वो तो पंगु मुख्यमंत्री बैठा है मैं होता तो ---, पूरी ख़बर लिंक पर

जसपुर।  उत्तराखंड में आये दिन नेता अपनी भाषा की मर्यादा खोते नज़र आ जाते है। ऐसा ही एक वाक्या जसपुर का है। जहाँ स्थानीय विधायक आदेश चौहान ने सीएम तक को कह दिया पंगु। मोहल्ला भूप सिंह की गली को सील करने गयी टीम पर विधायक जमकर बरसे। स्थानीय लोगों ने विधायक से शिकायत की थी कि कोरोना संक्रमित मरीज दो गलियां छोड़ कर मिले है, फिर भी उनकी गली को सील कर दिया गया। 


दरअसल, मोहल्ला भूप सिंह को अस्पताल प्रशासन ने बफर जोन घोषित कर दिया था और मोहल्ला भूप सिंह को पुलिसकर्मियों ने सील कर दिया। गुस्से में आये मोहल्ले वासियों ने यह सूचना विधायक आदेश चौहान को दी। जिस पर विधायक मौके पर पहुंचे और मोहल्ले वासियों की समस्या सुनी। स्थानीय लोगों ने कहा कि दो गलियाँ छोड़कर तीसरी गली में कुछ लोग कोरोना संक्रमित पाए गए और पुलिसकर्मियों ने उस गलियों को सील ना करने के बजाय इनकी गलियों को सील कर दिया है। जिस पर विधायक ने उच्च अधिकारीयों को फ़ोन करते हुए खरी खोटी सुनाई और कई तरह के अपशब्द भी बोले, विधायक आदेश चौहान यहीं पर नहीं रुके उन्होंने सीएम त्रिवेंद्र रावत को पंगु तक कह दिया। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब तेजी से वायरल हो गया। वायरल वीडियो में विधायक किसी अधिकारी को नियम समझा रहे है और साथ ही सीएम को पंगु शब्द बोल रहे हैं जिसे आप नीचे दिए लिंक में सुन सकते है।


वायरल वीडियो आदेश चौहान

https://youtu.be/py3bGVCbOvI


वीडियो वायरल होने के बाद आदेश चौहान को अपने इस गलती का अहसास हुआ और जब उपजिलाधिकारी ने उन्हें समझाया तो उन्होंने बोला कि मैंने तो किसी तरह की अभद्रता और अपशब्द नहीं बोले है बल्कि मैंने तो एक जनप्रतिनिधि होने के नाते जनता की समस्याओं को अधिकारियों के सामने रखा है। 


दरअसल, कई सालों से देखने में आया है कि टीवी चैनलों में आने वाली डिबेट जहाँ पर कई जनप्रतिनिधि और नेता भाषा की मर्यादा का उल्लंघन करते है, कई बार तो उन्हें साफ़ तौर पर सुना जा सकता है। स्वच्छ राजनीति और स्वच्छ पत्रकारिता में इस तरह के अमर्यादित शब्दों की कोई जगह नहीं होती है। कुछ इसी तरह का ट्रेंड शोशल मीडिया पर भी देख सकते है। तमाम तरह की गालियों और अपशब्दों से भरी पोस्ट से दीदार रोज़ होता रहता है। 


आज यह एक चिंताजनक समस्या है , जो धीरे धीरे हमारे समाज में एक हिंसात्मक मानसिकता का रूप ले रही है। इसे आज अगर रोका न गया तो शायद आने वाले समय में भाषा की मर्यादा ख़त्म हो जाएगी और एक रुग्ण भारत का उद्भव होगा जिसकी परिकल्पना हमारे संविधान निर्माताओं ने कभी भी नहीं की थी।