जेएनयू में ये कौन से स्तर की पढ़ाई हो रही है? राजनीति की गलियों में जाने का शॉर्टकट बना जेएनयू।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जितना अपमान स्वामी विवेकानंद का किया गया उसे देखते हुए ये कतई नही लगता कि वहाँ पढ़ने वाले छात्र सभ्य होंगे।एक संत जिन्होंने अपने छोटे से जीवन मे अपने किये गए कार्यो से पूरे विश्व मे प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी,जिनके ज्ञान के आगे विदेशो में भी लोग उनके मंतव्यों का लोहा मान गए थे, ऐसे महापुरुष की मूर्ति के अनवारण से पहले ही उनका तिरस्कार करना साफ साफ दर्शाता है कि जेएनयू में पढ़ने वाले छात्र छात्र नही बल्कि राजनीति,लालच,से पूरी तरह अभिभूत हो चुके हैं।फीस वृद्धि का मामला था बवाल मचाने की जगह अपनी बात को ढंग से विद्यालय प्रशासन के समक्ष रखा जा सकता था पर नहीँ उल्टे इसके स्वामीजी की मूर्ति पर पत्थर ईंट फेंकी गई,जिस चबूतरे पर स्वामीजी की मूर्ति स्थापित की गई थी वहीं अभद्रता से भरे शब्द लिखे गए,भड़काऊ टिप्पणियों से चबूतरे को पाट दिया गया,ये सब क्या विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को शोभा देता है?


आपको बता दे कि पिछले 19 सालों से जेएनयू के फी स्ट्रक्चर नही बदला गया है,न ही इस पर पुनर्विचार किया गया अब आप खुद सोचिए इन 19 सालो में दुनिया कहाँ से कहाँ चली गयी है,क्या आज भी आपकी उतनी ही तनख्वाह है जितनी 19 साल पहले थी? क्या आज भी राशन उतने ही पैसों में मिलता है जितना 19 साल पहले मिलता था? क्या आज आप उतना ही किराया देते है या लेते है जितना 19 साल पहले देते या लेते थे? नही ना? फिर जेएनयू आज भी उतनी ही फीस पर अटका हुआ है सुविधायें लेकिन वहाँ पढ़ने वाले छात्रों को पूरी चाहिए,जबकि अभी भी जेएनयू में बिजली,सफाई,रखरखाव जैसी सुविधाओं का कोई शुल्क नही लिया जाता सब सरकारी पैसों से चलता था,सिंगल रूम के लिए प्रति व्यक्ति सिर्फ 10 रुपये किराया होस्टल का जाता है, क्या वहाँ रहने वाले जागरूक छात्र बताएंगे कि सरकार का पैसा मुफ्त का है क्या? ये पैसा आता कहा से है ? जनता के दिए गए टैक्स से ही तो जेएनयू  चल रहा है।अब होस्टल का किराया 10 रुपये प्रति व्यक्ति से बड़ा कर 300 रुपये कर दिया गया तो छात्रों ने हल्ला मचा दिया,छात्रों के पास 300 रुपये नही ह देने को लेकिन शराब की बोतले जो विद्यालय परिसर में रोज़ मिलती है उनको खरीदने के लिए पैसे है।40 कि उम्र के व्यक्ति जो मिडिल ऐज मानी जाती है जिस उम्र में व्यक्ति घर गृहस्थी बसा लेता है उस उम्र में जेएनयू में आज भी छात्र पढ़ रहे हैं।जेनएयू क्या राजनीति की गलियों में सीधे प्रवेश पाने का अड्डा बन चुका है?हर विद्यालय में छात्रों की मांगे होती है उन्हें सुना भी जाता है पर जेएनयू में तो मानो जैसे सीमा पर होने वाले युद्ध की स्थिति उतपन्न हो गयी हो।

इस पूरे मामले में स्वामी जी का कोई कसूर हो तो आप बताइए? उनकी मूर्ति के साथ अपमान करना, चबूतरे पर अभद्रता भरे शब्दों को लिखना क्या दर्शाता है?अपनी नाजायज मांगो को मनवाने के लिए किस हद तक जेएनयू में जाया जा रहा है आप खुद सोचिए,जो स्वामी जी की मूर्ति तोड़ नफरतों भरे नारो को लगा रहे है उनके लिए वीसी के खिलाफ नारेबाजी करना कौनसी बड़ी बात है ये लोग आगे चलकर देश के माहौल को किस कदर  बिगाड़ सकते है इसका अंदाज़ा भी मुश्किल है।