवत शरण राय बताते है कि दर्शकों की कमी के कारण इस बार विश्राम लिया है। अगले साल से कमेटी का व्यापक विस्तार कर हर क्षेत्र के लोगों को जोड़ते हुए रामलीला आयोजन और शानदार तरीके से करेंगे। इस दफा 30 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक दशहरा महोत्सव किया जा रहा है।