शोले को टक्कर देती सोन चिड़िया

"कितने आदमी थे" कभी ये डाॅयलौग लोगो की जुबान पर चढ़ा हुआ था और आज जब "सोन चिरैया" का डाॅयलौग "अब ये देखनो है, कि खलीफा बनेगो कौन" सुना तो दिमाग झट दौड़ पड़ा चंबल की घाटी के बिहड़ जंगलो में। डाकूओं पर तो कई फिल्में बन चुकी है लेकिन सोन चिरैया शायद पहली फिल्म होगी जिसमे डाकूओ का अलग जीवन दर्शन देखने को मिलेगा क्योकि चंबल का बागी बलवान और साथ ही नौजवान डाकू को बेहद रियलिस्टिक अंदाज मे दिखाया गया है।लेकिन चटकता से परे ये फिल्म किरदारो मे जो जान फूंकती है वो जरूर देखने लायक है।

हम आज जात पात को खत्म करने की बात करते हैं लेकिन जो जातिभेद की मार झेलता है क्या बितती है जब समाज में जातपात को लेकर वर्गीकरण क्या जाता है ये बेहद दिलचस्प है।डाकू खूब लूट मचा कर मौज से रहेते हैं ये अक्सर फिल्मो में में देखा है लेकिन सन चिरैया के डकैत भूखे प्यासे चंबल के बिहड़ जंगलो मे यहां वहां भटकते हैं |

निर्देशक अभिषेक चौबे ने डकैतो पर ऐसी फिल्म बना डाली है जो देखने वाले को कुछ देर के लिये डकैतो के बीच ही पंहुचा दे।

आजकल सुशांत राजपूत युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं  सोन  चिरैया अब तक की सुशांत राजपूत की सबसे उम्दा फिल्म है।मनोज बाजपेयी की अभिनय क्षमता थियेटर से जुड़ी है शायद इसी वजह से उनकी ऐक्टिंग हर फिल्म में मंझी हुई होती है।डाकू मानसिंह का किरदार मनोज बाजपेयी ने ऐसे निभाया है जैसे वो सचमुच ही डाकू मानसिंह हो।भूमि पेडनेकर ने बहुत खास नही किया शायद इसलिये कि फिल्म में उन्हे इतना स्पेस नही मिला ।

काफी समय बाद चंबलो के जंगलो में डाकूओं के बीच जाने को मिला सोन चिरैया देखकर।