निठारी काण्डः तो 18 मासूमों और महिला का हत्यारा कौन? सुरेन्द्र कोली को बरी करने के फैसले के बाद सिस्टम पर उठे सवाल

Nithari case: So who killed the 18 innocent people and the woman? The acquittal of Surendra Koli raises questions about the system.

देश को झकझोर देने वाले निठारी कांड में आखिर न्याय किसे मिला? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है। करीब दो दशक तक अदालतों और जांच एजेंसियों के चक्कर काटने के बाद इस बहुचर्चित मामले के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया है। जबकि दूसरा आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर पहले ही दोषमुक्त किया जा चुका था। अदालत के इस फैसले ने न केवल पीड़ित परिवारों के जख्मों को ताजा कर दिया है, बल्कि पूरे सिस्टम पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
साल 2006, जब नोएडा के निठारी गांव से एक के बाद एक 18 बच्चों और एक युवती के लापता होने और उनकी हत्याओं का खुलासा हुआ था। घर के पीछे से कंकाल और मानव अवशेषों के मिलने के बाद पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। पुलिस जांच में कोली और पंढेर पर बच्चों की हत्या, बलात्कार और नरभक्षण जैसे भयावह आरोप लगे। सीबीआई जांच भी हुई, अदालतों में मुकदमे चले, मौत की सजा भी सुनाई गई, लेकिन हर स्तर पर जांच और अभियोजन की कमजोरियों ने इस जघन्य अपराध को अधूरा छोड़ दिया।
अब जब अदालत ने कोली को भी सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है, तो सवाल यह उठता है कि अगर ये दोनों दोषी नहीं थे, तो उन मासूमों की हत्या आखिर किसने की? क्या उन बच्चों को किसी अदृश्य शक्ति ने मार दिया था? या फिर यह मामला हमारी जांच एजेंसियों की लापरवाही, सबूतों की कमी और कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलताओं में दब गया?
सच्चाई यह है कि इस पूरे मामले में हार न्याय की हुई है। न्यायपालिका, पुलिस और जांच एजेंसियों, तीनों की उदासीनता ने देश के इतिहास के सबसे क्रूरतम अपराधों में से एक को रहस्य में बदल दिया। जिन परिवारों ने अपने बच्चों को खोया, उन्हें न न्याय मिला, न सुकून।
अगर तकनीकी आधारों पर सब रिहा हो गए, तो यह बताने की जिम्मेदारी भी उसी व्यवस्था की है कि फिर वह अपराध किसने किया था। आखिरकार, 19 साल की जांच, सैकड़ों गवाह और अनगिनत सुनवाइयों के बाद भी जब अदालत कहती है कि कोई दोषी नहीं, तो यह केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी है।
भारत के कानून को अब इसपर आत्ममंथन की ज़रूरत है कि जब इतने भयावह अपराध के आरोपी भी छूट जाते हैं, तो न्याय का अर्थ आखिर बचता क्या है।