क्या उनके लिए रेड कार्पेट बिछाएं....! टिप्पणी से नाराज पूर्व जजों, वकीलों और शिक्षाविदों ने सीजेआई को लिखा खुला पत्र, लोग बोले- ये कैसी चिंता? जानें क्या है पूरा मामला
नई दिल्ली। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सीजेआई की बेंच द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे में की गई टिप्पणियों पर आपत्ति जाते हुए करीब दो दर्जन से ज्यादा पूर्व जजों, वकीलों और शिक्षाविदों ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत को एक खुला पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि सीजेआई द्वारा रोहिंग्याओं की तुलना घुसपैठियों से करना गलत है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि रोहिंग्या जुल्म और अत्याचार से भागे हुए लोग हैं। पत्र में सीजेआई से अपील की गई है कि वे सभी के लिए सम्मान और न्याय पर आधारित संवैधानिक नैतिकता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पक्का करें, चाहे कोई भी व्यक्ति हो और कहीं का भी हो।
गौरतलब है कि विगत 2 दिसंबर को रोहिंग्याओं के संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने पूछा था कि क्या भारत में रह रहे घुसपैठियों के स्वागत के लिए रेड कार्पेट बिछाना चाहिए? जबकि देश के अपने नागरिक गरीबी से जूझ रहे हैं। इस दौरान सीजेआई ने पूछा था कि भारत सरकार का रोहिंग्याओं को शरणार्थी घोषित करने का आदेश कहां है? शरणार्थी एक अच्छी तरह से तय कानूनी शब्द है और उन्हें घोषित करने के लिए सरकार की तरफ से एक तय अथॉरिटी है। अगर किसी रिफ्यूजी का कोई कानूनी स्टेटस नहीं है, और कोई घुसपैठिया है और वह गैर-कानूनी से तरीके से घुसता है, तो क्या हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम उसे यहां रखें?
सीजेआई ने कहा था कि पहले आप प्रवेश करते हैं, आप अवैध रूप से सीमा पार करते हैं। आपने सुरंग खोदी या बाड़ पार की और अवैध रूप से भारत में दाखिल हुए। फिर आप कहते हैं, अब जब मैं प्रवेश कर गया हूं तो आपके कानून मुझ पर लागू होने चाहिए और मैं भोजन का हकदार हूं, मैं आश्रय का हकदार हूं, मेरे बच्चे शिक्षा के हकदार हैं। क्या हम कानून को इस तरह से खींचना चाहते हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सीजेआई की इन्हीं बातों पर इस चिट्टी में आपत्ति जताई गई है और कहा गया है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत में घुसने के लिए अवैध घुसपैठिए जो सुरंग खोद रहे हैं जैसा मानना गलत है। चिट्ठी में कहा गया है ‘बेंच की बातें संविधान के मुख्य मूल्यों के खिलाफ हैं। इनका असर रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ अमानवीय व्यवहार करने जैसा रहा है, जिनकी इंसानियत और मानवाधिकार संविधान, हमारे कानूनों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों से सुरक्षित है।
पत्र में बेंच के कथित बयानों पर खास तौर पर आपत्ति जताई गई है, जिसमें रोहिंग्या के रिफ्यूजी के तौर पर कानूनी दर्जे पर सवाल उठाए गए हैं और उनकी तुलना भारत में गैर-कानूनी तरीके से घुसने वाले घुसपैठियों से की गई है। पत्र में उन लोगों का भी जिक्र किया गया है जो गैर कानूनी तरीके से घुसने के लिए सुरंग खोदते हैं और यह सवाल किया गया है कि क्या ऐसे लोग खाना, रहने की जगह और पढाई के हकदार हैं, रिफ्यूजी को संविधान से मिले बुनियादी हकों से इनकार करने के लिए घरेलू गरीबी का भी हवाला दिया गया है और यह सुझाव दिया गया है कि भारत में उनके साथ होने वाले बर्ताव में उन्हें थर्ड डिग्री तरीकों से नहीं गुजरना चाहिए। इधर इस पत्र को लेकर अब लोग सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं।