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नैनीताल निवासी मेजर राजेश अधिकारी की शौर्य गाथा! जिसे सुन आज भी भर आती हैं आंखें, जीते जी पत्नी का भेजा खत तक नही पढ़ पाए थे मेजर राजेश

Bravery story of Nainital resident Major Rajesh Adhikari! Even today my eyes fill with tears after hearing this, Major Rajesh could not even read the letter sent by his wife while he was alive.

नैनीताल। आज देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है और हर कोई शहीदों को नमन कर रहा है। यूं तो मातृभूमि के लिए कई महान नायकों ने अपना बलिदान दिया और हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए। कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों की शौर्य गाथाएं सुन आज भी लोगों की आंखें भर आती हैं। कुछ ऐसी ही शौर्य गाथा नैनीताल निवासी महावीर चक्र से सम्मानित 28 साल के मेजर राजेश सिंह अधिकारी की है, जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। तोलोलिंग की चोटी जीतने के 13 दिन बाद भारतीय सेना ने उनका शव बरामद किया था। 2 मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री के मेजर राजेश सिंह अधिकारी एक साल पहले ही 18 ग्रेनेडियर्स यूनिट से जुड़े थे। मेजर अधिकारी को जून 1999 में ही 18 ग्रेनेडियर्स के साथ अपना एक साल का कॉन्ट्रैक्ट पूरा करना था और अपनी मूल रेजिमेंट में वापस लौटना था। 18 ग्रेनेडियर्स को ही 16,000 फीट पर स्थित तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

भारतीय सेना के लिए तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करना भारतीय सेना के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण था, क्योंकि यहां पर टाइगर हिल्स की चोटी पर तैनात पाकिस्तानी सेना पर हमला करने के लिए बंकर स्थापित किए जा सकें। तोलोलिंग पर फतह की जिम्मेदारी मेजर राजेश सिंह अधिकारी के कंधों पर थी। तोलोलिंग पर बैठी पाकिस्तानी सेना पर हमले से पहले मेजर अधिकारी को एक पत्र सौंपा गया, जो उनकी पत्नी ने उन्हें लिखा था। ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (सेवानिवृत्त), जो उस समय कर्नल थे और 18 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग ऑफिसर थे, वे बताते हैं कि मेजर अधिकारी ने पत्र को पढ़े बिना ही अपनी जेब में रख लिया। यह उन दिनों की बात है जब सेना के जवान अपने परिवार से बात करने के लिए घंटो पीसीओ बूथ के बाहर खड़े रहते थे। कारगिल जैसी जगहों पर पोस्टिंग के दौरान अपने परिवार के सदस्यों से पत्र मिलना बहुत बड़ी बात होती थी। ब्रिगेडियर ठाकुर बताते हैं कि तोलोलिंग की लड़ाई जीतने के बाद, जब भारतीय सेना ने 13 दिन बाद उनका शव बरामद किया, तो पत्र उनकी कमीज की जेब में मिला था।

मेजर अधिकारी ने तोलोलिंग पर कब्जा करने के बाद तसल्ली से पत्नी का पत्र पढ़ने का फैसला किया था, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। जिसके बाद सेना ने पत्र को उनके शव के साथ ही उनकी पत्नी को वापस सौंप दिया। खुशाल ठाकुर बताते हैं कि मेजर अधिकारी से जब उनके सहयोगी ने पूछा था कि उन्होंने पत्र क्यों नहीं पढ़ा? तो उन्होंने जवाब दिया, पत्नी ने मेरे स्वास्थ्य के बारे में अपनी सभी चिंताओं के बारे में लिखा होगा। लेकिन मेरे लिए तोलोलिंग पर कब्जा करना मेरे निजी जीवन पर ध्यान देने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। मैं अपने देश के लिए युद्ध जीतने के बाद उन्हें शांति से पत्र का जवाब दूंगा। इसके बाद वह चुपचाप अपनी एके-47 राइफल और गोला-बारूद और ग्रेनेड से भरे बैग को उठाकर चले गए। मेजर राजेश सिंह अधिकारी जानते थे कि तोलोलिंग पर कब्जा करना इतना आसान नहीं था। यह बेहद आत्मघाती था क्योंकि यह इलाका लगभग 90 डिग्री की खड़ी ढलान पर था और तोलोलिंग में दुश्मनों को बस ऊपर से एक चट्टान धकेलनी थी और हमारे सैनिकों की जान पर बन जाती। ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर बताते हैं कि जब मेजर अधिकारी अपनी टुकड़ी के साथ तोलोलिंग के पास पाकिस्तानी सेना पर भारी गोलीबारी कर रहे थे, तब पाकिस्तानी स्नाइपर की फायरिंग में एक जेसीओ के मारे जाने के बाद ऑपरेशन बंद कर दिया गया।

