आज बदन की नुमाइश बन चुका है फैशन,जबकि भारत मे कभी स्तन टैक्स जैसी कुप्रथा के खिलाफ नंगेली ने काट दिए थे अपने स्तन!बदन ढकने के लिए लड़ी गयी थी लड़ाई

आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में महिलाएं खुद को कम से कम वस्त्रों में ज़्यादा खूबसूरत महसूस करती हैं।अपने बदन की नुमाइश करना उन्हें मॉडर्न लगता है।आज की महिला बदन को ढकने से ज़्यादा उघाड़ने में दिलचस्पी लेती हैं,बदन को उघाड़ने के लिए आज कोई टैक्स या कोई पाबंदी भी नही है,लेकिन क्या आपको पता है सभ्यताओं और संस्कृति के देश यानी भारत मे अपने बदन के एक खास हिस्से को ढकने के अधिकार के लिए लड़ाई भी लड़ी गयी है? जी हां,ये सच है जब नंगेली नाम की महिला ने अपने अस्तित्व, अपनी इज़्ज़त,अपने स्त्रीत्व की रक्षा करने के लिए आवाज़ उठाई।
नंगेली का नाम आपने शायद पहले कभी नही सुना होगा,लेकिन हिम्मत की दाद आज भी केरल में दी जाती है,क्योंकि अपने समुदाय की नंगेली पहली महिला थी जिसने अपने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिये थे।अजीब लग रहा है ना ये पढ़कर? मगर केरल के इतिहास के पन्नों में नंगेली की ये कहानी आज भी कहीं छुपी हुई है,ये बात आज से तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले की है जब केरल के एक हिस्से में त्रावणकोर के राजा का दबदबा हुआ करता था।उस दौर में दलित समुदाय के ज़्यादातर लोग खेतीबाड़ी और मजदूरी ही किया करते थे,उस वक्त दलितों को टैक्स देना पड़ता था लेकिन दलितों की कमाई इतनी ज़्यादा नही थी कि वो टैक्स चुका सकें,इसलिए ऊंची जाति के सामने दलितों की औरतों को अपने स्तनों को खुला रखना पड़ता था,यानी उन सभी औरतों को स्तन ढकने की मनाही थी,किसी भी तरह का कोई अंगवस्त्र पहनना सख्त मना था।
जो भी इस नियम को तोड़ने की कोशिश करती उसे सरे बाजार अपने ऊपरी हिस्से के वस्त्रों को उतारने के लिए मजबूर कर दिया जाता था,इतना ही नही छुआछूत इस कदर हावी थी कि अगर किसी गैर ब्राह्मण औरत ने अपने स्तनों को ढक लिए तो ऊंची जाति के पुरुष लंबे डंडे के सिरे पर छोटा चाकू बांधकर महिला के ब्लाउज़ या स्तनों को ढकने वाले कपड़े को दूर से ही चाकू की नोक से हटा देते थे,ये बेतुका नियम मानने के लिए सभी औरते मजबूर थी,सबसे ज़्यादा दलित वर्ग की या गैर ब्राह्मण औरतों को इस फूहड़ता का शिकार होना पड़ता था।नादर समुदाय के कुछ लोगो ने इस नियम का विरोध भी किया लेकिन कुछ हो ना पाया,इस नियम का विरोध करनी वाली महिला को "स्तन टैक्स" देना पड़ता था,यहाँ तक कि महिलाएं अपने नवजात शिशु को बिना टैक्स दिए दूध भी नही पिला सकती थी, इस कुप्रथा का विरोध करने वाली अकेली औरत नंगेली ने मोर्चा संभाला और मौत के मुंह मे जाने तक वो लड़ी।
उस दौर में व्यक्ति के पहनावे से ही उसकी जाति का पता लगा लिया जाता था,स्तन टैक्स का मकसद भी शायद जातिवाद के बेढंगे ढांचे को समाज मे बना कर रखना हुआ करता था।या यूं कह लीजिए कि औरतों को उनकी नीची जाति में जन्म लेने की ये कीमत हो।लेकिन इन औरतों में नंगेली ने साहस दिखाया और बिना टैक्स दिए ही अपने स्तनों को ढकने का फैसला कर लिया,नंगेली एड़वा जाति की दलित महिला थी,उसकी इस खिलाफत से केरल में सनसनी फैल गयी ,उसी इलाके के एक बुजुर्ग को नंगेली का दुस्साहस बर्दाश्त नही हुआ और उन्होंने नंगेली का पता टैक्स मांगने आये अधिकारी को एक ऑटो चलाने वाले मोहनन नारायण के साथ जाकर बता दिया।अधिकारी के टैक्स मांगने और नंगेली के टैक्स ना देने की लड़ाई में वहाँ देखते ही देखते भीड़ इक्कट्ठी होनी शुरू हो गयी,बात जब बहुत बढ़ गयी तब नंगेली ने टैक्स तो देने से मना कर दिया लेकिन अपने स्तनों को खुद ही काटकर अधिकारी के सामने रख रख दिये।जिसके बाद पूरे केरल में एक नई क्रांति का जन्म हुआ।नंगेली का खून ज़्यादा बह गया था जिसके चलते उसकी मौत हो गयी,कुछ इतिहासकारों के अनुसार नंगेली के अंतिम संस्कार के दौरान उसके पति चिरुकन्दन ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी थी।नंगेली के द्वारा उठाये गए इस कदम से केरल में स्तन टैक्स के खिलाफ विद्रोह पैदा हो गया ,और नंगेली के बाद पैदा हुई क्रांति ने औरतों को उनका हक दिलवाने में मदद की,जिसका परिणाम ये हुआ कि राजा को ये टैक्स ही वापस लेना पड़ा।नंगेली की याद में उस जगह का नाम ही मुलच्छिपुरम यानी "स्तन का स्थान" रख दिया गया,हालांकि जब नंगेली का पूरा परिवार वहां से चला गया तो कई सालों बाद उस जगह का नाम मनोरमा जंक्शन पड़ गया।
इतिहास हमेशा पुरुषों की नज़रों से लिखा जाता रहा है शायद यही वजह है कि इतिहास की किताबों में नंगेली के बारे में और ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नही है।लेकिन बावजूद कम जानकारी के भी नंगेली का इतिहास केरल के कक्षा 9 के इतिहास में पढ़ाया जाता था,पर पिछले कुछ सालों से उस अध्याय को ही हटा दिया गया,जिसमे त्रावणकोर के दौर की "निचली जातियों"की महिलाओं के संघर्ष को पढ़ाया जाता था।सीबीएसई की कक्षा 9 की किताबों में "कास्ट कंफ्लिक्ट एंड ड्रेस चेंज" नाम के अध्याय को हटाने पर मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश दिए थे कि 2017 के एग्जाम में इस अध्याय से कुछ भी नही पूछा जाएगा।इससे पहले भी इस अध्याय को लेकर काफी गर्मागर्मी रही सीबीएसई में सिलेबस के तौर पर पढ़ाये जाने वाले अध्याय के खिलाफ 2016 में "एडवोकेट फोरम फ़ॉर सोशल जस्टिस" ने एक एप्लिकेशन दी थी जिसमे लिखा था कि ये अध्याय एक समुदाय के बारे में गलत सूचना दे रहा है।इस मामले में राजनीतिक गलियारों में भी विवाद होने लगे थे,डीएमके प्रमुख करुणानिधि और एमडीएमके के नेता वायको ने नादर और एड़वा जाति के समुदाय को बाहर से आया बताने पर आपत्ति जताई थी।