महामंदी - "द ग्रेट डिप्रेशन" ! वो दौर जब लोग अपने ही बच्चे बेचने पर मजबूर हो गए थे।

1929 से 1939 तक का वक्त इतिहास में सबसे खराब आर्थिक मंदी का दौर रहा था,स्टॉक मार्केट बुरी तरह धराशायी हो गया था,आद्यौगिक रूप से वो पूरा एक साल द ग्रेट डिप्रेशन का नाम से जाना जाता है।आपको जाकर ताज्जुब होगा कि महामंदी के उस दौर में लोग अपने बच्चे तक बेचने पर मजबूर हो गए थे।इश्तेहारों के ज़रिए लोग अपने बच्चों को बेचने लगे थे ताकि बेरोजगारी की मार के बाद दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम हो सके।
पूरी दुनिया मे कोरोना वायरस वजह से आज जो हालात बन गए है कही ये इतिहास की पुनरावृत्ति की तरफ़ तो इशारा नही कर रहे।चलिए इतिहास के उन पन्नो को खंगालते हैं जब द ग्रेट डिप्रेशन की वजह से पूरी दुनिया सकते में आ गयी थी।1929 के स्टॉक मार्केट क्रैश होने के बाद वॉल स्ट्रीट को दहशत में डाल दिया था,जिस की वजह से लाखों निवेशकों का सफाया हो गया।दरअसल 1920 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था का तेजी से विस्तार हुआ और अमेरिका की कुल संपत्ति 1920 से लेकर 1929 के बीच ही दोगुनी हो गयी थी, अमेरिका में इस पीरियड को द रोअरिंग ट्वेंटिस कहलाई।
न्यूयॉर्क सिटी में वॉल स्ट्रीट पर न्यूयॉर्क स्टॉक में करोड़पतियों के साथ साथ रसोइयों और चौकीदारों तक ने अपनी बचत को स्टॉक मार्केट में डाल दिया,लेकिन 1929 में शेयर मार्केट में अस्थिरता आने लगी और 24 अक्टूबर 1929 को एक ही दिन में करीब 5 अरब डॉलर डूब गए,शेयर मार्केट का गिरना अगले दिन भी जारी रहा,जिन लोगो ने अपना पैसा शेयर मार्केट में लगाया उनके पसीने छूटने लगे,उस वक्त 14 अरब डॉलर का नुकसान हुआ,29 अक्टूबर 1929 को मंगलवार था और बुरी तरह मार्किट गिरने की वजह से उस दिन को ब्लैक ट्यूजडे भी कहा गया।मंडी का वो दौर सेकंड वर्ल्ड वॉर के शुरू होने तक चला।
इस महामंदी की कोई एक वजह नही थी ,कई महत्वपूर्ण वजहों में बाजार में बराबर मांग का ना होना,बैंकों का परास्त होना,शेयर मार्केट में तेज़ी से गिरावट आना प्रमुख तौर पर गिने जाते हैं।इन्ही वजहों से कंपनियों का स्टॉक बढ़ा ,उत्पादन घटा, नौकरियां भी छीन गयी,लोगो ने बैंकों के कर्ज चुकाने मजबूरी में बन्द कर दिए,बैंकों की हालत खस्ता हो गयी ,लोन मिलने बन्द हो गए,इतना ही नही जिन लोगो का पैसा बैंकों में सेविंग एकाउंट में रखा था उन्होंने भी डर की वजह से पैसा निकालना शुरू कर दिया,इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा तकरीबन 9 हज़ार बैंकों का दिवालिया निकल गया।अमेरिका में आई इस महामंदी का असर पूरी दुनिया मे हुआ।अमेरिका में 1 करोड़ 30 लाख लोग बेरोजगार हो गए,यूरोप में आर्थिक मंदी बढ़ी तो अमेरिका का योरोपीय कर्ज डूबने की कगार पर आ गया,उस वक्त अमेरिका के पास अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने का एक ही विकल्प बचा वो था सैन्य प्रसार प्रचार जिसने बेरोजगारी के संकट को काफी हद तक कम किया दूसरा हथियारों के उत्पादन से अर्थव्यवस्था में जान डाली गई।आज भी देख लीजिए अमेरिका की अर्थव्यवस्था हथियारों की बिक्री पर ही ज़्यादा टिकी हुई है।सेकंड वर्ल्ड वॉर में भी अमेरिका ने खूब हथियार बेचे जिसके बाद ही अमेरिका दुनिया मे सुपर पावर देश बना।
कोरोना महामारी की वजह से ग्लोबली इकोनॉमी पर हो रहा बुरा असर 1929 के ही द ग्रेट डिप्रेशन को दोहरा रहा है। गौर करे कि कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच दो महीने पहले उच्चतम स्तर पर रहने वाला स्टॉक मार्केट में आज 50 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। तेल की बढ़ी आपूर्ति और मांग में कमी के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की तरफ से कोरोना पर 24 जनवरी को हुई पहली बैठक के बाद से अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में 50 फीसदी की गिरावट आई थी,कोरोना का दुनिया के व्यवसायों पर असर साफतौर पर देखा जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी चेताया है कि इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 1929 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी, पूरी दुनिया मे प्रति व्यक्ति आय भी घटेगी।अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का ये भी मानना है कि 2020 का साल वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए काफी खराब रहने वाला है,IMF की निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जिवा ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि 2020 में दुनिया के 170 से अधिक देशों में प्रति व्यक्ति आय घटेगी।जॉर्जिवा ने ये भी कहा कि दुनिया ऐसे संकट से जूझ रही है, जो उसने पहले कभी नहीं देखा था, कोविड-19 ने हमारी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को काफी तेजी से खराब किया है, ऐसा हमने पहले कभी नहीं देखा था।महामारी से अरबों लोग प्रभावित जॉर्जिवा ने कहा कि इस वायरस से लोगों की जान जा रही है और इससे मुकाबले के लिए लॉकडाउन करना पड़ा है, जिससे अरबों लोग प्रभावित हुए हैं, कुछ सप्ताह पहले सब सामान्य था,बच्चे स्कूल जा रहे थे, लोग काम पर जा रहे थे, हम परिवार और दोस्तों के साथ थे, लेकिन आज यह सब करने में जोखिम है।जॉर्जिवा ने कहा कि दुनिया इस संकट की अवधि को लेकर असाधारण रूप से अनिश्चित है। लेकिन यह पहले ही साफ हो चुका है कि 2020 में वैश्विक वृद्धि दर में जोरदार गिरावट आएगी।
उन्होंने आगे कहा कि हमारा अनुमान है कि हम महामंदी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट देखेंगे। सिर्फ तीन महीने पहले हमारा अनुमान था कि हमारे 160 सदस्य देशों में 2020 में प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी, अब सब कुछ बदल गया है,अब 170 से अधिक देशों में प्रति व्यक्ति आय घटने का अनुमान है,महामंदी को दुनिया की अर्थव्यवस्था के सबसे बुरे दौर के रूप में जाना जाता है,इसकी शुरुआत 1929 में अमेरिका में वॉलस्ट्रीट पर न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के ‘ढहने’ से हुई थी, महामंदी का दौर करीब दस साल चला था।