Big Breaking: AMU पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! फिलहाल बरकरार रहेगा अल्पसंख्यक का दर्जा, सीजेआई चंद्रचूड़ ने 4-3 के बहुमत से सुनाया फैसला

Big Breaking: Big decision of Supreme Court on AMU! Minority status will remain intact for the time being, CJI Chandrachud gave the decision with a majority of 4-3.

नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर आज शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। रिटायरमेंट के आखिरी दिन सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ समेत 4 जजों ने एएमयू का अल्पसंख्यक का दर्जा फिलहाल बरकरार रखा है। कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। इसके अल्पसंख्यक दर्जे को 3 जजों की एक बेंच बनाई जाएगी। नई बेंच फैसला लेगी कि एएमयू की अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं। 7 जजों की बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा का फैसला एएमयू को अल्‍पसंख्‍यक का दर्जा देने के पक्ष में रहा। वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपाकंर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा इससे असहमति नजर आए।

क्या है पूरा मामला?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी फैसला सुनाया था। 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में 5 जजों की संविधान पीठ ने माना कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920 का हवाला दिया। इस अधिनियम के तहत ही विश्वविद्यालय की स्थापना की और माना कि एएमयू न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और न ही मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रशासित था। 1981 में AMU अधिनियम में संशोधन में कहा गया था कि विश्वविद्यालय ‘भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित’ किया गया था। इसके बाद 2005 में अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करते हुए विश्वविद्यालय ने मुस्लिम छात्रों के लिए स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में 50% सीटें आरक्षित कीं।

सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया 1967 का अजीज बाशा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1967 का अजीज बाशा फैसला रद्द कर दिया। 1965 में ही एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद शुरू होने के बाद उस समय की केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर स्वायत्तता को खत्म कर दिया था। इसके बाद अजीज बाशा की ओर से 1967 में सुप्रीम कोर्ट में सरकार का चुनौती दी। तब सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।

AMU का क्या है इतिहास
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा की गई थी। इसकी शुरुआत ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ के रूप में की गई थी। इस संस्थान को मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए बनाया गया। 1920 में इसे विश्वविद्यालट का दर्जा दिया गया। इसी दौरान इसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय नाम दिया गया। इसके अधिनियम में 1951 और 1965 में संशोधन किए गए। इसके बाद से ही यहां विवाद शुरू हो गया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी माना। कोर्ट ने कहा कि इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि इसकी स्थापना केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है। इसके बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन हुआ। इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1981 के एएमयू संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया।