उत्तराखंड: 'मि उत्तराखंडी छौं' कार्यक्रम के पहाड़ी परिधान फैशन शो में डीएम स्वाति एस भदौरिया का दिखा पारंपरिक लुक! डीएम ने गढ़वाली में कहा सुण दीदी सुण भुली, मैं त अपणी संस्कृति बचौंण चली।
देवभूमि उत्तराखंड में पारंपरिक परिधान और आभूषण महिलाओं को खास बनाती हैं। उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत को देखने सालभर देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। कुछ ऐसा ही 'मि उत्तराखंडी छौं' कार्यक्रम में भी देखने को मिला, यहां महिलाओं के उत्तराखंडी परिधान और आभूषण ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा. डीएम स्वाति एस भदौरिया ने पारंपरिक पहाड़ी परिधान पहनकर प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन किया। डीएम स्वाति ने पारंपरिक उत्तराखंडी परिधान के साथ ही मांग टीका, गुलोबंद, कानों में झुमके और नथ पहना हुआ था। इस दौरान वे ठेठ पहाड़ी कल्चर में रंगी नजर आईं।
ये कार्यक्रम श्रीनगर के गोला बाजार में बैकुंठ चतुर्दशी मेले के दौरान आयोजित किया गया था। पहाड़ी परिधान प्रतियोगिता ने मानो पूरी वादी को सतरंगी चूनर ओढ़ा दी। “मि उत्तराखंडी छौं” कार्यक्रम, जो स्थानीय संस्कृति, परंपरा और मिट्टी की सोंधी खुशबू को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का संकल्प लिए था, उसी मंच पर डीएम स्वाति एस. भदौरिया ने धमाकेदार शिरकत की।

मेयर, उपजिलाधिकारी, तहसीलदार, सभी पार्षद, स्थानीय महिलाएं, युवा और स्कूली बच्चे—सबने पारंपरिक वेशभूषा में कदम ताल करते हुए ऐसा समां बांधा कि बाजार की गलियां भी थिरकने लगीं। पिछौड़े की लहराती चुनरियां, घाघरे की झालरें, गुलोबंद की चमक और नथ-झुमकों की झंकार—हर तरफ पहाड़ की शान बिखर रही थी।
जिलाधिकारी ने गढ़वाली में कहा कि “सुण दीदी सुण भुली, मैं त अपण संस्कृति बचौंण चली”। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम केवल गढ़वाली परिधान का नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने की एक मुहिम है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि पर्वों, शादियों और विशेष अवसरों पर पारंपरिक गढ़वाली, कुमाऊंनी या पहाड़ी वेशभूषा अवश्य धारण करें, क्योंकि यही हमारी पहचान और एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि मेलों का असली उद्देश्य उत्साह, सहभागिता और सांस्कृतिक जुड़ाव है. यह सिर्फ एक प्रतियोगिता नहीं, बल्कि उत्तराखंड की जीवंत आत्मा का उत्सव था, जहां हर चेहरा गर्व से चमक रहा था और हर कदम संस्कृति की धुन पर नाच रहा था।