पंचतत्व में विलीन हुए संत सियाराम बाबा! अंतिम यात्रा में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब, नम आंखों से दी विदाई

Saint Siyaram Baba merged in Panchatatva! Crowd of devotees gathered for the last journey, bid farewell with tearful eyes

नई दिल्ली। प्रसिद्ध संत 110 वर्षीय सियाराम बाबा ने आज बुधवार देह त्याग दी। बाबा के शरीर त्यागने की सूचना मिलने पर निमाड़ सहित देशभर के श्रद्धालुओं में शोक और निराशा छा गई। हजारों की संख्या में श्रद्धालु बाबा के आश्रम अंतिम दर्शन करने पहुंचे। बाबा पिछले 10 दिन से बीमार थे और इंदौर के डॉक्टर उनका इलाज इलाज कर रहे थे। संत सियाराम बाबा का आश्रम मध्य प्रदेश में खरगोन जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर भट्यान गांव में नर्मदा किनारे स्थित है। देर शाम खरगोन के कसरावद के तेली भट्यान गांव में नर्मदा किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान साधु-संतों ने उन्हें मुखाग्नि दी। इससे पहले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी संत सियाराम बाबा के अंतिम दर्शन के लिए खरगोन पहुंचे। सीएम ने मध्यप्रदेश सरकार की ओर से बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित की। 

1955 में बाबा आए थे भट्यान गांव
संत बाबा के तन पर कपड़े के नाम पर केवल एक लंगोट होती थी। कड़ाके की ठंड होए या बरसात हो, या फिर भीषण गर्मी, बाबा लंगोट के अलावा कुछ धारण नहीं करते थे। बताया जाता है कि 1955 में बाबा इस गांव में आए थे। उनके सरल और दयालु प्रवृत्ति के चलते ग्रामीणों ने उनके लिए एक छोटा सा कमरा बनाया, तभी से वे नर्मदा किनारे अपने उसी आश्रम में रहते थे। साधारण से कमरे में निवास करने वाले संत सियाराम बाबा के दर्शन के लिए मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान से भी श्रद्धालु आते थे। रोजाना हजारों लोग उनका आर्शीवाद लेने आते थे। बाबा के आश्रम में दर्शन करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का हमेशा तांता लगा रहता था। इसके चलते आश्रम के पास मैदान में हमेशा मेला लगता था। 

12 वर्षों तक मौन धारण किया
संत सियाराम बाबा ने नर्मदा किनारे अपने आश्रम बनाया। उनकी उम्र 100 साल से ज्यादा थी। बाबा ने बारह वर्षों तक मौन भी धारण कर रखा था। जो भक्त आश्रम में उनसे मिलने आता है और ज्यादा दान देना चाहता थे तो वे इनकार कर देते थे। वे सिर्फ दस रुपये का नोट ही लेते थे। उस धनराशि का उपयोग भी वे आश्रम से जुड़े कामों में लगा देते थे। बाबा ने नर्मदा नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे तपस्या की थी और बारह वर्षों तक मौन रहकर अपनी साधना पूरी की थी। मौन व्रत तोड़ने के बाद उन्होंने पहला शब्द सियाराम बाबा कहा तो भक्त उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे। हर माह हजारों भक्त उनके आश्रम में आते है।

रोजाना पढ़ते थे 21 घंटे रामायण
भगवान राम की भक्ति में लीन रहने वाले सियाराम बाबा रोजाना 21 घंटे रामायण का पाठ करते थे। वे लगभग 100 साल की उम्र पार कर चुके थे, लेकिन बिना चश्मा लगाए हर अक्षर को आसानी से पढ़ लेते थे। रामभक्ति की ऐसी अद्भुत धुन देखकर हर कोई उन्हें नतमस्तक हो जाता था और शायद यही कारण है कि दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा के आश्रम में आकर उनसे मिलना अपना सौभाग्य मानते थे।