उत्तराखंड:रहस्यों से भरा है उत्तराखंड का इतिहास अल्मोड़ा जिले के तालेश्वर के इन रहस्यों को जानकर चौंक जाएंगे आप

उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नही कहा जाता,यहां के कण कण में अलौकिक शक्तियों का वास है।उत्तराखंड के मंदिर न सिर्फ लोगों की अगाध आस्था के केंद्र हैं, बल्कि यहां के कई मंदिर तो अपने अंदर बरसो पुराना इतिहास भी समेटे हैं। उत्तराखंड के कई मंदिर उत्कृष्ट वास्तु शिल्प और बेहतरीन हुनर के नायाब उदाहरण के रूप में भी जाने जाते हैं, इन्हीं मंदिरों में एक है स्याल्दे तहसील के देघाट से लगा तालेश्वर शिव मंदिर, जो अपने अंदर तमाम रहस्य समेटे हुए है। कुमाऊं और गढ़वाल की सीमा पर ही तालेश्वर गांव स्थित है।कहते हैं कि इस गांव में वर्ष 1915 में गांव के कुछ लोगों को खुदाई के दौरान दो ताम्रपत्र मिले थे, जिन्हें ग्रामीणों ने गांव में बने मंदिर में रखवा दिया था। सन 1963 में इसी गांव के एक ग्रामीण ने इन ताम्रपत्रों के महत्व को समझते हुए उन्हें लखनऊ स्थित संग्रहालय में रखवा दिया। जब इन ताम्रपत्रों का अध्ययन किया गया तो पता चला कि यह ताम्रपत्र पांचवी सदी में बनाए गए थे, इनमें से एक ताम्रपत्र ब्रह्मपुर राज्य के नरेश ध्रुतिवर्मन और दूसरा ताम्रपत्र राजा विष्णुवर्मन ने बनवाया था, इन ताम्रपत्रों में लिखी गई लिपि उड़ीसा में मिले शिलालेखों के लिपि से मिलती जुलती थी, इन ताम्रपत्रों के साथ साथ यहां के लोगों को खुदाई में भैरव, नंदादेवी और वामनस्वामी की मूर्तियां और मंदिर भी प्राप्त हुए।,इनमें चौथी सदी की बनी गणेश की मूर्ति भी शामिल है।


सन 1992 में प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. शिवप्रसाद ने इस गांव का दौरा किया तो उन्होंने वाहनस्वामी की मूर्ति को ताम्रपत्र में उल्लेखित बताया। इसके बाद सन 2008 में यहां फिर लाल ईंटों की जेड आकार लिए एक दीवार खुदाई में मिली,इस दीवार में लगी ईंटें भी अध्ययन के बाद लगभग 1800 साल पुरानी कुषाणकालीन की बताई गई, समय के साथ साथ इस गांव के ग्रामीणों को खुदाई के दौरान कई ऐतिहासिक चीजें मिलती रही। स्थानीय लोगों ने बताया कि खुदाई में पौराणिक रहस्यों के खुलने के बाद कई बार पुरातत्व विभाग से पौराणिक धरोहरों को सहेजने की मांग की गई, लेकिन पुरातत्व विभाग ने कभी इस गांव की सुध नहीं ली। इससे ग्रामीणों को आज तक निराशा ही हाथ लगी है।इस गांव में स्थापित शिव मंदिर श्रद्धालुओं की अगाध आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि स्वर्गारोहण के समय पांडव लंबे समय तक यहां रहे और बड़े भाई युधिष्ठिर के कहने पर उनके भाइयों ने यहां कई मंदिरों का निर्माण किया, ऐसा माना जाता है कि धरती के गर्भ से जो मंदिर और मूर्तियां निकल रही हैं वह उसी दौर की बनी होंगी। तालेश्वर में स्थित शिव मंदिर को आज भी लोग पांडवों की अंतिम निशानी मानते हैं और यहां आकर भगवान शिव की आराधना करते हैं।तालेश्वर गांव में समय समय पर कई मूर्तियां मिली है, जिनका निरीक्षण किया गया है, लेकिन इस गांव में निर्माण कार्य होने के कारण इन स्थलों का मौलिक स्वरूप बदल गया है। इसलिए इस गांव के गहन अध्ययन की जरूरत है, इसके लिए प्रयास जारी हैं।