उत्तराखंड के मोहन कांडपाल को मिला राष्ट्रीय जल सम्मान, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया सम्मानित
नई दिल्ली में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने छठें राष्ट्रीय जल पुरस्कार और जल संचय-जन भागीदारी पुरस्कार प्रदान किए। इस दौरान राष्ट्रपति ने कहा हमारे देश के लिए जल का कुशल उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारी जनसंख्या की तुलना में जल संसाधन सीमित हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रभावी जल प्रबंधन केवल व्यक्तियों, परिवारों, समाज और सरकार की भागीदारी से ही संभव है।
पहाड़ों में जल संरक्षण की मिसाल बने कांडे गांव निवासी और आदर्श इंटर कॉलेज सुरइखेत के शिक्षक मोहन चंद्र कांडपाल को भी जल संरक्षण एवं प्रबंधन के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए नई दिल्ली के विज्ञान भवन में सम्मानित किया गया। मोहन कांडपाल पिछले कई वर्षों से “पानी बोओ–पानी उगाओ” अभियान चला रहे हैं। अब तक वे 40 से अधिक गांवों में जल संरक्षण गतिविधियों के माध्यम से 4500 से अधिक गड्ढों, वर्षा जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण तथा स्थानीय जलस्रोतों के पुनर्जीवन का कार्य कर चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने एक लाख से अधिक पौधरोपण कर ग्रामीणों व छात्रों को व्यापक रूप से अभियान से जोड़ा है. उनके प्रयासों से पहाड़ी क्षेत्रों में सूख चुके गधेरों, धारों और पारंपरिक जलस्रोतों का पुनर्भरण संभव हुआ है। मोहन कांडपाल की पहल से ग्रामीण महिलाओं की पानी की दिक्कतों में कमी आई है, जबकि युवाओं और विद्यार्थियों में पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता भी बढ़ी है। उनके ‘वह पानी होगा’ अभियान से क्षेत्र की रिक्सन नदी में भी जल स्तर में सुधार दर्ज किया गया है। कांडपाल का यह सार्थक प्रयास पूरी तरह जनसहयोग पर आधारित रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थियों और महिलाओं ने भागीदारी निभाई। मोहन कांडपाल का कहना है कि जल संरक्षण कोई विकल्प नहीं, बल्कि जीवन का आधार है। जब समाज मिलकर प्रयास करता है, तो सूखी धरती भी हरियाली से भर जाती है। उनकी उपलब्धि से पूरे द्वाराहाट क्षेत्र समेत उत्तराखंड में हर्ष और गर्व का माहौल है। स्थानीय लोग इसे पहाड़ के जल, जंगल और जीवन की रक्षा के लिए प्रेरणास्रोत मान रहे हैं। मोहन कांडपाल के कार्यों ने यह साबित कर दिया है कि यदि संकल्प और सामूहिक प्रयास हों, तो पहाड़ों में भी जल संकट को हराया जा सकता है।