बड़ी खबरः भारत के 52वें CJI बने जस्टिस बीआर गवई! राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ, जानिए इनके प्रमुख फैसले

नई दिल्ली। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने आज बुधवार, 14 मई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की। इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। बता दें कि जस्टिस बीआर गवई 23 नवंबर, 2025 तक इस पद पर रहेंगे। जस्टिस गवई सीजेआई का पद संभालने वाले पहले बौद्ध हैं जबकि दलित समुदाय से आने वाले दूसरे सीजेआई हैं। उनसे पहले दलित समुदाय से आने वाले जस्टिस केजी बालकृष्णन सीजेआई रह चुके हैं।
24 नवंबर, 1960 को अमरावती शहर के फ़्रीज़रपुरा इलाके में जन्मे जस्टिस गवई तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता का नाम आरएस गवई है और वह अंबेडकरवादी राजनीति के बड़े नाम थे। अमरावती विश्वविद्यालय से कॉमर्स और बाद में कानून की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की। जस्टिस गवई 16 मार्च, 1985 को बार में शामिल हुए और उन्होंने 1987 तक बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व एडवोकेट जनरल और जज राजा एस भोंसले के साथ काम किया।
1990 के बाद, उन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में प्रैक्टिस की। वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के वकील भी रह चुके हैं। जस्टिस गवई को अगस्त, 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में Assistant Government Pleader और Additional Public Prosecutor नियुक्त किया गया था। 17 जनवरी, 2000 से सरकारी वकील और लोक अभियोजक (Public Prosecutor) के रूप में नियुक्त किया गया था। 14 नवंबर, 2003 को जस्टिस गवई को बॉम्बे हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट किया गया और 12 नवंबर, 2005 को वे हाई कोर्ट के स्थायी जज बन गए। वह मुंबई में हाई कोर्ट की मुख्य बेंच और नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की बेंच में रहे। उन्हें 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किया गया।
नोटबंदी के फैसले वाली बेंच में थे जस्टिस गवई
सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर जस्टिस गवई कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं। वे जनवरी 2023 के सुप्रीम कोर्ट के बहुमत वाले उस फैसले का हिस्सा थे, जिसमें केंद्र सरकार के 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के फैसले को बरकरार रखा गया था।जस्टिस गवई पांच जजों वाली उस कांस्टीट्यूशन बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने दिसंबर 2023 में जम्मू-कश्मीर के राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा था। पांच जजों वाली एक और कांस्टीट्यूशन बेंच ने राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था। जस्टिस गवई इस बेंच का भी हिस्सा थे। जस्टिस गवई ने अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले फैसले का समर्थन किया था और कहा था कि सही मायनों में समानता हासिल करने के लिए इन समुदायों में भी “क्रीमी लेयर” (संपन्न वर्ग) की पहचान करनी चाहिए। नवंबर, 2024 में जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने अपराधियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने की आलोचना की थी और कहा था कि बिना तय कानूनी प्रक्रिया के संपत्तियों को तोड़ना कानून के खिलाफ है।