कब,कैसे और कहां शुरू हुआ अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सिलसिला

फरवरी का पूरा महिना तो फलाना डे ढिमकाना डे मनाने में निकल गया शायद इसलिये फरवरी में दिन ही कम होते हैं।लेकिन मार्च है कुछ खास। क्योकि ये पूरा सप्ताह वूमन्स वीक के नाम से मनाया जायेगा फेसबूक से लेकर व्हाट्सप तक हर जगह इस सप्ताह महिला दिवस के मैसेज एक दूसरे को भेजे जायेगे. पूरी दुनिया महिलाओ के सम्मान में अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस मनायेगी, तकनीकि तौर पर हम 107वां अंर्तराष्ट्रीय दिवस मना रहे हैं सवाल तो ये है कि आखिर हर साल 8 मार्च को ही अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है ? आज से लगभग सौ साल पहले इस दिवस को मनाने के लिये एक विचार आया था और ये आईडिया क्लारा जेटकिन के दिमाग में आया था क्लारा मार्क्सवादी चिंतक तो थी हीं साथ ही वो हमेशा महिलाओ के अधिकारो के लिये लड़ाई भी लड़ती रही।

                            कब और कहां क्लारा ने ये दिवस मनाने का सूझाव दिया आईये मैं बताती हूं ।कोपेनहेगन मे सन् 1910 में वर्किंग वूमन्स की एक इंटरनैशनल काॅन्फ्रेन्स आयोजित की गयी थी इसी काॅन्फ्रेन्स में क्लारा ने मौका देख इंटरनैशनल वूमन्स डे मनाने का सुझाव दे डाला, उस काॅन्फ्रेन्स में 17 देशों से करीब सौ महिलायें मौजूद थी और सभी महिलाओं ने क्लारा के इस सुझाव का समर्थन भी किया।क्लारा के दिमाग मे जब महिला दिवस को लेकर ये ख्याल आया था उससे पहले का वाक्या भी जानना जरूरी है क्योंकि असली बीज तो वहीं से आया था इस दिवस को मनाने के लिये।दरअसल इंटरनैशनल वूमन्स डे एक मजदूर आंदोलन से उपजा हुआ वो बीज था जो महिलाओ के सम्मान को सुरक्षित रखने के लिये पनप रहा था 1908 में 15 हजार महिलाओं ने न्यूयाॅर्क सीटी में एक रैली निकालकर नौकरी करने के लिये कम घंटे दिये जाने की मांग उठाई थी।साथ ही उनकी कुछ और भी मांगे थी जैसे बेहतर सैलरी महिलाओ को भी दी जाये और वोटिंग राईट भी औरतो को सम्मान के साथ दिया जाये, पूरे एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने 8 मार्च को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया।अंर्तराष्ट्रीय स्तर तक महिला दिवस को मनवाने का श्रेय क्लारा को ही जाता है ।ऑस्ट्रेलिया,डेनमार्क,जर्मनी और स्विट्जरलैंड में सबसे पहले इंटरनैशनल डे सन् 1911 में मनाया गया।महिलाओ के हक की लड़ाई खत्म नही हुई थी 1917 में रूस में भी एक नयी क्रान्ती ने जन्म लिया जब महिलायें सड़को पर "ब्रेड एंड पीस"(खाना और शान्ती) की मांग करने उतर आयीं थी ।दिलचस्प बात ये हुई कि महिलाओं की मांग के आगे उस वक्त के किंग निकोलस को अपना पद छोड़ना पड़ा और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को वोटिंग का अधिकार भी दे दिया उस वक्त रूस में जूलियन कैलेन्डर का यूज होता था जिस दिन महिलाओं ने मांग करते हुये रैली निकाली थी वो तारिख 23 फरवरी थी जो कि ग्रेगेरियन कैलेन्डर के हिसाब से 8 मार्च का दिन था और 8 मार्च ही वो दिन था जब अंर्तराष्ट्रीय दिवस मनाने की तारीख पर मुहर लग गयी।चीन में ज्यादातर दफ़्तरों में महिलाओं को आधे दिन की छुट्टी दी जाती है. वहीं अमरीका में मार्च का महीना 'विमेन्स हिस्ट्री मंथ' के तौर पर मनाया जाता है।

                     पूरी दुनिया में भले ही अलग अलग तरीके से वूमन्स डे मनाते हों पर इसका उद्देश्य हर जगह महिलाओं को समानता और सम्मान देना ही है लेकिन एक प्रश्न कि क्या साल में सिर्फ एक बार महिला दिवस मनाने से महिलाओं को सम्मान मिल जाता है ?क्या ये दिवस औपचारिकता मात्र नही है ? क्या साल के हर एक दिन महिलाओ को सम्मान नही मिलना चाहिये ।आज भी महिलाये अपने हक की लड़ाई से जूझ रही हैं।महिलाये समाज का वो आईना है जिसके बिना इस दुनिया की कल्पना भी मुश्किल है ।एक ओर महिला दिवस मनाता हमारा समाज दूसरी तरफ कूड़े के ढेर मे फेंकी गयी मासूम बच्चियां ,आये दिन होते बलात्कार ये देख मन विचलित होना स्वाभाविक है शौक से मनाये महिला दिवस सिर्फ 8 मार्च को ही नही बल्कि हर दिन।