सूनी गोद देखकर होती है निराशा, बांझपन से हैं परेशान तो ये बिल आप ही के लिए मंजूर हुआ है।

बच्चे नही हो रहे हैं? सूनी गोद को देखकर निराश होते हैं? 'इनफर्टिलिटी' यानी बांझपन से जूझ रहे हैं, तो ये खबर आपके लिए एक "गुड न्यूज" है। यूनियन कैबिनेट की हुई बैठक में असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) बिल (ART बिल) को मंजूरी दे दी गयी है,जिसमे गर्भपात कराने की सीमा को भी बढ़ा कर 20 सप्ताह से 24 सप्ताह कर दिया गया है।पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में इस बिल को मंजूरी दी गयी।

इस बिल के ज़रिये फर्टिलिटी क्लिनिक्स में होने वाली धांधली और गैर-कानूनी व्यापार जैसे भ्रूण बेचना, किसी और का सीमेन किसी और व्यक्ति के लिए इस्तेमाल करना इत्यादि को कानूनन रेगुलेट कर दोषियों को सज़ा दी जा सकेगी।

 अब जल्द ही ये बिल लोकसभा में भी पेश होगा, उसके बाद राज्य सभा में जाएगा, राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ये बिल एक मजबूत कानून के रूप में पूरे देश मे लागू हो जाएगा। 

  2008 में इस बिल को प्रपोज किया गया था, तब से लेकर अब तक इसमें बदलाव किये जाते रहे हैं लेकिन अब इसके आखिरी वर्जन को कैबिनेट ने मंजूरी दी है,गर्भपात अधिनियम 1971 में संशोधन कर संसद के आगामी सत्र में भी ये बिल लाया जाएगा।ये बिल गर्भाधान के आर्टिफिशियल तरीकों को लेकर नियम कानून सख्त रखने के लिए बनाया गया है।ये बिल गर्भ धारण करने में सहायता देने वाली तकनीक को रेगुलेट करने में सहायक है,जिसका साफ मतलब है कि अगर आप बच्चा पैदा करना चाहते हैं, और प्राकृतिक तरीकों से नहीं कर पा रहे हैं, तो आप डॉक्टर से सलाह लेंगे,जिसके बाद आप जांच भी करवाएंगे,फिर आपकी ज़रूरत के हिसाब से वो आपको कृत्रिम तरीके बताएंगे जिनसे आपको गर्भ धारण करने में मदद मिल पाएगी ,इन्हीं तरीकों और तकनीकों का गलत इस्तेमाल न हो इसलिए ये बिल लाया गया है। स्मृति ईरानी ने कैबिनेट में मिली इस बिल की मंजूरी के बाद अपने ट्वीटर अकाउंट पर ट्वीट भी किया।


इस बिल की मंजूरी के बाद अब जिन लोगो के प्राकृतिक रूप से बच्चे नही हो पाते उनको गर्भधारण करवाने में ये सहायता देगा जैसे कि इन विट्रो फ़र्टिलाइजेशन (IVF) (यूटेरस से बाहर स्पर्म और एग्स को मिलाकर भ्रूण बनाने और फिर यूट्रस में रखने में अब कोई डर नही होगा।

 इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन (सीधे यूटेरस में स्पर्म पहुंचाना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पार्टनर का और डोनर का स्पर्म, दोनों ही शामिल होते हैं,इस प्रक्रिया के द्वारा भी गर्भधारण किया जा सकेगा। क्रायो प्रिजर्वेशन (स्पर्म्स और एग्स को फ्रीज करके रखना ताकि बाद में उनका इस्तेमाल हो सके)के द्वारा कभी भी गर्भधारण करने में सहायता मिलेगी।इसमें सरोगेसी भी शामिल है।

कई फर्टिलिटी क्लिनिक बिना रजिस्ट्रेशन के भी चल रहे हैं,उनके रेगुलेशन के लिए भी ये बिल बहुत महत्वपूर्ण है।

इस बिल को जब 2008 में प्रपोज किया गया था तब इस बिल में कुछ मुख्य प्रावधान थे-

1- केंद्र सरकार नेशनल एडवाइजरी बोर्ड फ़ॉर असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी नाम से एक बोर्ड बनाई जाएगी, इसमें अधिकतम 21 सदस्य होंगे।

