नंगा होता लोकतंत्र, नंगी होती न्याय व्यवस्था! मध्यप्रदेश में पत्रकारों को नंगा करने के मामले में दो पुलिस अधिकारी हुए निलंबित! क्या सिर्फ निलंबन काफ़ी है? देशभर के पत्रकारों में रोष

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को संभालने वाले पत्रकारों के साथ मध्यप्रदेश में कपड़े उतरवा कर नंगा कर थाने पर खड़ा करवाने की बीते रोज जो शर्मनाक घटना सामने आई थी उसका संज्ञान लेते हुए शिवराज सिंह चौहान सरकार ने दो पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया है। इस मामले में सीएम शिवराज सिंह ने रिपोर्ट तलब की है।
मामले के अनुसार पुलिस ने कुछ पत्रकारों पर बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ खबरे लिखने का आरोप लगाया था। पत्रकारों को पकड़कर थाने लाया गया और उनके कपड़े उतरवाए गए,केवल अंडरवियर में उन्हें खड़ा रखा और उनकी फोटो वायरल की गई।इस मामले में कांग्रेस सहित तमाम लोगो ने पुलिस की इस हरकत की घोर निंदा की है।इस घटना के बाद पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे। पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह ने भी ट्वीट कर एमपी पुलिस को आड़े हाथों लेते हुए लिखा था कि" ये अर्धनग्न युवा कोई चोर उचक्के नही है ये लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया के साथी है।उन्हें सिर्फ इसलिए अर्धनग्न कर जेल में डाला क्योंकि उन्होंने बीजेपी विधायक के खिलाफ खबर चलाई थी।वही इस घटना से देशभर के पत्रकारों में भी खासा रोष व्याप्त हो गया है,देश के कई पत्रकार संगठन के पत्रकारों का कहना है कि ऐसी सजा का कही कोई प्रावधान नही है कि पुलिस अधिकार में कपड़े उतरवा लिए जाएं, ये फोटो पत्रकारों की नग्नता का नही बल्कि हमारे नंगे होते लोकतंत्र नंगी होती न्याय व्यवस्था की है। इस घटना के बाद पत्रकारों में पुलिस, सरकार, और भारत की न्याय व्यवस्था को लेकर गुस्सा व्याप्त है पत्रकार पूछ रहे है कि क्या इन अफसरों को सिर्फ निलंबित करना काफ़ी है?
इस पूरी घटना के बाद शिवराज सरकार ने भोपाल पुलिस मुख्यालय से जिम्मेदारों से स्पष्टीकरण मांगा है। शासन ने दोषियों के खिलाफ सख़्त कार्यवाही के निर्देश भी दिए है। पत्रकारों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करने के ज़िम्मेदार थाना प्रभारी और एसआई को निलंबित कर लाइन अटैच करने के आदेश जारी किए गए है।