आवारा पशुओं का कानूनी अभिभावक भी हुआ गायब ! धरातल की स्थिति बेहद दयनीय

बीते कुछ सालों से भारतीय मीडिया समेत अंतरराष्ट्रीय मीडिया में गाय ही सबसे अधिक सुर्खियां बटोरने वाला जानवर बन गया। गौ रक्षकों ने पूरे भारत में आंदोलन चलाया जगह जगह से बंधुआ गायों को कटने से भी बचाया।

कई नामचीन नेताओं ने भी गायों की सुरक्षा और उनके संरक्षण को लेकर घोषणाएं की।हिमाचल प्रदेश में तो गाय को राष्ट्रीय माँ तक घोषित करने के लिए प्रस्ताव पारित करने को कहा गया,इस प्रस्ताव को पेश करने में नेता अनिरुद्ध सिंह का नाम सामने आया,जिसने कहा था कि गाय किसी भी तरह की जाति धर्म सम्प्रदाय से नही जुड़ी है बल्कि इसका मानवता में बड़ा योगदान है।

दिल्ली राजस्थान पंजाब जैसे राज्यो में तो गाय आश्रय केंद्र तक बनाये गए हैं,वही यूपी में गायों के गले मे रेडियम के पट्टे  लगाने की कवायद शुरू हो गयी ताकि राह से गुजरने वालों को दूर से ही गाय नज़र आ जाये।गौ रक्षा निश्चित रूप से सराहनीय कदम है लेकिन क्या वास्तव में आज गौ रक्षा हो रही है ? गाय की बछिया हो जाये तो बहुत अच्छा अगर बछड़ा हो जाये तो उसकी दुर्गत भी निश्चित है,ठीक उसी तरह जिस तरह इंसानों में लड़की के होने पर रोना और लड़के के होने पर दावत दी जाती है। बछिया बड़ी होगी तो दूध भी देगी लेकिन बछड़े अब हल जोतने के भी काम नही आ रहे क्योंकि उनकी जगह अब खेतो में ट्रेक्टरों ने ले ली है, इसलिए बछड़ो को नकारा समझ कर या तो मार दिया जा रहा है या सड़को पर छोड़ दिया जा रहा है ।

भारत मे गायों की संख्या अनुमानित तौर पर 20 करोड़ है गाय बछिया देगी या बछड़ा ये 50-50 प्रतिशत होता है साल भर में करीब 10 करोड़ बछड़ो ने जन्म लिया तो इनमें से अधिकांश बछड़ो का कत्ल होना निश्चित है।स्लाटर हाउस में इन्ही में से ज़्यादातर बछड़ो की बलि चढ़ जाती है।


उत्तराखंड में हाइकोर्ट भी आवारा पशुओं को लेकर 2018 में सख्त होता दिखाई दिया था 6 महीने के भीतर आवारा पशुओं के लिए शेल्टर बनाये जाएं के निर्देश भी दिए थे इतना ही नही हाइकोर्ट स्वयं गायों और तमाम आवारा पशुओं का कानूनी अभिभावक भी बन गया था और कुल मिलाकर 31 अति आवश्यक निर्देश भी दिए थे जिसमें सबसे अहम निर्देश था कि हर 25 गांवों के बीच गाय के लिए शेल्टर होम खोला जाएगा,साथ ही उन लोगो के खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा जो मवेशियों को आवारा छोड़ देते हैं,हाइकोर्ट के उन निर्दशों में ये निर्दश भी शामिल थे आप भी एक नज़र डालिये फिर चिंतन मनन कीजियेगा कि गाय समेत तमाम आवारा पशुओं के अभिभावक बना हाइकोर्ट आज कहां है? 


हाई कोर्ट द्वारा जारी कुछ महत्वपूर्ण निर्देश ज़रा गौर से पढियेगा -


1.गायों और आवारा पशुओं की हत्या नहीं की जा सकती

उत्तराखंड में किसी भी गाय, बैल, सांड़, बछिया या बछड़े का अब कोई व्यक्ति वध नहीं करेगा या इनके वध में किसी भी तरह से कोई सहयोग नहीं देगा।


2.कोई व्यक्ति गाय, बैल, सांड़, बछिया या बछड़े को सीधे या किसी एजेंट या नौकर या इनकी ओर से काम करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से इनको वध करने के लिए नहीं भेजेगा।


3.कोई व्यक्ति गोमांस या गोमांस से जुड़े उत्पादों की उत्तराखंड राज्य में कहीं भी बिक्री नहीं हो सकता है।

आवारा जानवरों के मालिकों के खिलाफ कार्रवाई

अगर कोई पशु गलियों, सड़कों या सार्वजनिक स्थलों पर घूमता पाया जाता है तो उसके मालिकों के खिलाफ आईपीसी और विभिन्न पशु संरक्षण कानूनों के तहत कार्रवाई होगी।


4.सड़कों पर आवारा जानवर नहीं दिखने चाहिएं,उत्तराखंड के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों व राज्य राजमार्गों के मुख्य अभियंताओं को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि कोई आवारा पशु सड़क पर न आए।

5.नगर निगमों, निगम निकायों, नगर पंचायतों और ग्राम पंचायतों के प्रधानों के कार्यपालक अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र से गुजरने वाली सड़कों को आवारा पशुओं से मुक्त रखेंगे और ट्रैफिक सुचारू चले यह सुनिश्चित करेंगे।


