वर्दी की हनकः पत्रकार के सवाल पूछने पर भड़के एसएसपी साहब! पहले लगाई लताड़, फिर कर दिया हजारों रुपए का चालान

रुद्रपुर। वैसे तो कहा जाता है कि पुलिस वर्दी पहनकर देश की सेवा करती है और पत्रकार बिना वर्दी के! लेकिन एक फ़र्क है जहां पुलिस का प्रत्येक कर्मचारी वेतनभोगी है वहीं एक पत्रकार वेतन का मोहताज नहीं है फिर भी वो देश के संविधान को बचाने और पीड़ितों को न्याय दिलवाने के लिए सच को दुनिया के सामने लाता है। लेकिन कुछ पुलिस अधिकारी वर्दी के नशे में चूर होते हैं उन्हें सामान्य जनता और पत्रकार नजर नहीं आते हैं। ऐसा ही एक वाक्या उधम सिंह नगर जिले में हुआ है, जहां सोमवार को एक यातायात चौपाल कार्यक्रम में पत्रकार के सवाल पर एसएसपी साहब भड़क गए और प्रोग्राम खत्म होने के बाद एसएसपी ने पत्रकार को जमकर लताड़ लगाई और पत्रकार का आठ हजार रुपए का चालान भी कर दिया।
मामले के अनुसार सोमवार को उधम सिंह नगर जिला मुख्यालय में यातायात पुलिस की पहल पर कई बसों और टैक्सियों पर डैश बोर्ड कैमरे लगवाए गए और कुछ वाहन संचालकों को एसएसपी मणिकांत मिश्र ने सम्मानित भी किया, जिसके बाद पत्रकार वार्ता के दौरान एक पत्रकार महेंद्र मौर्य ने अवैध रूप से टैंपो स्टैन्ड का संचालन कर रहे व्यक्ति को सम्मानित करने पर एसएसपी मणिकांत मिश्र से सवाल पूछ दिया, जिसपर एसएसपी मणिकांत मिश्र ने सधा हुआ जवाब दिया, लेकिन मामला यहां खत्म नहीं हुआ। जैसे ही प्रेस वार्त्ता खत्म हुई वैसे ही एसएसपी मणिकांत मिश्र ने वर्दी की हनक दिखते हुए पत्रकार महेंद्र मौर्य को जमकर लताड़ लगा दी और पत्रकार को जेल भेजने की बात से लेकर यहां तक कह गए कि मीडिया को अधिकारियों से सवाल पूछने का कोई अधिकार नहीं है। बात यहीं पर नहीं रुकी और कुछ देर बाद एसएसपी ने पत्रकार को ट्रैक करवाया और उसकी बाइक का आठ हजार रुपए का चालान भी कर दिया।
उधमसिंह नगर के नए एसएसपी मणिकांत मिश्र जिन्होंने आते ही अपराधों पर अंकुश लगाने की पहल की, लेकिन वो ये भूल गए कि वो एक पुलिस अधिकारी है और जनता के प्रति जवाबदेय हैं। वो ये भी भूल गए कि एक पत्रकार का कर्तव्य सवाल पूछना है और एक अधिकारी की जिम्मेदारी है जवाब देना। धामी सरकार में लगातार पुलिस अधिकारियों के द्वारा पत्रकारों और आरटीआई कार्यकर्ताओं को बेवजह परेशान करने और झूठे केसों में फंसाने के मामले बढ़ते जा रहे हैं जो कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। उत्तराखंड में सरकार की आलोचना करना और भ्रष्टाचार की पोल खोलना पत्रकारों को सरकार का दुश्मन बना रहा है। एक तरफ सीएम धामी राज्य स्थापना दिवस से ठीक एक दिन पहले पत्रकारों को अपने आवास पर भोज के लिए आमंत्रित करते हैं वहीं दूसरी तरफ अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले पत्रकारों को उत्तराखंड पुलिस प्रताड़ित करती है। ऐसे में उत्तराखंड की जनता का भगवान ही मालिक है, क्योंकि पत्रकार जनता का ही प्रतिनिधि होता है और जब जनता का प्रतिनिधि ही सुरक्षित नहीं तो एक आम आदमी खुद की कल्पना तो कर ही सकता है कि वो धामी सरकार और मित्र पुलिस की छत्रछाया में कितना सुरक्षित है।