आवाज़ खुलासाः कुमाऊं विवि में विवाद! डॉ. राणा की पदोन्नति पर रोक की मांग, राज्यपाल को शिकायत

नैनीताल। डॉ. महेंद्र सिंह राणा की अवैध नियुक्ति और फिर लगातार हो रहे प्रमोशन को लेकर कुमाऊं यूनिवर्सिटी की कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। डॉ. महेन्द्र सिंह राणा, जिनकी असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की नियुक्ति को 2011 में डॉ. संगीता पिल्ख्वाल शाह की शिकायत पर चांसलर ने अवैध घोषित कर दिया था, जिसके बाद डॉ. राणा ने हाईकोर्ट में आदेश को चैलेंज किया और हाईकोर्ट ने चांसलर को डॉ. महेंद्र सिंह राणा का पक्ष सुनने और उसके बाद निर्णय लेने के लिए निर्देशित किया। 15 नवंबर 2011 में डॉ. महेंद्र सिंह राणा ने चांसलर के सामने दस्तावेज़ प्रस्तुत करते हुए अपना पक्ष रखा, जिसके बाद चांसलर मार्गेट अल्वा ने डॉ. राणा का पक्ष सुनने और सभी दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद फिर से नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया, जिसके बाद से आज तक मामला हाईकोर्ट में पेंडिंग है। 2012 से लेकर 2025 तक डॉ. महेंद्र सिंह राणा को लगातार इंक्रीमेंट और प्रमोशन मिलता रहा है, इसी क्रम में अब आज 6 अक्तूबर को डॉ. महेंद्र सिंह राणा का प्रमोशन असोसिएट प्रोफ़ेसर से प्रोफेसर के पद पर होने जा रहा है, जिस पर एग्जीक्यूटिव कमेटी के मेम्बर एडवोकेट केवल सती ने चांसलर को एक पत्र लिखा है जिसमें मांग की गयी है कि जब तक डॉ. महेंद्र सिंह राणा का मामला हाईकोर्ट में पेंडिंग है तब तक प्रमोशन के मामले में कोई डिसीजन न लिया जाये।
कुमाऊं यूनिवर्सिटी कि कार्य परिषद के पूर्व सदस्य डॉ. सुरेश डालाकोटी ने डॉ. महेंद्र सिंह राणा को अवैध तरीके से प्रमोशन देने के लिए कुलपति पर गंभीर आरोप लगाए हैं। डॉ. डालाकोटी का कहना है कि डॉ. महेंद्र सिंह राणा को प्रमोशन देने के लिए वीसी प्रोफ़ेसर दीवान सिंह रावत ने उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी से उस वक़्त हटवा दिया, जब डॉ. राणा का प्रमोशन करना था। वीसी दीवान सिंह रावत डॉ. महेंद्र सिंह राणा पर मेहरबान है जिसके चलते डॉ. राणा जो कि भीमताल कैंपस में पोस्टेड हैं, लेकिन पिछले कई सालों से बच्चों को पढ़ाने की बजाय कुमाऊं यूनिवर्सिटी में ही बने हुए हैं। प्रोफ़ेसर दीवान सिंह रावत ने कुलपति बनने के बाद डॉ. महेंद्र सिंह राणा को पहले परीक्षा नियंत्रक बनाया और विरोध होने पर अब बायो मेडिकल साइन्स का डीन बनाकर यूनिवर्सिटी में ही स्थापित कर दिया है और अवैध नियुक्ति के बावजूद अब प्रमोशन भी दे रहे हैं।
इस मामले में जब वीसी प्रोफ़ेसर दीवान सिंह रावत से बात की गयी तो उन्होने आरोपों को सिरे से नकार दिया और कहा कि डॉ. महेंद्र सिंह राणा की नियुक्ति को चांसलर भले ही निरस्त कर चुके हों, लेकिन हाईकोर्ट में मामला पेंडिग है और डॉ. राणा को प्रमोशन और इंक्रीमेंट पहले से मिलता हुआ आ रहा है, जिसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है। डॉ. सुरेश डालकोटी के द्वारा लगाए गए आरोपों पर भी वीसी दीवान सिंह रावत ने कहा कि जब वो वीसी नहीं थे, तब भी डॉ. महेंद्र सिंह राणा का प्रमोशन हुआ और डॉ. सुरेश डालाकोटी एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य रहे थे और इन्हीं की उपस्थिति में डॉ. राणा का कई बार प्रमोशन हुआ है। एक अन्य आरोप में कहा गया कि डॉ. महेंद्र सिंह राणा के प्रमोशन में डॉ. सुरेश डालाकोटी ऑबजेक्शन कर रहे थे जिस कारण उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी से बाहर निकाल दिया गया और डॉ. राणा के प्रमोशन पाने का रास्ता साफ कर दिया गया।
बता दें कि कुमाऊं यूनिवर्सिटी में अवैध नियुक्ति को लेकर आवाज़ इंडिया ने कई बार खबरें प्रकाशित की हैं। वर्ष 1998 से लेकर आज तक अवैध नियुक्तियों की एक लंबी फेहरिस्त है। अगर बात करें डॉ. महेंद्र सिंह राणा की तो साल 2011 से चांसलर मार्गेट अल्वा ने हाईकोर्ट के निर्देश के क्रम में सभी तथ्यों को देखने और डॉ. राणा का पक्ष सुनने के बाद सख्त टिप्पणी करते हुए नियुक्ति को निरस्त कर दिया था, लेकिन 13 सालों बाद भी मामला हाईकोर्ट में पेंडिंग चल रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो अवैध नियुक्ति पाये डॉ. महेंद्र सिंह राणा अब प्रोफ़ेसर भी बन जाएंगे और ये कहना भी अतिशयोक्ति न होगा कि हाईकोर्ट का डिसीजन आने से पहले डॉ. महेंद्र सिंह राणा को किसी अन्य विभाग में नया पद देकर स्थापित कर दिया जाएगा। कुमाऊं यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार की परतें आवाज़ इंडिया लगातार हटा रहा है और आगे भी कई मामलों का पर्दाफाश किया जाएगा।
देखा जाए तो डॉ. महेंद्र सिंह राणा की नियुक्ति मानकों के विरुद्ध हुई है जो कि अवैध है और इसके बावजूद उन्हें प्रोफेसर पद के लिए साक्षात्कार हेतु आमंत्रित किया गया है। इसको लेकर एडवोकेट केवल सती ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कुलपति पर मनमानी का आरोप लगाया है। सती ने बताया कि राणा का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है, फिर भी विश्वविद्यालय ने उन्हें प्रोन्नति के लिए बुलाया। 2011 में कुलाधिपति ने राणा की नियुक्ति को अवैध करार देते हुए फार्माकोलोजी में उपयुक्त अभ्यर्थी की नियुक्ति का आदेश दिया था। सती ने मांग की कि जब तक हाईकोर्ट का फैसला नहीं आता, विश्वविद्यालय कोई निर्णय न ले। आज 6 अक्टूबर 2025 को प्रस्तावित कार्यपरिषद की बैठक में यह मुद्दा चर्चा में रहेगा। सती ने राज्यपाल से हस्तक्षेप कर मामले के निपटारे की मांग की है।