कलम के सिपाहियों का त्योहार आज,राष्ट्रीय प्रेस दिवस की बधाई

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है,इसकी शुरुआत वैसे तो आदिकाल से ही मानी जाती है और पहले पत्रकार देवऋषि नारद मुनि को पत्रकारिता का जनक माना जाता है ऐसा इसीलिए क्योंकि नारदमुनि ही सभी देवगणों और असुरों तक संचार स्थापित किया करते थे, पत्रकारिता से संबंधित आदिकाल की तो किसी को कोई निश्चित तारीख नही पता लेकिन भारत मे हर साल राष्ट्रीय प्रेस दिवस 16 नवंबर को मनाया जाता है। देश के इस चौथे स्तंभ यानी पत्रकारिता से जुड़े लोगों का मुख्य त्योहार है, क्योंकि पूरा देश आज 54वाँ राष्ट्रीय प्रेस दिवस मना रहा है। बहुत पुरानी बात नहीं है, जब देश के प्रथम प्रेस आयोग ने प्रेस (समाचार माध्यमों या मीडिया) की स्वतंत्रता एवं पत्रकारिता में उच्च आदर्श स्थापित करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद् की परिकल्पना की थी, जिसके फलस्वरूप 4 जुलाई, 1966 को भारतीय प्रेस परिषद् की स्थापना हुई। 16 नवंबर, 1966 को पीसीआई ने विधिवत् कार्यारंभ किया और इसी कारण हर वर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेशनल प्रेस डे मनाने का उद्देश्य पत्रकारिता और पत्रकारों को सशक्त बनाना और स्वयं को पुन: समर्पित करने का अवसर प्रदान करना है।पूरी दुनिया की अगर बात करे तो 50 से भी ज़्यादा देशो में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद बना हुआ है,भारत मे प्रेस को वाचडॉग और प्रेस परिषद इंडिया को मोरल वाचडॉग कहा जाता है,आज का ये दिन मीडिया में सभी कलम धारकों की स्वतंत्रता के लिए अहम दिन होता है। पत्रकारिता का विस्तार हर क्षेत्र में हो रहा है चाहे वो खेल का मैदान हो या मनोरंजन का रेड कारपेट हर क्षेत्र में मीडिया की मौजूदगी दर्ज हो रही है। प्रिंट मीडिया आज एक ऐसी उत्तर पुस्तिका बन चुकी है जिसमे से आप हर तरह के जवाब ढूंढ सकते हैं वही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वही सारे सवाल जवाब आपको मिनटों में दे देती है बस फर्क इतना है कि प्रिंट मीडिया के माध्यम अख़बारों को आप सहेज कर रख सकते है पर टीवी पर दिखाई गई खबरे टीवी स्क्रीन पर झट आती है झट चली जाती है,टीवी की खबरों को भी आप संभाल सकते है बशर्ते आपके पास डाउनलोड या रिकॉर्ड करनी की अच्छी सामग्री हो। पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ कमियां भी है वो भी शायद उन पत्रकारों की वजह से जो खबरों को तोड़ मरोड़ बड़ा चढ़ा कर पेश करते है इसका औचित्य सिर्फ इतना होता है कि खबर को चटपटी और सनसनी किस तरह बनाया जाय ।
जितनी स्वतंत्रता पत्रकारिता के क्षेत्र में मिलती है उतना ही ज़्यादा जोखिम भी इस क्षेत्र में काम करने वाले मीडिया कर्मियों को झेलना पड़ता है,किसी खबर से अगर कोई बड़ा खुलासा हो जाये तो समझो उक्त खबर के पत्रकार पर दुश्मन की तिरछी निगाहे चौबीसो घंटों तक टिक गई कब क्या हो जाये कुछ नही कहा जा सकता ,ऐसे कई मामले पिछले कुछ सालों में सामने आए जिनमे पत्रकारों पर हमले किये गए उन्हें जान से मारा तक गया,आज भी मीडिया स्वतंत्र होने के बाद भी सुरक्षित नही है,पत्रकारों के लिए सरकार की तरफ से भी कोई सुरक्षा मुहैया नही करवाई जाती।