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जहरीली कफ सिरप का कहरः भ्रष्ट तंत्र की असंवेदनशीलता को उजागर करता मामला! मासूमों की मौत का जिम्मेदार कौन?

 The havoc wreaked by toxic cough syrup: A case that exposes the insensitivity of a corrupt system! Who is responsible for the deaths of innocent people?

नई दिल्ली। देश के कई हिस्सों से ऐसी दर्दनाक खबरें सामने आई हैं, जिनमें खांसी का इलाज करने के लिए दी गई दवा ही बच्चों के लिए मौत का कारण बन गई। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कथित रूप से दूषित कफ सिरप पीने से 18 मासूम बच्चों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह सिर्फ एक दवा की विफलता नहीं, बल्कि शासन, प्रशासन और फार्मा कंपनियों की सामूहिक लापरवाही की भयावह कहानी है। मामला शुरू हुआ मध्य प्रदेश से, जहां नौ बच्चों ने एक ही कंपनी के कफ सिरप पीने के बाद दम तोड़ दिया। इसी तरह राजस्थान में भी बच्चों की जान चली गई। परिवारों का कहना है कि बच्चों को सामान्य खांसी-बुखार था, जिसके लिए स्थानीय डॉक्टरों ने “Coldrif" नामक सिरप लिख दिया। दवा पीने के कुछ घंटों में ही बच्चों की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उल्टियां, सांस लेने में तकलीफ और बेहोशी जैसे लक्षण सामने आए। जांच रिपोर्ट में सामने आया कि सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) जैसे घातक रसायन मौजूद थे। वही जहरीले तत्व जो औद्योगिक उपयोग के लिए बनाए जाते हैं और शरीर के अंदर जाकर किडनी और लिवर को बुरी तरह नुकसान पहुंचाते हैं। यही जहर इन मासूमों की मौत का कारण बना। 

फार्मा कंपनियां, भ्रष्ट जांच व्यवस्था और कागजी कार्रवाई
सिरप का निर्माण तमिलनाडु स्थित Sresan Pharma ने किया था, जबकि इसका वितरण राजस्थान की Kayson Pharma के माध्यम से हुआ। सरकारी रिपोर्टों में पाया गया कि इन कंपनियों ने न तो गुणवत्ता जांच की प्रक्रिया का पालन किया और न ही परीक्षण लैब से प्रमाणपत्र लिया। दवा नियंत्रण विभाग पर भी गंभीर सवाल उठे हैं। जिन लैब्स में दवा की टेस्टिंग होनी चाहिए थी, वे महीनों से निष्क्रिय थीं। ड्रग इंस्पेक्टरों की कमी और भ्रष्टाचार ने पूरे सिस्टम को पंगु बना दिया। यही कारण है कि जहरीली दवा बाजार तक पहुंच गई और निरीक्षण के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई होती रही। पहली मौत की सूचना आने के बाद भी स्थानीय प्रशासन ने इसे “सामान्य संक्रमण” मानकर मामला दबाने की कोशिश की। जब तक मौतों की संख्या बढ़ी, तब तक जहरीले सिरप की हजारों शीशियां गांवों और कस्बों में पहुंच चुकी थीं। अब जाकर मध्य एमपी सरकार ने तीन ड्रग इंस्पेक्टरों को निलंबित किया है और एसआईटी गठित की है। राजस्थान सरकार ने भी ड्रग कंट्रोलर को सस्पेंड किया और संबंधित कंपनी के उत्पादों को बाजार से वापस बुला लिया है। पर सवाल यह है कि क्या इतनी बड़ी त्रासदी के बाद ही कार्रवाई होगी? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब 19 फार्मा यूनिटों की जांच शुरू की है और राज्यों को कफ सिरप के उत्पादन पर सख्त निर्देश जारी किए हैं। वहीं, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मध्य प्रदेश,  राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों को नोटिस जारी कर पूछा है कि मासूमों की मौत रोकने के लिए समय रहते कदम क्यों नहीं उठाए गए।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और गुस्सा
राजनीतिक गलियारों में इस घटना को लेकर तीखी बयानबाजी जारी है। राजस्थान के पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि सरकार बच्चों की मौतों को छिपाने की कोशिश कर रही है। यह स्वास्थ्य विभाग की सबसे बड़ी नाकामी है। मध्य प्रदेश में विपक्ष ने इसे ‘प्रशासनिक हत्या बताया’ और दोषियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की। उधर, पीड़ित परिवार आज भी न्याय की उम्मीद में हैं। शिवपुरी की एक मां ने मीडिया से कहा कि हमने अपने बच्चे को इलाज के लिए सिरप दिया था, मौत के लिए नहीं। यह एक वाक्य पूरे तंत्र की असंवेदनशीलता को उजागर करता है।

लाभ का लालच, कब सुधरेगा सिस्टम
दवा बनाने वाली कंपनियों से लेकर नियामक एजेंसियों तक, सबकी जिम्मेदारी तय करना अब अनिवार्य है। जब तक गुणवत्ता जांच पारदर्शी और जवाबदेह नहीं होगी, तब तक “इलाज” के नाम पर मौतें होती रहेंगी। कफ सिरप से बच्चों की मौतें महज हादसा नहीं, बल्कि एक चेतावनी हैं, उस व्यवस्था के लिए जो लाभ के लालच में जीवन की कीमत भूल चुकी है।