चल पड़ी देहरादून के घंटाघर की धड़कन

देहरादून की धड़कन घंटाघर की वर्ष 2007 से बंद पड़ी सुईया फिर से शुरू हो गई हैं,बंगलुरू से तकरीबन साढ़े नौ लाख रुपये में मंगाई गयी छह डिजिटल घडी को स्थापित कर दिया है।घंटाघर के सौंदर्यीकरण की योजना साल 2007 में शुरु हुई थी,जब इसकी सुईयों ने काम करना बंद कर दिया था। उस दौरान एक निजी कंपनी ने यह जिम्मा उठाया मगर केवल घड़ी ठीक कराने पर सहमति दी गई।डीपीआर बनी मगर मामला टेंडर तक पहुंच खत्म हो गया।पुराने जमाने की मशीन और पुरानी तकनीक का उपचार न मिलने पर 2008 में नगर निगम ने घंटागर की सुईयां चलाने पर दूसरे विकल्प तलाशे।इसकी मशीन की मरम्मत कराकर घड़ी चलाने की कोशिश की गई,लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका।फिर नईं घडियां व मशीन लगाने पर विचार हुआ,लेकिन बजट का अभाव इस राह में रोड़ा बना।फिर ओएनजीसी ने पहल की एवं इसके सौंदर्यीकरण के लिए सीएसआर फंड से 80 लाख रुपये देने की बात कही।इसका काम दो साल पहले शुरु कराया जाना था,लेकिन इसकी नींव कमजोर मिली,फिर ब्रिडकुल के जरिए पहले इसकी नींव मजबूत की गई और अब सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है।