अगले दिन तड़के ऑपरेशन शुरू हुआ। उन दिन भारतीय सेना ने दुश्मनों पर कड़ा हमला किया और उनके बंकरों पर जमकर ग्रेनेड दागे। जब मेजर अधिकारी अपने दल के साथ दुश्मन के बंकरों की तरफ बढ़ रहे थे, तो पाकिस्तानी बंकरों से यूनिवर्सल मशीन गन से गोलीबारी की गई। अधिकारी ने तुरंत रॉकेट लांचर टुकड़ी को बंकर पर हमला करने का निर्देश दिया और बिना इंतजार किए वे बंकर में घुस गए और नजदीकी मुठभेड़ में दो पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। इसके बाद भारी गोलीबारी के बीच भी अधिकारी ने सूझबूझ का परिचय देते हुए अपनी मीडियम मशीन गन टुकड़ी को आदेश दिया कि वे एक चट्टान के पीछे जाकर दुश्मन से भिड़ जाएं। अधिकारी ने आगे बढ़कर कई हमलों का नेतृत्व किया, दुश्मन के बंकरों को नष्ट किया और अंत में तोलोलिंग टॉप से 50 मीटर पहले ही मशीन गन की गोली लगने से घायल हो गए। गंभीर रूप से जख्मी होने बावजूद मेजर अधिकारी अपनी टीम को निर्देश देते रहे। अपनी जान की परवाह किए बिना अधिकारी रेंगते हुए ऊपर चढ़े और एक बंकर के अंदर ग्रेनेड फैंका, जिससे चार पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। इस प्रकार टोलोलिंग में उन्होंने दूसरे बंकर पर कब्जा कर लिया, जिसने बाद में प्वाइंट 4590 पर कब्जा करने में मदद की। इसके बाद हुई गोलीबारी में एक गोली उनके सीने में लगी और 30 मई, 1999 को वे वीरगति को प्राप्त हो गए। मेजर राजेश सिंह अधिकारी को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। विशिष्ट वीरता और सर्वोच्च बलिदान देते हुए उन्होंने प्वाइंट 4590 पर कब्जा किया और बदले में भारतीय सेना को कारगिल युद्ध में विशेष भौगोलिक परिस्थिति हासिल करने में मदद की। 

जब मेजर अधिकारी का पार्थिव शरीर उनके परिवार को सौंपा गया, तो उनकी पत्नी को उनका लिखा पत्र मिला। जिसे देखकर उनकी पत्नी फूट-फूट कर रोने लगीं। मेजर राजेश सिंह अधिकारी की पत्नी ने कहा कि मेरे पति ने एक सप्ताह पहले एक पत्र लिखा था, जिसमें लिखा था कि उन्हें कारगिल की चोटियों पर तैनात किया जा रहा है और उन्हें यकीन नहीं है कि वह वापस आएंगे या नहीं। पत्र में उन्होंने पत्नी से एक अनुरोध किया था कि अगर वह वापस नहीं आते हैं, तो क्या वह उनके गर्भ में पल रहे लड़के या लड़की को एक बार कारगिल ले जाएंगी और उसे दिखाएंगी कि उनके पिता ने दुश्मनों से कहां लड़ाई लड़ी थी। इस पत्र के जवाब में उनकी पत्नी ने लिखा था कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं लड़की को जन्म देती हूं या लड़के को। अगर तुम वापस आते हो, तो मुझे खुशी होगी और अगर तुम नहीं आते हो, तो मुझे एक शहीद की पत्नी होने पर गर्व होगा। लेकिन मैं इस पत्र के जरिए एक वादा तुमसे करना चाहती हूं कि मैं न सिर्फ उस बच्चे को कारगिल दिखाऊंगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित करूंगी कि वे भी आपकी तरह सैनिक बन कर देश की सेवा करे। लेकिन वह फिर से यह कहते हुए रो पड़ीं कि काश मेजर अधिकारी ने युद्ध के मैदान में जाने से पहले एक बार यह जवाब पढ़ा लिया होता, तो शायद उन्हें अच्छा लगता।