2-हर राज्य भी अपना एक ऐसा स्टेट बोर्ड बनाएगा। ये बोर्ड इस बात का ध्यान रखेगा कि ART दिलाने वाले क्लिनिक नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं। उनके स्टाफ का सलेक्शन किस आधार पर हो रहा है? कौन कौन सी तकनीकें अपनाई जा रही हैं?ट्रेनिंग और रीसर्च को बढ़ावा मिल रहा है या नहीं? अगर नहीं, तो ये सुनिश्चित करना कि इस फील्ड में अधिक से अधिक काम हो।

3- भ्रूणों की रीसर्च में किस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, और ये तकनीक कानूनी रूप से कितनी सही है? इसमें कोई उल्लंघन तो नहीं हो रहा? इस बात का ध्यान भी ये बोर्ड रखेगा। 

4- जितने भी क्लिनिक्स ART के फील्ड में काम कर रहे हैं, उन्हें अपने आप को रजिस्टर कराना होगा।

5- वीर्य बैंक और मानव भ्रूण पर रीसर्च कर रहे क्लिनिक्स को भी खुद को रजिस्टर कराना ज़रूरी होगा।

6- जो भी रजिस्टर्ड क्लिनिक होंगे, ये उनकी ज़िम्मेदारी होगी कि किसी भी प्रोसीजर के बारे में पूरी जानकारी दें,जो लोग भी उनके पास प्रोसीजर के लिए आते हैं, उनको पूरी प्रक्रिया से जुड़े फायदे और नुकसान क्लिनिक बताएंगे। ये भी सुनिश्चित करेंगे कि डोनर स्पर्म्स या एग्स पूरी तरह से चेक कर लिए गए हैं या नहीं।

7- किसी भी ART क्लिनिक को कोई भी प्रोसीजर शुरू करने से पहले लिखित में अनुमति लेना आवश्यक होगा

8-स्पर्म देने के लिए पुरुष की आयु 21 साल से 45 साल होगी, और एग्स देने के लिए महिला की उम्र 21 से 35 साल के बीच होगी, सभी डोनर्स की जांच की जायेगी कि उन्हें कोई बीमारी तो नहीं है।

9- एक डोनर का स्पर्म 75 बार से ज्यादा बार डोनेट नहीं किया जा सकता।

10-कोई भी महिला अपनी पूरी ज़िन्दगी में 6 बार से ज्यादा एग्स डोनेट नहीं कर सकती। दो डोनेशन्स के बीच कम से कम तीन महीनों का गैप होना ज़रूरी है।

11- सीमेन का एक सैम्पल एक बार में एक ही रेसिपिएंट को दिया जाएगा।

12-पूरे प्रोसीजर में डोनर का नाम और उसकी पहचान, प्रोसीजर कराने वाले मरीज का नाम और उनकी पहचान गुप्त रखी जाएगी।

13-जो भी इन नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया जाता है, उसे पहली बार में तीन साल कि सज़ा और जुर्माना, और उसके बाद पांच साल की सज़ा और जुर्माना तक हो सकते हैं। साथ ही एक नेशनल रजिस्ट्री एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी नेशनल बोर्ड के साथ मिलकर ही काम किया जाएगा,और सभी क्लिनिक्स का डेटाबेस बनेगा और उन पर नज़र भी रखी जाएगी।

यूनियन केबिनेट की हुई बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मीडिया को बताया कि मंत्रिमंडल ने गर्भपात कराने की अनुमति के लिए अधिकतम सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने की मंजूरी दे दी है। उन्होंने ये भी कहा कि 20 सप्ताह में गर्भपात कराने पर मां की जान जाने के कई मामले सामने आए हैं, 24 सप्ताह में गर्भपात कराना सुरक्षित होगा। जावड़ेकर ने गर्भपात कराने की सीमा 24 सप्ताह करने पर कहा कि इस कदम से बलात्कार पीड़िताओं और नाबालिगों को भी मदद मिलेगी।