इतिहास:जवाहरलाल नेहरू और फिर मुरली मनोहर जोशी के साथ नरेंद्र मोदी भी फहरा चुके हैं लाल चौक पर तिरंगा!तब हालात कुछ और थे,मिलती थी धमकियां,श्रीनगर के बाजारों में नही बिकता था तिरंगा!एकता यात्रा कब और किसने निकाली थी जानिए ये रोचक इतिहास
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा जम्मू कश्मीर तक पहुंच चुकी है। पिछले 5 महीनों से ये यात्रा जोरो शोरो से चल रही है बरसात हो या ठंड राहुल गांधी हॉफ टीशर्ट में पूरे जोश के साथ भारत जोड़ो यात्रा में चलते जा रहे है। 30 जनवरी 2023 को श्रीनगर में इस यात्रा को समाप्त किया जाएगा। 29 जनवरी को राहुल गांधी ने श्रीनगर की सबसे ज्यादा चर्चित जगह लाल चौक पर तिरंगा फहराया जो सोशल मीडिया में खूब सुर्खियां बटोर रहा है।
जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद ही यहां तिरंगा फहराया गया था उससे पहले श्रीनगर के लाल चौक पर न तो तिरंगा फहराने की हिम्मत किसी न कि न ही ऐसी कोई खबर ही सुनाई दी। हालांकि धारा 370 हटने से पहले भी यहां तिरंगा फहराया गया था लेकिन तब माहौल कुछ और था।
आइये जानते है श्रीनगर के लाल चौक का इतिहास और यहां कब कब किस किस ने तिरंगा फहराया ये भी जानते है।
अगस्त 2019 में धारा 370 हटने के बाद से तो लाल चौक पर तिरंगा फहरा रहा है लेकिन उसके पहले ऐसा करना वहां खतरे से खाली नहीं था. लाल चौक का नाम मॉस्को के रेड स्क्वॉयर के आधार पर रखा गया था. 1980 में इस जगह पर एक घंटाघर बना और इसके बाद से ये जगह राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गई. इसी के कुछ समय बाद यहां आतंकवाद ने अपने कदम जमाने शुरू कर दिए. इस दौर में लाल चौक पर कड़ी सुरक्षा रहती थी. गणतंत्र दिवस के दिन भी यहां तिरंगा नहीं फहराया जाता था.
मुरली मनोहर जोशी ने फहराया तिरंगा
1991 का साल था. बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी ने कन्याकुमारी से एकता यात्रा निकाली. यात्रा कश्मीर के श्रीनगर पहुंची जहां लाल चौक पर झंडा फहराया जाना था. इस दौरान उनके साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे. जो उस समय यात्रा के व्यवस्थापक थे. जोशी ने कहा था कि वे लोग वहां 26 जनवरी को तिरंगा फहराना चाहते थे. लोगों के पास वहां तिरंगा ही नहीं था. लोगों ने बताया कि यहां तिरंगा नहीं मिलता है. इसके बाद हम लोगों ने लाल चौक पर तिरंगा फहराने का फैसला किया.
1948 में पंडित नेहरू ने भी फहराया था
मुरली मनोहर जोशी के झंडा फहराने की घटना की पूरे देश में चर्चा हुई लेकिन लाल चौक पर इससे पहले भी झंडा फहराया जा चुका था. साल 1948 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी यहां झंडा फहराया था. मौका था पाकिस्तान पर भारत की जीत का. उस समय जवाहरलाल नेहरू के साथ शेख अब्दुल्ला भी मौजूद थे. तिरंगा फहराए जाने के बाद शेख अब्दुल्ला ने अमीर खुसरो की कविता भी पढ़ी थी, शेख अब्दुल्ला ने आमिर खुसरो की लिखी पर्शियन कविता जो पढ़ी थी वो ये है।
‘मन तू शुदम तू मन शुदी,
मन तन शुदम तू जान शुदी,
ताकस न गोयद बाद अज़ीन,
मन दिगारम तू दिगारी’
इसका हिंदी में अर्थ है…
‘मैं आप बन गया और आप मैं बन गए।
मैं आपका शरीर बन गया और आप मेरी आत्मा बन गए।
अब कोई कह नहीं सकता कि हम अलग-अलग हैं।
इस दौरान नेहरू ने लाल चौक से कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का वादा भी किया था, लेकिन यह हुआ कभी नहीं। कश्मीरियों ने उस वक्त इसे बड़े विश्वासघात के तौर पर देखा। इसके बाद 1949 में नेहरू ने सबसे पहले शेख अब्दुल्ला को बीपीएल बेदी को हटाने के लिए कहा। बीपीएल बेदी मशहूर अभिनेता और डाइरेक्टर कबीर बेदी के पिता थे और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के मेंबर थे। बीपीएल बेदी ने ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए पहला घोषणा पत्र नया कश्मीर लिखा था,बेदी का ये घोषणा पत्र सोवियत यूनियन से प्रभावित था।
बेदी के पास उस वक्त जम्मू-कश्मीर प्रशासन में कोई आधिकारिक पद नहीं था, लेकिन वह सलाहकार की भूमिका में थे। चार साल बाद कश्मीर षड्यंत्र मामले में शेख अब्दुल्ला को देशद्रोह के आरोप में जेल जाना पड़ा।
1975 में एक बार फिर से शेख अब्दुल्ला ने लाल चौक का इस्तेमाल इंदिरा गांधी के साथ हुए समझौते को भीड़ को समझाने के लिए किया। यह वह दौर था जब पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना था और इंदिरा गांधी का रुतबा चरम पर था।
1990 में आतंकवादियों ने चौक पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद लाल चौक पर एक कलर टीवी रख दिया और शर्त लगाई थी कि जो कोई भी यहां पर तिरंगा फहराएगा वह इसे अपने साथ ले जाएगा।
मट्टू के मुताबिक, आतंकियों के मौजूद होने की जानकारी होने के बावजूद NSG कमांडो का एक ग्रुप यहां पर तिरंगा फहराकर यह चुनौती जीत लेता है और कलर टीवी को अपने साथ ले जाता है। NSG ने इस टीवी को कई सालों तक अपनी मेस में रखा। मट्टू लाल चौक को कश्मीर की राजनीतिक आत्मा बताते हैं।
आज राहुल की भारत जोड़ो यात्रा हर न्यूज़ चैनल हर न्यूज़ पेपर की सुर्खियां बटोर रहा है क्या आपको पता है कि कभी बीजेपी ने भी इसी तरह एकता यात्रा शुरू की थी जिसकी तर्ज पर ही आज कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा चल रही है?
आइये जानते है एकता यात्रा के बारे में।
1991 में दिसंबर माह में बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से एकता यात्रा निकाली गई थी। और तब उनके साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी थे। ये एकता यात्रा कई राज्यो से होते हुए जम्मू कश्मीर पहुंची थी और श्रीनगर के लालचौक पर 26 जनवरी 1992 को तिरंगा फहराने का प्रोग्राम था। क्योंकि सर्दियों में राजधानी बदल दी जाती थी। लेकिन हैरानी इस बात की थी कि वहाँ किसी के पास तिरंगा ही नही था, बाजारों में वहां तिरंगा बिकता भी नही था ये बात खुद एक इंटरव्यू मुरली मनोहर जोशी बता चुके है।
वहा 15 अगस्त को भी तिरंगा नही बिकता था एक इंटरव्यू में जोशी कहते हैं कि जब हम वहां पहुंचे तो सवाल खड़ा हुआ कि कितने लोग लाल चौक जाएंगे, क्योंकि हमारे साथ एक लाख लोगों का समूह था। राज्यपाल ने कहा कि इतने लोगों का जाना संभव नहीं है। दूसरी बात ये थी कि वहां आतंकवाद की घटनाएं बहुत हो रही थीं तो यह खतरनाक हो सकता था। साथ ही आतंकियों ने हमले की धमकी दी हुई थी। लाल चौक जंग का मैदान बना हुआ था।
उन्होंने इंटरव्यू में ये भी बताया कि इसके बाद तय हुआ कि मेरे साथ 20 के करीब लोग जा सकते हैं। फिर एक कार्गो जहाज किराए पर लिया गया और 17 से 18 लोग उसमें बैठ कर गए। इसमें नरेंद्र मोदी भी थे। मोदी इस यात्रा के व्यवस्थापक थे। इसके बाद सभी 26 जनवरी 1992 की सुबह लाल चौक पर पहुंचते हैं।
इसके बाद सभी 26 जनवरी 1992 की सुबह लाल चौक पर पहुंचते हैं। आतंकी रॉकेट से फायर कर रहे थे। पांच से दस फीट की दूरी पर गोलियां चल रही थीं। इनके अलावा वो हमें गालियां भी दे रहे थे, लेकिन हम लोगों ने उन्हें सिर्फ राजनीतिक उत्तर ही दिए।
उस दिन यह कहा जा रहा था कि कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है तो हमने अटल बिहारी वाजपेयी की बात दोहराई और कहा कि फिर पाकिस्तान के बिना हिंदुस्तान अधूरा है। इस सब के बीच हम लोग वहां पर 15 मिनट में तिरंगा फहराते हैं। इसके बाद सभी को बुलेटप्रूफ कार में बैठाकर वहां से वापस भेज दिया जाता है।
26 जनवरी 1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के वक्त मुरली मनोहर जोशी और नरेन्द्र मोदी जो कि यात्रा के व्यवस्थापक थे इनके साथ चमनलाल थे, जो उस वक़्त वहां के प्रमुख कार्यकर्ता थे और शायद उस समय जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष थे.पार्टी के उपाध्यक्ष कृष्णलाल शर्मा साथ थे,वो मदनलाल खुराना भी थे.
पश्चिम बंगाल और गुजरात के कुछ लोग साथ थे.झंडा फहराने की व्यवस्था करने के लिए वहां पहले से पहुंचे हुए लोग भी मौजूद थे, लेकिन स्थानीय लोग इसमें शामिल नहीं हो पाए थे। उस वक्त हालात इतने शांतिपूर्ण नही थे जितने आज है तब झंडा फहराने के समय आतंकी धमकियां दे रहे थे कि झंडा फहराने आये बीजेपी पार्टी वालो को मार दिया जाए और ये सभी बच कर न निकल पाएं. ये बात भी मुरली मनोहर जोशी ने एक इंटरव्यू में बताई थी उन्होंने वो पल याद करते हुए कहा था कि वो अशोभनीय गालियां भी हमें दे रहे थे. उनके ट्रांसमीटर इतने पावरफुल थे कि चंडीगढ़ और अमृतसर में लोग उन्हें सुन रहे थे. जब हम तिरंगा फहरा कर लौटे तो चंडीगढ़ के लोगों ने हमें यह बात बताई। लाल चौक पर कभी आतंकियों का खौफ बना रहता था तब तिरंगा तो दूर की बात लोग जय भारत तक कहने में डरते थे।