नैनीतालः मां नंदा-सुनंदा के जयकारों से गूंजी सरोवर नगरी! ब्रह्ममुहूर्त में हुई मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा, उमड़ा आस्था का सैलाब

Nainital: Sarovar city echoed with the cheers of Mother Nanda-Sunanda! Consecration of idols took place during Brahmamuhurta, flood of faith surged.

नैनीताल। सरोवर नगरी नैनीताल में आज से मां नंदा देवी महोत्सव का आगाज हो गया है और आज ब्रह्म मुहूर्त में मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा कर दर्शन के लिए खोल दिया गया। सुबह से ही मां के मंदिर में भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है। वहीं प्रशासन भी पूरी तरह से मुस्तैत है। कुमाऊं की कुलदेवी मां नंदा-सुनंदा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज यानि अष्टमी के दिन अपने मायके आगमन हुआ है और इसी परंपरा के तहत एकादशी 15 सितंबर को कुलदेवी मां नंदा-सुनंदा अपने ससुराल लौट जाएंगी। नैनीताल में इन दिनों मां नंदा-सुनंदा के दर्शनों के लिए भक्तों का ताता लगा हुआ है।

कुल देवी मां नंदा-सुनंदा आज अपने ससुराल से अपने मायके यानी कुमाऊं की धरती पर पधार गईं हैं नैनीताल के मां नयना देवी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमाओं को भक्तों के दर्शनों के लिये खोल दिया गया है। मां नंदा-सुनंदा के दर्शनों के लिये आज सुबह 3 बजे से नैनीताल के मां नयना देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट रही है। बड़ी संख्या में भक्त अपनी कुल देवियों के दर्शनों को पहुंच रहे हैं, इससे पहले सबुह 2 बजे से मां की पूजा अर्चना शुरू हो गई थी जिसके बाद से ही मंदिर में भक्तो का तांता लगना भी शुरू हो गया है।

बता दें कि मां नंदा.सुनंदा को कुमाऊं में कुल देवी के रूप में पूजा जाता है चंद राजाओं के दौर में मां नंदा-सुनंदा को कुल देवी के रूप में चंद राजा पूजा करते थे और अब संपूर्ण कुमाऊ क्षेत्र के लोग मां नंदा-सुनंदा को कुल देवी के रूप में पूजते हैं। ऐसा माना जाता है कि मां नंदा और सुनंदा साल में एक बार अपने मायके यानी कुमाउं में आती हैं और यही कारण है कि अष्टमी के दिन यानी आज कुमाउं के विभिन्न स्थानों पर मां नंदा और सुनंदा की प्रतिमा तैयार कर प्राण प्रतिष्ठा के बाद समझा जाता है कि मां नंदा-सुनंदा अपने मायके पहुंच गई हैं। वहीं एक किंवदंती के अनुसार केले के पेड़ के इस्तेमाल के पीछे एक कहानी यह है कि नंदा-सुनंदा दो बहनें थीं। जब अपने ससुराल जा रही थीं, तब एक भैंसा उनके पीछे दौड़ने लगा।

दोनों अपनी जान बचाने के लिए केले के खेत में छिप गईं। एक बकरे ने केले के पत्ते खा लिए और भैंसे ने केले के खेत में उनकी हत्या कर दी। कुछ लोगों का मानना है कि केला एक पवित्र पेड़ है। देश में केले के पेड़ को धार्मिक रूप में काफी महत्ता दी गई है। केले के पेड़ में लक्ष्मी का वास माना गया है, जिस वजह से इसे मूर्ति के निर्माण में इस्तेमाल में लाया जाता है। इसके अलावा केले के वृक्ष को इस्तेमाल करने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी जुड़ा है। केले के पेड़ का तना गलन शील है, क्योंकि नंदा देवी महोत्सव के आखिरी दिन इसे पानी में विसर्जित किया जाता है तो यह पानी को दूषित नहीं करता और उसके साथ पूरी तरह घुल जाता है।

पौराणिक मान्यता और परिस्थितिक तंत्र दोनों के सामंजस्य की वजह से इस पेड़ को ही इस्तेमाल में लाया जाता है। मां नंदा-सुनंदा की अगले तीन दिनों तक कुमाऊं के लोग उपासना करेंगे और 15 सितंबर को भव्य डोला भ्रमण मंदिर परिसर में करवाने के बाद मां नंदा-सुनंदा का नैनी झील में विसर्जन किया जाएगा। विसर्जन की यह परंपरा उस तरह है जिस तरह से लोग अपने बेटी को ससुराल को विदा करते हैं, उसी तरह से मां नंदा-सुनंदा को मायके नैनीताल से ससुराल विदा करने की परंपरा भी है।