गौर दें ! आरक्षण का आधार जाति पर ज़ोर देना नही बल्कि जाति प्रथा ही खत्म करना था ।

भारत मे आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है,सबसे पहले आरक्षण 1882 में शुरू किया गया था,लेकिन जिस धारणा से आरक्षण की शुरुआत की गई थी वो धारणा आज बिल्कुल खत्म हो चुकी है।आरक्षण का मुख्य उद्देश्य जाति पर ज़ोर देना तो कभी रहा है नही था बल्कि आरक्षण से तो जाति प्रथा को ही समाप्त करना एक मात्र उद्देश्य था।आज यही बात आरक्षण के मुद्दे पर नज़रंदाज़ कर दी जाती है।एक और महत्वपूर्ण बात जो ध्यान देने योग्य है वो ये कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के हिसाब से केवल सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए ही आरक्षण का प्रावधान किया गया है,जिसके तहत ये साबित करना अनिवार्य है कि ये नागरिक औरों के मुकाबले इन दोनों स्तरों पर ज़्यादा पिछड़ा है,दूसरी बात 1950 में आरक्षण 10 साल यानी सन 60 तक एससी के लिए15%,एसटी के लिए 7.5% की बात कही गयी थी लेकिन हुआ क्या? 10 साल में आरक्षण खत्म करने की जगह 1993 में मण्डल कमीशन की सिफारिश पर इज़ाफ़ा भी कर दिया गया और ओबीसी को भी इसमें शामिल कर दिया गया।जिसके बाद एससी एसटी को 22.5 % और ओबीसी को भी 27. % आरक्षण देने का प्रावधान कर दिया गया।फिलहाल आरक्षण के इन प्रावधानों को 2020 तक कर दिया गया है, लेकिन अगर देश मे सिफारिशों के दौर चलता रहा तो इसमें कोई दो राय नही की धीरे धीरे आरक्षण के प्रावधान को और आगे बढ़ाया जाएगा,इसकी कल्पना तो शायद संविधान निर्माताओं ने भी नही की होगी कि 10 साल तक के लिए बना आरक्षण का प्रावधान सालो साल चलेगा और जाति प्रथा तो क्या खत्म होगी बल्कि जो आर्थिक रूप से मजबूत होंगे वो आरक्षण का फायदा ज़्यादा ले लेंगे।आरक्षण के प्रावधानों के तहत योग्यता को दरकिनार किया जा रहा है,क्या ये ब्रेन ड्रेन को बढ़ावा नही है? यानि बुद्धि क्षमता के लिए आरक्षण नुकसानदेह ही है,जो आरक्षित वर्ग के लोगों की हर क्षमता,हर प्रतिभा को खत्म कर रहा है।

आरक्षण के दूरगामी परिणाम को अगर संविधान निर्माताओं ने भांप लिया होता तो आज देश मे इतनी अराजकता नही होती।समय बीतने के साथ साथ जितने भी आरक्षित वर्ग के लोग हैं अब उनके अंदर एक अभिजात्य वर्ग की सोच ने अपने जेड जमा ली हैं ,शिक्षा हो या रोजगार,हर तबके में आरक्षण का फायदा उठाते हुए और राजनीति ताकत का सहारा लेते हुए हर बहस में हर मुद्दे पर आरक्षित वर्ग बाजी मार जाता है।

आरक्षण को अगर आज के दौरे में राजनीति का एक बड़ा हथकंडा कहे तो कोई बड़ी बात नही है।जिस आधार पर आरक्षण होना चाहिए था वो विचारधारा तो कब की खत्म हो चुकी है अब अगर कुछ बचा है तो आरक्षण को चुनावी हथियार बना कर मैदान में उतरना और वोट बैंक बनाना,राजनीति का ये खेल देश और समाज दोनों के लिए घातक है।