23 मार्च जब फांसी वीरमाला बन गयी

"ऐ मेरे वतन के लोंगो,ज़रा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुये हैं, उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी"।
ये पंक्तियां महज एक गीत नहीं बल्कि भारत मां के वीर शहीदों की शहादत की वीरगाथा है।भगत सिंह,राजगुरू,सुखदेव ने आज ही के दिन हंसते हंसते देश के लिये फांसी को वीरमाला समझ कर गले लगा लिया था।साल था 1931 का जब देश के ये युवा क्रान्तिकारी देश की आजादी के लिये हर लड़ाई लड़ते रहे और अंत में तीनो शहीद हो गये।"लगेंगे हर बरस मेले,वतन पर मरने वालों का बस यही बाकि निशान होगा" बस अब यादें और निशां ही तो बाकि रह गये हैं,वो तो शहीद होकर भी अमर हो गये।
भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को हुआ था राजगुरू का जन्म 24 अगस्त 1908 को और सुखदेव 15 मई 1907 को जन्में थे।भगत सिंह और सुखदेव की दोस्ती बचपन से ही थी क्योंकि ये दोनो लायलपुर (जो कि अब पाकिस्तान में है)में आस पास ही रहते थे।साथ ही दोनो वीरो ने लाहौर के नैशनल काॅलेज से पढ़ाई भी साथ ही की थी।राजगुरू बाल गंगाधर तिलक से बहुत प्रभावित थे।तीनो ही वीरो में देश के प्रति अटूट प्रेम भरा हुआ था।
लाला लाजपत राय की मौत पुलिस के द्वारा बुरी तरह पीटे जाने पर हुई थी तो राजगुरू ने उनकी मौत का बदला लेने की ठानी और 19 दिसम्बर1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में पुलिस सहायक अधिक्षक जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और खुद ही गिरफ्तार भी हो गये थे।
देश की आजादी की जंग में तीनो वीरों ने पूरी कोशिश की थी कि खून खराबा न हो पर ये संभव नहीं हो नही पाया।सांडर्स को मारना ही पड़ा था वरना वो बर्बरता पूर्वक हिंदूस्तानियों को मारता ही रहता।
अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे इसके लिये भगत सिंह और बटुकेश्वर ने मिलकर निर्धारित योजनानुसार 8 अप्रैल 1929 को केंन्द्रीय असेम्बली में जहां जगह खाली थी किसी के मरने की उम्मीद नहीं थी वहां बम फैंका था साथ में भगत सिंह ने पर्चे भी फैंके जिसमे लिखा था" आदमी को मारा जा सकता है उसके विचारों को नहीं बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगो को सुनाने के लिये ऊंची आवाज जरूरी है" इसके बाद वो फिर खुद ही गिरफ्तार हुये ताकि लोगों तक ये मैसेज पहुचें कि बिना खून खराबा किये वो चाहते थे कि अंग्रेजों की ज्यादतियां खत्म हों और देश को आजादी मिले शायद भगत सिंह ने अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिये ये लोहा उनसे लिया हो पर वो लम्हा शत प्रतिशत रूह तक कांप जाने वाला रहा होगा,पहले से ही उन पर ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स को मारने का मुकदमा चल रहा था और इस बम कांड के बाद देशद्रोह और हत्या का मुकदमा भी चलाया गया जिसके तहत भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गयी।
भगत सिंह ने अपनी फांसी से पहले एक खत भी लिखा था जिसमे उन्होने साफ साफ लिखा था कि वो कैद में रहकर या पाबंद रहकर नही जीना चाहते।वो एक हिन्दूस्तानी हैं उनका नाम अब हिन्दूस्तानी क्रान्ति का प्रतीक बन चुका है।हंसते हंसतं जब वो फांसी पर चड़ेंगे तो देश की मातायें अपने बच्चों से भगत सिंह की उम्मीद करेंगी इससेदेश के लिये कुर्बानी देने वालों की तादात इतनी बढ़ जायेगी कि क्रान्ति को रोकना मुश्किल हो जायेगा"।
सामने मौत हो और बातें देश की आजादी की करने वाले विरले ही थे वो जो छोटी सी उम्र में कुर्बान हो गये। 23 मार्च1931 के बाद के सारे अखबारों में फांसी की चर्चायें ज्यादा रही कुछ अखबारो में जवाहर लाल नेहरु का भी बयान आया था सामने कि उन्हे अफसोस है तीनी की मौत का।
भारत के इतिहास में आजादी की लड़ाई की ये सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण घटना साबित हुई। आज भी भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव का नाम लेने मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं