अजय भट्ट के अथक प्रयासों से कुमाऊँनी और गढ़वाली भाषाओं पर संसद में विधेयक किया गया स्वीकार

सदियों से बोली जाने वाली उत्तराखंड की मुख्य कुमाउनी और गढ़वाली भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने लिए नैनीताल के सांसद अजय भट्ट ने लोकसभा में निजी विधेयक पेश कर एक अलख जगा दी है।इस विधयेक को लोकसभा में स्वीकार कर लिया गया है।भाषाओं के विधेयक के अलावा अजय भट्ट ने लोकसभा में समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण विधेयक भी पेश किए जिन्हें स्वीकार कर लिया गया है।

अजय भट्ट ने विधेयक देने के बाद मीडिया से कहा कि उत्तराखंड के लाखों लोगों द्वारा बोली और लिखी जाने वाली इन भाषाओं को अभी तक राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता नही दी गयी,वो भी तब जब कि मध्य हिमालय के इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ये भाषाएँ बोली जा रही हैं।भट्ट ने ये भी कहा कि 13वीं शताब्दी से पहले जब हिंदी भाषा अस्तित्व में नही थी तब भी सहारनपुर से हिमाचल तक फैले गढ़वाल राज्य का राजकाज गढ़वाली भाषा मे ही किया जाता था।संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता दी गयी है,लेकिन अब लोकसभा में विधेयक दिया गया है उत्तराखंड की भाषाओं को भी मान्यता मिलनी ही चाहिए।

आपको बता दे कि देवप्रयाग मंदिर में 1335 के दानपात्र पर उत्कीर्ण लेख,देवलगढ़ में अजयपाल का 15वीं शताब्दी का लेख ,बद्रीनाथ और मालद्युल में मिले ताम्रपत्रों पर दर्ज लेख गढ़वाली के प्राचीन भाषा होने के संकेत हैं।