पैसों का पेड़ है क्या हमारे जनप्रतिनिधियों के पास?

क्या आपको पता है पैसों के भी पेड़ होते हैं और अगर आप एक आम आदमी से चुनाव जीत कर कहीं के विधायक,पार्षद,मंत्री या सांसद बन जाते हैं तो पैसों का पेड़ आपको आपके पद के साथ मुफ्त में मिल जाता है और आपकी इनकम दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही चली जाती है,अगर ऐसा नहीं है तो फिर एक आम आदमी चुनाव जीतते ही मालामाल कैसे हो जाता है?कहां से कई कई एकड़ जमीने,गाड़ी,घर,मकान पैसा जायदाद सब एकदम हवा में आ जाता है?ये सवाल अब तक तो हमारे और आपके ही मगज को खराब करता रहा पर अब शायद सुप्रीम कोर्ट की भी आंखे खुल गयी और कोर्ट ने केन्द्र सरकार से पूछा है कि जन प्रतिनिधियों की आय में होने वाली बेतहाशा वृद्धि के लिये अब तक कोई स्थायी निगरानी तंत्र क्यों नहीं बनाया गया है।
इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले साल के आदेश के मद्देनजर कानून मंत्रालय और विधायी सचिव से जवाब मांगा है।पिछले साल 16 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपनी और अपने जीवनसाथी की सम्पत्ति का ब्योरा नामांकन भरते वक्त देना होगा।
है ना ये कमाल की बात सफेद कुर्ता नेताओं की पहचान मानी जाती है पर इसी सफेद पोशाक के पिछे काले धन की कमाई भी छुपी होती है।एक आम आदमी के बैंक अकाउन्ट को खंगोलना तो बड़ा ही आसान है पर इन जनता के नुमाइंदों के पैसे वाले पेड़ की भी तो तहकीकात हो कि कहां से इतना भर भर के पैसा आता है इनके पास कौन सा पेड़ है भाई हमें भी बता दो कुछ भला गरीबों का भी हो जाये।इस वक्त भारत में तकरीबन 5 करोड़ रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं और चुनावी जुमला या हथकंडा भी "बेरोजगारी"और "गरीबी"ही होता है नेताओं के लिये, खुद तो बेरोजगारी और गरीबी की टैग लाईन को जरिया बना कर बन जाते हैं करोड़पति !और मुर्ख जनता यही सोचती है इस बार बेरोजगारी दूर हो जायेगी गरीबी खत्म हो जायेगी।
खैर चुनाव सर पर हैं अगर कोई नेता या जनप्रतिनिधि बेरोजगारी और गरीबी हटाने की बात करे तो एक बार उनसे उनकी सम्पत्ति के बारे में भी लगे हाथों पुछियेगा जरुर।