6.आवारा पशुओं को सड़कों से हटाये जाने के क्रम में इन पशुओं के साथ कोई क्रूरता नहीं होनी चाहिए। अगर इन पशुओं को किसी वाहन में ले जाया जा रहा है तो यह सुनिश्चित किया जाए कि इन वाहनों की गति 10-15 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक नहीं होनी चाहिए और रैंप बनाए जाने चाहिएं।


7.डॉक्टर आवारा पशुओं का इलाज करेंगे,उत्तराखंड के सभी सरकारी पशु चिकित्सकों को निर्देश दिया जाता है कि वे आवारा पशुओं का इलाज करेंगे। अगर कोई आवारा पशु किसी तरह के चोट या बीमारी से ग्रस्त अहि तो नगर निगम निकाय, नगर पंचायत और सभी ग्राम पंचायत के अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि उनका उचित इलाज किया जाए।


8.गौशालाओं का निर्माण किया जाएगा,सभी नगर निगम, निगम इकाई, जिला परिषद अपने-अपने क्षेत्रों में गौशालाओं और आवारा पशुओं के लिए आश्रय का निर्माण आज से एक साल के अंदर करेंगें।


9.सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि आज से एक साल के अंदर राज्य के सभी 25 जिलों में गौशाला/गौसदन का निर्माण किया जाएगा।


10.गायों की सुरक्षा के लिए एक दल बनाया जाएगा,इस दल का नेतृत्व डीएसपी से कम रैंक का अधिकारी नहीं करेगा और कुमाऊँ और गढ़वाल में इस दल में एक एक पशु चिकित्सक भी होंगे।


11.आज से तीन माह के भीतर राज्य में सभी गौशालाओं को किसी भी तरह के अतिक्रमण से मुक्त करा लिया जाएगा।गस्ती दल यह सुनिश्चित करेगा कि गायों का वध न हो।


12.उत्तराखंड के सभी जिला के सीओ को निर्देश दिया जाता है कि विशेषकर मैदानी इलाके के गांवों में दिन में एक बार गश्त की जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी गाय का वध न किया जा सके।


13.सभी धर्मों के धर्म गुरुओं को गौशाला/गौसदन के निर्माण में सहयोग करने का निर्देश दिए गए ।


14.जब किसी पशु को कहीं ले जाया जाएगा तो उसके नाक, पैर या गर्दन को छोड़कर कोई और अंग बांधा नहीं जाएगा। अगर उनकी ढुलाई के क्रम में उनको बंधना जरूरी है तो फिर उनको ऐसीरस्सी से बांधा जाएगा जिसमें ऊपर गद्दे लगे हों।राज्य सरकार सभी जिलों में पशुओं के खिलाफ क्रूरता रोकने से संबंधित संस्था का गठन करेगी ।




15.किसी पिंजरापोल में अगर पशुओं को भेजा जाता है तो उसको भेजने पर आने वाला खर्च पशु का मालिक देगा।


16.अगर कोई व्यक्ति गाय के किसी बच्चे को आवारा छोड़ देता है तो राज्य सरकार उसके खिलाफ उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज करेगा।


ये सभी निर्देश आज धरातल पर कहीं दिखाई नही देते,एक तरफ गौ रक्षा का शोर तो दूसरी तरफ गौशालाओं का बन्द होना,एक तरफ दिखाई देती है तो सिर्फ दूध देती गाय तो उसके नन्हे से बछड़े को सड़कों पर छोड़ दिया जाता है ,गाय भी तभी तक अजीज है जब तक वो दूध दे रही है दूध देना जहाँ बन्द हुआ वहाँ वो किसी काम नही ,फिर उसे कटने को छोड़ दिया जाता है ,गायों और आवारा पशुओं के अभिभावक भी भूल गए कि इन पशुओं को शेल्टर होम उपलब्ध करवाना उनकी जिम्मेदारी थी केवल निर्देश देना नही।

ये कड़वा सच है कि गौ हत्या का जितना दोषी एक कसाई है उतना ही दोषी गायों का पालक और अभिभावक बने वे सभी सरकार /गैर सरकारी संगठन भी उतने ही दोषी है ।

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने आदेश तो दे दिए लेकिन आज तक पूर्ण रूप से आदेशों का पालन भी नही हो पाया ,प्रायः 

छोड़ी हुए गाय,बछड़े इत्यादि शहरी इलाकों में यातायात को भी बाधित करते है जो दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण है 12 सितंबर 2020 को भारतीय सेना के दो अधिकारी गाय के हाइवे पर आ जाने के चलते मौत के मुंह मे चले गए,दोनों सैन्य अभ्यास में शामिल होने जा रहे थे,ये हादसा बीकानेर के एक हाइवे पर हुआ जिसमें कर्नल मनीष चौहान और मेजर नीरज शर्मा की मौत हो गयी और दो अन्य जवान घायल हो गए।ये तो केवल एक उदाहरण है ऐसे ना जाने कितने हादसे आये दिन होते है जब आवारा पशु सड़को के बीच आ जाते हैं

बहरहाल इस देश मे गौ रक्षा के लिए इंसान ही इंसान का खून बहाने को तैयार है पाखंड का चोला पहनकर अपने निजी स्वार्थ को कैश कराने के लिए गाय से अच्छा मुद्दा मिलेगा भी कहां यही सोचकर गाय को तिलक भी लगा लो,और गाय के नाम पर खूब लूट भी लो लेकिन जब यही गाय या उसके बछड़े सड़को पर आवारा घूमे तो नज़र फेर लो।भारत मे गौ मांस पर प्रतिबंध लग सकता है लेकिन बूढ़ी गाय और उसके बछड़े को बचाने के लिए कोई अभिभावक नही आता ।