गांवों में पटरी पर लौट रही जिंदगी, खेतों में मिला श्रमिकों को काम।

लॉकडाउन से भले ही परेशानी बढ़ी हो लेकिन गांवों में तो रौनक लौट आई है।अप्रैल-मई में श्रमिक न मिलने के चलते मारे-मारे फिरने वाले किसान खुश हैं। खेतों पर ही श्रमिक पहुंच रहे हैं। लॉकडाउन में ना तो वसंतकालीन गन्ने की बुआई का पता चला और न ही गेहूं की कटाई का।सबको गांव में तीन माह का काम मिल गया है।उत्तराखंड राज्य बनने के साथ ही हरिद्वार जिले की तस्वीर बदलनी शुरू हो गई थी। तेजी से औद्योगिक विकास हुआ तो गांव के लोगों ने फैक्ट्रियों की ओर रुख करना शुरू कर दिया। बात खेड़ा जट गांव की। गांव की आबादी सात हजार है, करीब दो हजार लोग नारसन क्षेत्र के अलावा भगवानपुर एवं हरिद्वार के सिडकुल इलाके में विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में काम करते हैं।

कर्मियों में काफी संख्या में किसानों के बेटे भी शामिल हैं। 23 मार्च से लॉकडाउन शुरू हो गया। कामगार गांव में ही रुक गए। किसान अमित कुमार की मानें तो गांव में 23 मार्च से पहले खेती के लिए श्रमिक भी नहीं मिल पा रहे थे। अब स्थिति यह है कि गांव में एक श्रमिक को बुलाने पर दो आ रहे हैं।वसंतकालीन गन्ने की बुआई में कोई परेशानी नहीं हुई। अब गेहूं की कटाई चल रही है। पूरे गांव में तेजी से गेहूं काटने का काम चल रहा है। जो लोग जिले से बाहर दूसरे जिले एवं प्रदेश में थे, वो भी गांव में आ गए हैं। गांव में किसी चीज की कोई कमी नहीं है। ग्राम प्रधान पूनम देवी ने बताया कि गांव में खेती-बाड़ी से जुड़े काम तेजी से हो रहे हैं। जून तक गांव में काम की कोई कमी नहीं है।