पशु चिकित्सक के साथ पशुओं ने ही किया दुष्कर्म फिर जलाया ज़िंदा।

वो जानवरो का इलाज किया करती थी, लेकिन उसे ये नही पता था कि इंसानी रूपी जानवर उसे नोच नोच कर पहले दुष्कर्म करेंगे फिर उसे ज़िंदा जला डालेंगे,इतनी दरिंदगी कि सुनकर ही रूह कांप जाये।हैदराबाद के तेलंगाना में 26 वर्षीय पशु चिकित्सक  बीते बुधवार को अपने टू व्हीलर के टायर पंक्चर होने के बाद एक टोल प्लाजा के पास इंतज़ार कर रही थी,वो डरी हुई थी क्योंकि रात का समय था, उसने उसी रात 9 बजकर 22 मिनट पर अपनी बहन को फ़ोन कर टू व्हीलर के टायर पंक्चर होने की बात बताई थी, और साथ ही उसे डर भी लग रहा था, ये भी उसने अपनी बहन को बताया। उसकी बहन ने उसे कैब से घर आने की सलाह दी।थोड़ी देर बाद ही उसका फ़ोन स्विच ऑफ जाने लगा और अगले दिन उसकी जली हुई लाश ही मिली।कितनी भयंकर वो रात पीड़िता पर गुज़री होगी जब वहशी दरिन्दों ने अपनी हवस मिटाने के लिए उसके साथ दरिंदगी की सभी हदे पार कर डाली होंगी।अब पीड़िता को न्याय दिलवाने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग ने जांच के लिए समिति का गठन भी कर लिया पर क्या ये समिति वास्तव में पीड़िता को न्याय दिलवा पाएगी?



सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी वाहियात और दरिन्दगी भरी हरकतें कोई किसी इंसान के साथ भला कैसे कर सकता है।क्या पीड़िता को जलाने वाले यौन मनोरोगी थे? अगर थे तो वो खुले में कैसे घूम रहे थे? और अगर सामान्य व्यक्ति थे तो रात के अंधेरे में उन्होंने एक लड़की को ज़िम्मेदारी न समझ कर उसके साथ कुकर्म करने के बाद उसे ज़िंदा क्यो जला दिया?आखिर ऐसी मनोदशा क्यो उत्पन्न हुई कि जिस्मानी हवस मिटाने के बाद कहीं कोई सुराग़ न मिलने पाए इसलिये पीड़िता को जला कर सबूत ही मिटाने की कोशिश कर दी।

इन सभी बातों से निष्कर्ष निकलता है कि वो सभी दरिंदें यौन मनोरोगी ही थे ,कुंठित थे, क्योंकि उन जैसों वहशियों के लिए अब समाज में उत्तेजना जगाने के लिए अप्राकृतिक सेक्स, जबरन सेक्स, हिंसक सेक्स, सामूहिक सेक्स, चाइल्ड सेक्स और पशुओं के साथ सेक्स भी मौजूद हैं। हद तो यह है कि फिल्में अगम्यागमन अर्थात पिता-पुत्री, मां-बेटे, भाई-बहन के बीच भी शारीरिक रिश्तों के लिए भी उकसाने लगी हैं। सब कुछ खुल्लम-खुल्ला। इन्टरनेट पर क्लिक कीजिये और सेक्स का विकृत संसार आपकी आंखों के आगे खुल जाएगा। परिपक्व लोगों के लिए ये यह सब मनोरंजन और उत्तेजना के साधन हो सकते हैं, लेकिन अपरिपक्व और कच्चे दिमाग के बच्चों, किशोरों, अशिक्षित या अल्पशिक्षित युवाओं पर इसका जो दुष्प्रभाव पड़ता है उसकी कल्पना भी डराती है।कभी आपने सोचा है कि आज देश में बलात्कार के लिए फांसी और उम्रकैद सहित कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होने के बावज़ूद स्थिति में कोई बदलाव क्यों नहीं आ रहा है ? दरअसल बलात्कार को देखने और उसकी रोकथाम के प्रयासों की हमारी दिशा ही गलत है। हम स्त्रियों के प्रति इस क्रूरतम व्यवहार को सामान्य अपराध के तौर पर ही देखते रहे हैं, जबकि यह सामान्य अपराध से ज्यादा एक मानसिक विकृति, एक भावनात्मक विचलन है। इस विकृति को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट पर असंख्य अश्लील फिल्में और वीडियो क्लिप्स उपलब्ध हैं।जिन्हें देखकर एक सामान्य से युवा में भी उत्तेजना जाग्रत हो जाती है,फिर जब जो लड़की जहाँ भी दिखी बस उत्तेजना से भरा युवा अपने विकृत दिमाग के आगे कुछ नही सोचता और बलात्कार जैसे घिनोने जुर्म को अंजाम दे देता है।

ऐसे में अगर आप ये कहे कि क्या लड़की को घर मे कैद कर के रखे तो वो भी ठीक नही है बिल्कुल भी उचित नही है उन्हें घर में बंद रखना समस्या का समाधान नहीं। अपनी ज़िंदगी जीने का उन्हें पूरा हक़ है। वे सड़कों पर, खेतों में, बसों और ट्रेनों में हर जगह जाएंगी।उनका हक है उनका अधिकार है लेकिन हर सड़क पर, हर गली में,हर स्कूल-कालेज में पुलिस की तैनाती संभव नहीं है,आमतौर पर क़ानून और पुलिस का डर ही लोगों को अपराध करने से रोकता है। यह डर तो अब रहा नहीं। वैसे भी हमारे देश के क़ानून में जेल, बेल, रिश्वत और अपील का इतना लंबा खेल है कि न्याय के इंतज़ार में एक जीवन खप जाता है।

इक्का-दुक्का चर्चित मामलों को छोड़ दें तो सालों की मानसिक यातना के बाद निचले कोर्ट का कोई फैसला आया भी तो उसके बाद उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और दया याचिकाओं का लंबा तमाशा ही देश आज तक देखता आया है,दिल्ली का बहुचर्चित निर्भया हत्याकांड को हुए कितने साल बीत चुके है देश मे खूब जुलूस निकाले गए कई नए कानून भी आ गए लेकिन क्या हुआ? क्या बलात्कार रुके? कभी कहीं कभी कहीं कोई न कोई मासूम हवसी भेड़ियों का शिकार बनती ही जा रही है और अब तो दुष्कर्म करने के बाद ज़िंदा जला देने के मामले ज़्यादा सामने आने लगे हैं। स्थिति हद से ज़्यादा विस्फोटक हो चुकी है। लोगों का धैर्य जवाब देने लगा है। इन डरावनी परिस्थितियों में इस बात की पूरी आशंका है कि लोग क़ानून को अपने हाथ में लेकर सड़कों पर बलात्कारियों को सजा देने लगेगें। वैसे भी इन दिनों देश में क़ानून पर भीड़तंत्र हावी है। इस्लामी कानूनों के मुताबिक़ एकदम संक्षिप्त सुनवाई के बाद बीच चौराहों पर लटकाकर इन हैवानों को मार डालना एक कारगर क़दम हो सकता है, पर दुर्भाग्य से हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह संभव नहीं।देश मे अब कानून को बदलने की सख्त जरूरत है एक को भी अगर बलात्कार के जुर्म में कठोर सजा हो गयी तो भी उस उदाहरण से कई सुधर सकते हैं, लेकिन न तो कोई कठोर कानून बनने वाला है ना ही तुरंत कोई कार्यवाही होगी किसी बलात्कार की पीड़िता के लिए।